यूपी की अमेठी सीट: अगर राहुल नहीं तो कौन लड़ेगा कांग्रेस से लोकसभा का चुनाव?
उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में से एक है अमेठी. इस सीट को नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ भी कहा जाता है. यहां पर अब तक ज्यादातर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है.

सूरत की निचली अदालत ने 2019 के एक आपराधिक मानहानि मामले में राहुल गांधी को दोषी ठहराया है. जिसके बाद उन्हें वायनाड लोकसभा सीट से सांसद के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया गया. इस फैसले से न सिर्फ उनकी वायनाड सीट चली गई, बल्कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में चुनाव लड़ने पर भी रोक है. फिलहाल मामला कोर्ट में है.
अब उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चिंता ये है कि अमेठी सीट पर राहुल के बदले किस प्रत्याशी को उतारा जाएगा. दरअसल, देश और दुनिया में अमेठी और रायबरेली कांग्रेस के लिए अभेद्य दुर्ग की तरह रही हैं. अमेठी तो करीब 40 साल तक गांधी-नेहरू परिवार का गढ़ रहा है. इस सीट से संजय गांधी, राजीव गांधी से लेकर सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल लोकसभा चुनाव जीतते रहे.
हालांकि साल 2019 के लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी अपनी खानदानी सीट नहीं बचा पाए थे और बीजेपी की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हरा दिया था. लेकिन हारने के बाद भी राहुल गांधी अमेठी से कहीं न कहीं खुद को जोड़े रखा. लेकिन मौजूदा हालात में जब राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर ही प्रश्नचिन्ह है तो उन चेहरों पर भी कयास लगाए जा रहे हैं जिनकी अमेठी लोकसभा सीट पर दावेदारी हो सकती है.
प्रियंका गांधी
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की मानें तो अमेठी लोकसभा सीट की जब भी बात आती है तो प्रियंका सबकी पहली पसंद होंगी. इसका सबसे बड़ा कारण तो ये है कि प्रियंका गांधी परिवार से ही है. गांधी-नेहरू के गढ़ अमेठी में गांधी परिवार के एक सदस्य के अलावा किसी और को इतनी गर्मजोशी और समर्थन नहीं मिलेगा.
प्रियंका को मैदान में उतारने का दूसरा कारण ये होगा कि उनके लिए अमेठी कोई नई जगह नहीं है. न ही ऐसा है कि अमेठी की जनता में उन्हें पैठ बनाने के लिए बहुत ज्यादा कोशिश करनी होगी. कांग्रेस की यूपी प्रभारी बनने से पहले प्रियंका साल 2019 में रायबरेली और अमेठी लोकसभा सीटों के लिए प्रचार कर चुकी हैं.
इंडिया टुडे की एक खबर में उत्तर प्रदेश के एक स्थानीय कांग्रेस नेता ने कहा, 'कई कांग्रेस कार्यकर्ता इस सीट पर 'प्रियंका गांधी और स्मृति ईरानी को मैदान में देखने के लिए उत्सुक हैं.
वरुण गांधी
पीलीभीत से बीजेपी सांसद वरुण गांधी बगावत पर उतर गए हैं. उन्होंने कई मौके पर केंद्र सरकार के रुख की आलोचना की है. इस बीच जब राहुल गांधी भारत जोड़ो यात्रा कर रहे थे तब वरुण गांधी का एक पुराना भाषण वायरल हो गया था. इस भाषण में वह दावा करते नजर आ रहे थे कि कांग्रेस के साथ उनका कोई विवाद नहीं है. बीजेपी को लेकर उनका कड़ा रुख ये संकेत दे रहा है कि उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से किनारा करने का ठान लिया है.
ऐसे में अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर अटकलें लगाई जा रही है कि वरुण गांधी समाजवादी पार्टी से अमेठी लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ सकते हैं. वरुण गांधी के फिलहाल अखिलेश से बेहतर रिश्ते हैं और बीजेपी से खराब. बता दें कि वरुण गांधी का राजनीतिक सफर साल 1999 में शुरू हुआ था, उस वक्त वह उन्होंने अपनी मां मेनका गांधी के लिए लोकसभा चुनाव में प्रचार किया था.
दीपक सिंह
अमेठी लोकसभा सीट से मैदान में उतरने वाले संभावित प्रत्याशी में से एक दीपक सिंह का भी नाम सामने आ रहा है. दीपक सिंह कांग्रेस के पूर्व एमएलसी हैं और सालों से उनके गांधी परिवार से अच्छे रिश्ते हैं. गांधी परिवार दीपक पर पूरी तरह भरोसा भी करता है. इसके अलावा अमेठी के युवा दीपक को बेहद पसंद करते हैं. हालांकि उनसे जब इस बारे में पूछा गया तो दीपक सिंह ने साफ कहा था कि गांधी परिवार के अलावा कोई और चेहरा अमेठी में चुनाव नहीं लड़ेगा.
दीपक सिंह ने कहा था, 'अमेठी गांधी परिवार के घर जैसा है और यहां के लोग राहुल जी का बेसब्री से इंतजार करेंगे. राहुल गांधी अमेठी के साथ तब भी एक परिवार की तरह खड़े रहे जब वह वायनाड के सांसद थे.
उन्होंने आगे कहा, 'हमारी पार्टी में आशावादी लोग हैं बीजेपी की तरह हम निराशावादी लोग नहीं हैं. हम विश्वास करते हैं कानून पर. जिस तरह से अलोकतांत्रिक ढंग से राहुल गांधी जी को डिसक्वालीफाई किया गया है, वह कहीं टिकेगा नहीं. न्याय होगा, जिसने भी यह सब किया है, उसका पर्दाफाश होगा.
दीपक ने जोर देते हुए कहा कि अमेठी का जन-जन चाहता है कि राहुल गांधी यहां से चुनाव लड़ें राहुल गांधी और प्रियंका गांधी दोनों में कोई बंटवारा नहीं है और अमेठी से चुनाव कौन लड़ेगा यह हमारा पार्लियामेंट बोर्ड तय करता है. गांधी परिवार व प्रियंका गांधी की लोकप्रियता अमेठी में खूब है. गांधी परिवार के अलावा कोई और चेहरा अमेठी में चुनाव नहीं लड़ेगा.
संजय सिंह
अमेठी लोकसभा सीट कांग्रेस के लिए कितना जरूरी है ये तो सभी को पता है ऐसे में कांग्रेस पूरी कोशिश करेगी की एक बार फिर ये सीट उनके पास आ जाए. ऐसे में गांधी परिवार से अगर कोई चुनाव नहीं लड़ता तो कांग्रेस अपने भरोसेमंद सिपाही पर दांव खेल सकती है. इस सीट पर प्रत्याशी के तौर पर पूर्व राज्यसभा सांसद राजा संजय सिंह को उतारा जा सकता है. हालांकि संजय सिंह वर्तमान में बीजेपी में हैं. साल 2022 में उन्होंने अमेठी सदर से विधानसभा चुनाव लड़ा था. कांग्रेस उन्हें भी वापस खींचने की कोशिश कर सकती है.
अमेठी सीट पर कई बार कांग्रेस ने लहराया जीत का परचम
उत्तर प्रदेश के 80 लोकसभा सीटों में से एक है अमेठी. इस सीट को नेहरू-गांधी परिवार का गढ़ भी कहा जाता है. इस सीट पर अब तक ज्यादातर कांग्रेस का ही दबदबा रहा है. कुछ एक चुनाव ऐसे जरूर रहे हैं जहां कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा है लेकिन हार के अलगे चुनाव में हर बार कांग्रेस अपनी शानदार रणनीति के साथ विपक्षी दलों को मात देकर जीत दर्ज करता रहा है.
इस सीट के इतिहास की बात करें तो पाएंगे कि इंदिरा गांधी से लेकर राहुल तक अमेठी के वोटरो ने किसा अन्य दल की तुलना में कांग्रेस पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया है. देश आजाद होने के बाद साल 1952 में पहली बार लोकसभा चुनाव का गठन हुआ था. उस वक्त अमेठी सुल्तानपुर दक्षिण लोकसभा सीट का हिस्सा माना जाता था, जहां से कांग्रेस बालकृष्ण विश्वनाथ केशकर सांसद बने थे. फिर आया साल 1957, इस क्षेत्र को मुसाफिरखाना लोकसभा सीट का हिस्सा बना दिया गया. उस वक्त भी केशकर यहां के सांसद बने रहे.
साल 1967 के आम चुनाव में अमेठी लोकसभा सीट अस्तित्व में आई. उस वक्त इस सीट पर कांग्रेस के नेता विद्याधर वाजपेयी की जीत हुई और वह इस सीट से सांसद बने. उस वक्त उनका सामना बीजेपी के गोकुल प्रसाद पाठक से हुआ था और उन्होंने पाठक को 3,665 वोटों के अंतर से हराया था. साल 1971 में कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी एक बार फिर इस लोकसभा सीट के सांसद बने.
संजय गांधी की मृत्यु के बाद साल 1981 में उपचुनाव हुए उस वक्त इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी ने इस लोकसभा सीट की बागडोर संभाली. इसके बाद साल 1984 में लोकसभा चुनाव हुए और राजीव गांधी एक बार फिर अमेठी के प्रत्याशी बने. उस चुनाव में उन्होंने जनता पार्टी से मैदान में उतरे रविंद्र प्रताप सिंह को 1,278,545 वोटों के अंतर से हराया था. वहीं साल 1989 और 1991 के लोकसभा चुनावों में राजीव गांधी एक बार फिर अमेठी से कांग्रेसी की सीट पर सांसद बने.
प्रचार करने गए राजीव गांधी की कर दी हत्या
साल 1991 के लोकसभा चुनावों के पहले चरण की वोटिंग के बाद 21 मई को राजीव गांधी प्रचार के लिए तमिलनाडु पहुंचे इस दौरान उनकी हत्या कर दी गयी. राजीव गांधी के हत्या के बाद साल 1991 और 1996 में अमेठी लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुआ उस वक्त भी कांग्रेस के सतीश शर्मा सांसद बने. हालांकि 1998 में भाजपा प्रत्याशी संजय सिंह ने कांग्रेस के सतीश शर्मा को 23,270 वोटों से हराया था.
1999 में एक बार फिर हुई कांग्रेस के वापसी
साल 1999 में कांग्रेस से सोनिया गांधी इसी सीट से चुनावी मैदान में उतरीं. उन्होंने उस वक्त संजय सिंह को 3 लाख से भी ज्यादा वोटों से हराया था. साल 2004 में राहुल गांधी ने अमेठी सीट पर बसपा प्रत्याशी चंद्रप्रकाश मिश्रा को 2,90, 853 वोटों के अंतर से हराया था.
साल 2009 में एक बार फिर राहुल गांधी की जीत हुई. इस बार जीत का अंतर 3,50,000 से भी ज्यादा रहा. 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी इस सीट से लगातार तीसरी बार सांसद चुने गए. उस चुनाव में उनके खिलाफ स्मृति ईरानी उतरी थीं. हालांकि जीत का अंतर सिर्फ 1,07,000 वोट था.
किस पार्टी ने कब दर्ज की जीत
अमेठी सीट पर हुए 16 लोकसभा चुनावों और 3 उपचुनाव में कांग्रेस ने 16 बार अपनी जीत दर्ज की है. केवल तीन बार ऐसा हुआ जब पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
क्यों रद्द हुई राहुल गांधी के संसद सदस्यता
चार साल पुराने एक आपराधिक मानहानि मामले में सूरत की निचली अदालत ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई. इसके बाद उनकी लोकसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई है. लोकसभा सचिवालय ने एक अधिसूचना जारी करके यह जानकारी दी है.
अधिसूचना में कहा गया कि केरल की वायनाड लोकसभा सीट के सांसद राहुल गांधी को सज़ा सुनाए जाने के दिन यानी 23 मार्च, 2023 से अयोग्य करार दिया जाता है. ये फैसला भारतीय संविधान के अनुच्छेद 102 (1) और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत लिया गया है.
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