कोरोना को रोकने के लिए दवा ही नहीं कानूनी धाराओं का भी इस्तेमाल कर सकती है सरकार, जानिए कानून के बारे में
सरकार के पास महामारी को रोकने के लिए कानूनी विकल्प भी हैं जिनका वो इस्तेमाल कर सकती है. इसके तहत संक्रमण फैलाने वाले संक्रमित व्यक्ति पर भी की कार्रवाई की जा सकती है. 2 साल तक की सजा भी हो सकती है.

नई दिल्लीः देश में और दिल्ली में कोरोना वायरस की बीमारी अपनी जड़ें फैला फैलाती जा रही है. इससे बचाव के लिए केंद्र सरकार व राज्य सरकारें तमाम तरह के उपाय अपना रही हैं. साथ ही लोगों को जागरूक भी कर रहीं हैं. लेकिन क्या आपको मालूम है कि अगर यह महामारी लोगों की लापरवाही या फिर उनकी मनमानी की वजह से भयंकर रूप लेती है तो ऐसे में सरकार के पास कानूनी प्रावधान भी है, जिसका प्रयोग करते हुए सरकार इस बीमारी को फैलने से रोकने का प्रयास कर सकती है. हम आपको ऐसे ही कानूनी प्रावधानों के बारे में बताने जा रहे हैं, जो किसी भी महामारी को रोकने के लिए हमारे कानून में मौजूद है. यह कानून है इंडियन एपिडेमिक एक्ट 1897. इतना ही नहीं हमारे देश की भारतीय दंड संहिता में भी ऐसे प्रावधान हैं, जो लोगों को किसी भी तरीके का संक्रमण या जानलेवा रोग फैलाने से रोकने के लिए बनाए गए हैं. इस संदर्भ में हमें ये कानूनी नियमों की जानकारी दिल्ली उच्च न्यायालय के अधिवक्ता दीपक त्यागी ने बताई है
इंडियन एपिडेमिक एक्ट 1897 इस कानून को केंद्र सरकार या फिर राज्य सरकार लागू कर सकती है. इस एक्ट में स्पष्ट है कि अगर कोई भी व्यक्ति सरकारी दिशा निर्देशों की अवहेलना करता है, तो उस पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है. इस एक्ट के सेक्शन 3 में यह बताया गया है कि जो भी व्यक्ति सरकारी आदेशों की अवहेलना करता है, तो उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई की जा सकती है. आईपीसी की धारा 188 यही कहती है कि सरकारी आदेश या दिशा निर्देश का पालन किया जाए. अगर कोई भी व्यक्ति सरकारी आदेशों या निर्देशों की अवहेलना करता है तो सजा के तौर पर न्यूनतम सजा 1 महीने या फिर फाइन या दोनों ही हो सकते हैं. अगर अवहेलना करने वाले की वजह से किसी की जान को खतरा होता है तो यह सजा बढ़कर 6 महीने या फिर फाइन या दोनों ही दण्ड के रूप में दिया जा सकता है.
क्या है आईपीसी की धारा 269 और 270 अधिवक्ता दीपक त्यागी का कहना है कि हमारे देश में पहले से ही आईपीसी के सेक्शन 269 और 270 मौजूद हैं जो यह कहते हैं कि अगर कोई रोग संक्रमित व्यक्ति अपने रोग के संक्रमण की गम्भीरता को जानने के बावजूद भी स्वस्थ लोगों में इस तरह के इन्फेक्शन या फिर बीमारी को फैलाता है, तो उसके खिलाफ उक्त धाराओं के तहत कार्रवाई की जा सकती है जिसमें 2 साल तक की सजा का प्रावधान है.
आईपीसी 269 के अनुसार जो कोई व्यक्ति कानून के विरुद्ध या फिर उपेक्षा से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे वह जानता हो कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रमण फैलाना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 6 मास तक की हो सकती है या जुर्माना या दोनों से ही दंडित किया जा सकता जा. यह एक संज्ञेय अपराध है.
आईपीसी 270 के अनुसार जो कोई परिद्वेष से ऐसा कोई कार्य करेगा जिससे कि और जिससे वह जानता हो कि जीवन के लिए संकटपूर्ण किसी रोग का संक्रमण फैलाना संभाव्य है, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि 2 वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने से या दोनों से ही दंडित किया जा सकता है. यह भी संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है.
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