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महंगे स्कूल में पढ़ाई, वकालत की तो फिर क्यों वकील की जगह बना अंडरवर्ल्ड डॉन... लॉरेंस बिश्नोई की गैंगस्टर बनने की कहानी

लॉरेंस बिश्नोई ने साल 2010 में डीएवी में छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा. उसके विपक्ष में दो और ग्रुप थे. उदय सह और डग का ग्रुप, जिससे लॉरेंस चुनाव हार गया.

उसने पढ़ाई तो वकालत की की थी और उस पढ़ाई के दम पर या तो वो एक वकील बन गया होता या फिर उसने ज्यूडिशियरी की तैयारी की होती तो कहीं जज की कुर्सी पर बैठकर न्याय कर रहा होता. उसने अपनी पढ़ाई को अपनी हनक के लिए इस्तेमाल किया और उसकी वो हनक इस सनक में बदल गई कि वो जुर्म के रास्ते पर कुछ यूं आगे बढ़ता गया कि उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा. पिछले 10-12 साल में पंजाब पुलिस के एक कॉन्सटेबल के बेटे ने देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में वो दहशत फैलाई कि आज की तारीख में उसके पास 700 शूटरों की एक फौज है, जो उसके एक इशारे पर किसी को भी मार सकती है. आखिर क्या है कहानी लॉरेंस बिश्नोई की, जिसने महाराष्ट्र की राजनीति के एक अहम किरदार बाबा सिद्दीकी की हत्या करके मुंबई में वो हनक हासिल करने की कोशिश की है, जैसी हनक कभी 90 के दशक में दाउद इब्राहिम की हुआ करती थी, सब बताएंगे विस्तार से. 

अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम और नए-नए बने अंडरवर्ल्ड डॉन लॉरेंस बिश्नोई में एक चीज कॉमन है. वो है दोनों के पिता का प्रोफेशन. दाउद इब्राहिम के पिता महाराष्ट्र पुलिस में सिपाही थे और लॉरेंस बिश्नोई के पिता पंजाब पुलिस में. इसके अलावा एक और चीज कॉमन है और वो है दोनों का इंटरनेशनल नेटवर्क जो भारत के अलावा भी दुनिया के दूसरे देशों में फैला हुआ है, लेकिन दोनों की शुरुआती कहानी अलग है. आज की कहानी का किरदार लॉरेंस बिश्नोई है तो बात उसी पर केंद्रित रखते हैं और चलते हैं पंजाब के फाजिल्का में, जहां लविंद्र कुमार बतौर कॉन्सटेबल तैनात थे. इसी फाजिल्का के अबोहर में लविंद्र कुमार के घर पैदा हुआ था सतविंदर सिंह. बच्चा गोरा-चिट्टा था, तो मां ने नाम रखा लॉरेंस. पिता सिपाही थे, लेकिन चाहते थे कि बेटा बड़ा अधिकारी बने. बड़े अधिकारी का मतलब होता है आईएएस-आईपीएस. तो बच्चे की शुरुआती पढ़ाई अबोहर में करवाने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए पिता ने चंडीगढ़ डीएवी भेज दिया.

कॉलेज में आने के साथ ही उसकी दोस्ती गोल्डी बराड़ से भी हुई. फिर कॉलेज में दोनों की दोस्ती की मिसालें दी जाने लगीं. एलएलबी की पढ़ाई के दौरान उसने छात्र राजनीति में हाथ आजमाने के लिए अपना एक संगठन बनाया. नाम दिया सोपू. यानी कि स्टूटेंड ऑर्गनाइजेशन ऑफ पंजाब यूनिवर्सिटी. इस संगठन के बैनर तले लॉरेंस बिश्नोई ने साल 2010 में डीएवी में छात्रसंघ अध्यक्ष का चुनाव लड़ा. उसके विपक्ष में दो और ग्रुप थे. उदय सह और डग का ग्रुप, जिससे लॉरेंस चुनाव हार गया. इस हार के कुछ ही महीनों के बाद 11 फरवरी 2011 को लॉरेंस बिश्वोई और उदय सह-डग का ग्रुप आमने-सामने टकरा गया. फायरिंग भी हुई और कहा गया कि लॉरेंस बिश्नोई ने अपनी हार का बदला लेने के लिए ये फायरिंग की है.

ये पहली बार था, जब लॉरेंस बिश्नोई के ऊपर मुकदमा दर्ज हुआ. हत्या की कोशिश का मुकदमा. मामला गैरजमानती था, तो उसकी पहली बार गिरफ्तारी भी हुई, लेकिन वो जमानत पर रिहा हो गया. हालांकि, इससे पहले भी साल 2006 में पंजाब के सुखना में डिंपी नाम के एक शख्स की हत्या हुई थी. उस केस में रॉकी का नाम सामने आया था, जो लॉरेंस का करीबी था, लेकिन तब उस केस से लॉरेंस बच गया था. 2011 में फिरोजपुर में एक फाइनेंसर के साथ हुई लूट में भी लॉरेंस का नाम सामने आया था, लेकिन केस दर्ज नहीं हुआ था. उदय सह-डग ग्रुप से हुई मुठभेड़ के बाद लॉरेंस पुलिस के निशाने पर आ गया. चंद महीने के अंदर ही वो अवैध हथियार के साथ फिर से गिरफ्तार हो गया और फिर से जमानत हो गई. इस जमानत के छह महीने बीतते-बीतते लॉरेंस बिश्नोई पर ऐसा मुकदमा दर्ज हो गया, जिसकी वजह से वो पूरी तरह से जुर्म की दुनिया में ही पैवस्त हो गया. ये मुकदमा दर्ज हुआ 12 अगस्त 2012 को. थाना था चंडीगढ़ का सेक्टर 34. केस था हत्या की कोशिश और दंगा. जाहिर है कि ये भी मुकदमा गैर जमानती था तो लॉरेंस फिर से गिरफ्तार हो गया.

जमानत पर बाहर आने के बाद लॉरेंस हत्या, लूट और डकैती करता ही रहा. जेल जाता रहा और जमानत पर बाहर भी आता रहा. इसी दौरान दिसंबर 2014 में उसके मामा के दो बेटों की हत्या हो गई. हत्या करवाई थी गैंगस्टर रम्मी मशाना और हरियाणा जेल में बंद बठिंडा के हरगोबिंद सिंह ने. जो लॉरेंस बिश्नोई भी इन दोनों की हत्या करना चाहता था, लेकिन वो जेल में बंद था. 17 जनवरी 2015 को जब पंजाब की खरड़ पुलिस उसे कोर्ट में पेशी के लिए लेकर जा रही थी, तो वो पुलिस को चकमा देकर फरार हो गया. फरारी के बाद वो खरड़ और दिल्ली होते हुए नेपाल चला गया. नेपाल में उसने करीब 60 लाख रुपये के विदेशी हथियार और बुलेटप्रूफ जैकेट तक खरीद दी. पंजाब-हरियाणा के आस-पास आकर वो रम्मी मशाना की तलाश में लग गया ताकि उसकी हत्या कर सके. अभी वो रम्मी मशाना की तलाश कर ही रहा था कि 4 मार्च 2015 को फाजिल्का पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया.

इस बार जब लॉरेंस बिश्नोई जेल गया, तो उसने जेल में ही अपनी फौज बनानी शुरू कर दी. फरीदकोट जेल में बंद रहने के दौरान उसके पास फोन और तकरीबन 40 सिमकार्ड आ गए. जेल में बैठे-बैठे वो लोगों से रंगदारी मांगने लगा, धमकी देने लगा और कॉन्ट्रैक्ट किलिंग की सुपारी भी लेने लगा. फरीदकोट जेल से ही मार्च 2017 में राजस्थान के जोधपुर के डॉक्टर चांडक और एक ट्रैवलर को मारने के लिए 50 लाख की सुपारी ली. उसने फोन के जरिए ही डॉक्टर की बीएमडब्ल्यू कार में आग लगवा दी. केस जोधपुर में दर्ज हुआ तो उसे जोधपुर जेल ले जाया गया, लेकिन वहां भी लॉरेंस का नेटवर्क चलता ही रहा. वहां भी उसके पास मोबाइल पहुंच गया. और जेल से ही वो वसूली करता रहा, धमकियां देता रहा. परेशान राजस्थान पुलिस ने उसे 23 जून 2017 को अजमेर की घूघरा घाटी हाई सिक्योरिटी जेल में भेज दिया.

अजमेर की इस घूघरा घाटी जेल को काला पानी माना जाता है, जहां पूरे राज्य के कुख्यात अपराधी रखे जाते हैं.अपराधियों के लिए जेल इतनी सख्त मानी जाती है कि कुख्यात आनंदपाल इस जेल से पेशी पर जाने के दौरान फरार हो गया था. इसी जेल में राजस्थान के कुख्यात आनंदपाल के गैंग के भी शूटर थे. इस जेल में आने पर लॉरेंस की मुलाकात आनंदपाल के भाई से हुई. आनंदपाल के एनकाउंटर में मारे जाने के बाद आनंदपाल का गुट कमजोर पड़ गया था. लॉरेंस ने इस गुट को अपनी ताकत दी. जिस अजमेर जेल में जाने से अपराधी खौफ खाते थे, लॉरेंस वहां मौज में रहा. वहां भी उसे मोबाइल मिल ही गया. जब पुलिस ने जेल में दबिश दी, तो उसके पास से दो सिम बरामद भी हुए. हालांकि कुछ ही दिनों के अंदर उसके पास फिर से मोबाइल और सिम पहुंच गया. इसकी पुष्टि तब हुई, जब लॉरेंस ने जेल से ही फोन करके आनंदपाल के सियासी विरोधी रहे सीकर के पूर्व सरपंच सरदार राव की अपने मोहाली के शूटर रविंदर काली को भेजकर 27 अगस्त 2017 को हत्या करवा दी. जोधपुर में अपनी धाक जमाने के लिए लॉरेंस ने 17 सितंबर को सरेआम अपने शूटर हरेंद्र जाट और रविंदर काली से जोधपुर के कारोबारी वासुदेव इसरानी की हत्या करवा दी. इसके बाद तो आनंदपाल गैंग के लोग भी उसे अपना सरगना मानने लगे. हालांकि पुलिस लॉरेंस के गुर्गों को गिरफ्तार करने में कामयाब रही, लेकिन लॉरेंस ने फिर से नए लोग इकट्ठा कर लिए. जेल से जो भी जमानत पर बाहर जाता, वो लॉरेंस का आदमी बन जाता और उसके लिए काम करने लगता.

जेल में बैठकर अपनी आपराधिक सत्ता चला रहा लॉरेंस बिश्नोई पुराने मामले की सुनवाई के दौरान 5 जनवरी 2018 को राजस्थान के जोधपुर में पेशी पर पहुंचा था. पेशी से लौटने के दौरान पुलिस की जीप में मीडिया के लोगों ने उससे जुड़े मुकदमों पर सवाल किया. इस दौरान उसने कहा कि उसपर लगे सभी मुकदमे गलत हैं और पुलिस उसे फंसा रही है. इस दौरान लॉरेंस ने कहा-
 'पुलिस का क्या है. जो हाथ आ जाता है उस पर आरोप लगा देती है... आज मुझ पर आरोप लगाया है, कल कोई और पकड़ा जाएगा तो उस पर आरोप लगा देंगे. मैं तो एक स्टूडेंट हूं. मेरा आपराधिक मामलों से कोई लेना देना नहीं है. अपराध क्या होता है? यह तो जब सलमान खान को यही मारूंगा तो पता चलेगा'. हालांकि लॉरेंस कभी सलमान खान तक तो नहीं पहुंच पाया, लेकिन उसकी धमकियां लगातार सलमान खान और उनके पिता सलीम खान तक पहुंचती रहीं. इस बीच लॉरेंस बिश्नोई के पुराने दोस्त रॉकी की हत्या हुई तो इस हत्या का बदला लेने के लिए लॉरेंस ने गैंगेस्टर जयपाल भुल्लर की भी हत्या करवा दी. और फिर 2021 में उसे राजस्थान की जेल से निकालकर दिल्ली की तिहाड़ जेल में शिफ्ट कर दिया गया. यहां भी लॉरेंस बिश्नोई की अपराध गाथा कम नहीं हुई, बल्कि उसका दुस्साहस औऱ भी बढ़ गया.

उसने कनाडा में बैठे गोल्डी बराड़ के जरिए पंजाब के मशहूर सिंगर सिद्धू मूसेवाला की हत्या करवा दी. और कहा कि ये हत्या उसके साथी विक्कू मिद्दूखेड़ा की हत्या का बदला है. सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद लॉरेंस ने नवंबर 2023 में पंजाब के एक और सिंगर और सलमान खान के दोस्त गिप्पी ग्रेवाल के घर भी फायरिंग करवाई. इसके अगले ही महीने दिसंबर 2023 में लॉरेंस बिश्नोई ने करणी सेना के अध्यक्ष सुखदेव सिंह गोगामेड़ी की भी जयपुर में सरेआम गोली मारकर हत्या करवा दी. इसी साल अप्रैल में उसने सलमान खान के घर गैलेक्सी अपार्टमेंट के बाहर फायरिंग करवाई और अब तो उसने सलमान खान के सबसे करीबियों में शुमार और तीन बार के विधायक रहे बाबा सिद्दीकी की भी हत्या करवा दी है.

तो क्या अब लॉरेंस बिश्नोई भारत का अगला दाउद इब्राहिम बन रहा है. जवाब है हां...वो उसी की राह पर आगे बढ़ रहा है. और ये कोई मीडिया की कयासबाजी नहीं बल्कि देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी एनआईए की चार्जशीट कह रही है, जिसमें दावा किया गया है कि लॉरेंस बिश्नोई के पास करीब 700 शूटरों की एक फौज है.और इनमें भी 300 शूटर तो सिर्फ पंजाब से ही हैं.  दाउद इब्राहिम की डी कंपनी से तुलना करते हुए एनआईए ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि जिस तरह से 90 के दशक में छोटे-मोटे अपराध करके दाउद इब्राहिम ने अपना इंटरनेशनल नेटवर्क बना लिया, ठीक उसी तरह से लॉरेंस बिश्नोई ने भी नॉर्थ इंडिया के साथ-साथ इंटरनेशनल लेवल पर अपने नेटवर्क का विस्तार कर लिया है.  

आज की तारीख में भारत में लॉरेंस भले ही गुजरात की सबसे सुरक्षित जेलों में से एक साबरमति जेल में बंद है, लेकिन उसका नेटवर्क हिमाचल प्रदेश से लेकर पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र तक फैल गया है कि जबकि विदेश में कनाडा, अमेरिका, पाकिस्तान और दुबई तक उसके गुर्गे फैले हुए हैं, जो उसके एक इशारे पर किसी को भी मारने को तैयार हो जाते हैं. उसके ऊपर 50 से ज्यादा मुकदमे हैं, लेकिन सजा किसी भी केस में नहीं हुई है. हर अपराधी जेल से बाहर निकलना चाहता है, लेकिन लॉरेंस बिश्नोई ऐसा अपराधी है, जो जमानत के लिए अपील भी नहीं करता. न तो उसका कोई वकील ही कभी अदालत में पेश होता है. क्योंकि लॉरेंस को लगता है कि बाहर के मुकाबले में जेल में बैठकर अपराध करना ज्यादा आसान है.

उसका यही रवैया पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. क्योंकि उसे चाहे राजस्थान की जेल में रखा गया य़ा फिर पंजाब की. उसे तिहाड़ भेजा गया या साबरमती, न तो उसका खौफ कम हुआ और न ही उसकी अपराध गाथा. जेल में बंद रहकर अपराध करवाने और फिर सोशल मीडिया साइट्स जैसे फेसबुक, ट्वीटर और इंस्टाग्राम के जरिए उस अपराध को ग्लोरिफाई करनावे की वजह से उसके गैंग में हर रोज नए-नए अपराधी जुड़ते ही जाते हैं. लॉरेंस खुद को अपराधी नहीं समाजसेवी बताता है.  फेसबुक बायो में लिखता है डिफरेंट स्टाइल में समाजसेवा. और अपना आदर्श मानता है भगत सिंह को. शायद इस लॉरेंस बिश्नोई को ये नहीं पता है कि भगत सिंह कौन थे. अगर उसे पता होता...तो वो भगत सिंह का नाम लेने की भी हिमाकत नहीं करता.

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