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न्यूज एंकर के इश्क में 'गायब' हो गए विदेश मंत्री, सीमा विवाद पर भारत के सामने कई चुनौतियां फिर खड़ीं!

किन के गायब होने के पीछे भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में बात की जा रही है. साथ ही किन का नाम महिला होस्ट और एंकर के साथ भी जुड़ रहा है, लेकिन इस सब का भारत के साथ क्या संबध है?

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने अपने विदेश मंत्री को बर्खास्त कर दिया है. किन गैंग पिछले साल दिसंबर में चीन के विदेश मंत्री नियुक्त किये गए थे.  25 जून के बाद से उन्हें सार्वजनिक रूप से नहीं देखा गया है. सोशल मीडिया किन गैंग की हालिया तस्वीरों को देख कर कई तरह के सवाल उठ रहे हैं. चीनी कम्युनिस्ट पार्टी ने किन गैंग की पत्रकार गर्लफ्रेंड के साथ नजदीकियों को लेकर गंभीर चिंता भी जताई थी.

किन पिछले सप्ताह जकार्ता में आसियान के विदेश मंत्रियों की बैठक में भी गायब थे. लेकिन ऐसे समय में जब एक हाई-प्रोफाइल सरकारी अधिकारी को बिना किसी स्पष्टीकरण के बर्खास्त कर दिया जाता है, तो हैरानी जरूर होती है. 

किन के गायब होने के पीछे भ्रष्टाचार के आरोपों के बारे में बात की जा रही है. लेकिन साथ ही किन का नाम फू शियाओतियान के साथ जोड़ा जा रहा है, जो फीनिक्स टीवी की एक महिला होस्ट और एंकर हैं. फू भी सार्वजनिक रूप से दिखाई नहीं दे रही हैं.

राजनीतिक घोटालों, भ्रष्टाचार और कर चोरी जैसे अपराध पिछले एक दशक में चीन में चर्चा का विषय हैं. इस सब के बीच नेता, अधिकारी, बिजनेसमैन, और अभिनेता समय-समय पर गायब हो जाते हैं. लापता होने वाले हर व्यक्ति का अंत दुखद नहीं होता . 

नवंबर 2021 में टेनिस खिलाड़ी पेंग शुआई कई महीनों तक लापता रही थीं, जब उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के पूर्व वरिष्ठ मंदारिन झांग गाओली पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे. हालांकि पेंग दोबारा से सामने जरूर आई लेकिन झांग को कोई सजा नहीं दी गई.

जून 2021 में उप सुरक्षा मंत्री डोंग जिंगवेई सार्वजनिक रूप से गायब हो गए. इसके बाद अफवाहें फैल गई कि उनके पास जैविक हथियार के रूप में कोविड -19 वायरस को लेकर कुछ राज थे. अफवाह फैल गयी कि वो एक पश्चिमी देश में चले गए.  डोंग बाद में दोबारा से वापस आए, और इस मामले पर कोई बातचीत नहीं हुई. 

अक्टूबर 2020 और जनवरी 2021 के बीच तक अलीबाबा समूह के अरबपति संस्थापक जैक मा सार्वजनिक रूप से गायब हो गए. मां ने गायब होने के कुछ हफ्ते पहले ही चीन के वित्तीय नियामकों की आलोचना की थी, बाद उन्हें अधिकारियों ने बुलावा भेजा. मा अब सार्वजनिक रूप से शायद ही कभी बोलते हैं.

जुलाई 2018 में लोकप्रिय अभिनेता फैन बिंगबिंग लापता हो गईं, लेकिन कुछ महीनों के बाद एक बयान जारी कर कर उन्होंने चोरी के लिए माफी मांगी. इस माफी के बाद चीनी कर अधिकारियों ने उन्हें करों और दंड में 127 मिलियन से ज्यादा का भुगतान करने का आदेश दिया.

2012 में शी जिनपिंग उस समय चीन के उपराष्ट्रपति थे. चर्चा में आए थे क्योंकि उन्होंने खुद को हफ्तों के लिए जनता की नजरों से गायब कर लिया. ऐसी अफवाहें थीं कि शी बीमार थे और उन्हें खेल में चोट लगी थी. इसके दो महीने बाद वो जनता की नजरों में आए. ऐसे में सवाल जरूर पैदा होता है कि इसके पीछे किसका हाथ होता है, क्या इसके पीछे चीन की ताकत है. 

चीन की शक्ति संरचना
सालों से बिना किसी स्पष्टीकरण के गायब होने और फिर से उभरने की बार-बार की घटनाएं चीन की बुनियादी अपारदर्शिता को उजागर करती है. जिसे सीपीसी द्वारा कसकर नियंत्रित किया जाता है.यहां पर असहमति की इजाजत नहीं है. कोई किसी से  सवाल का जवाब नहीं मांग सकता.  पत्रकार और विश्लेषक रिचर्ड मैकग्रेगर ने अपनी किताब 'द पार्टी: द सीक्रेट वर्ल्ड ऑफ चाइनीज कम्युनिस्ट रूलर्स' में बीजिंग के एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर के हवाले से लिखा है, 'पार्टी भगवान की तरह है. वह हर जगह है. आप बस उसे नहीं देख सकते.

चीनियों ने सोवियत संघ पर अपनी प्रणाली का मॉडल तैयार किया. लेनिन ने एक ऐसी व्यवस्था तैयार की थी जिसमें पार्टी की आंख और कान हर जगह है.  लेनिन ने जितना संभव हो उतना केंद्रीकरण की वकालत की, और सबसे नीचे जितना संभव हो उतना विकेंद्रीकरण किया. 

सत्ता के शीर्ष पर बैठे शी की तीन भूमिकाएं हैं- कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव के रूप में उनका पद , पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के राष्ट्रपति और चीनी सेना के प्रमुख के रूप में उनका ओहदा. .शी की विदेश यात्राओं के दौरान विशेष रूप से पश्चिमी देशों में चीनी सरकार यह सुनिश्चित करती है कि उन्हें चीनी राष्ट्रपति के रूप में संबोधित किया जाए, न कि उनके अन्य किसी ओहदे से. 

अक्टूबर 2022 में प्रकाशित एक पेपर में अमेरिकी थिंक टैंक काउंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (सीएफआर) ने पार्टी के नेतृत्व चुनने की प्रक्रिया को समझाया गया है. इसके मुताबिक , हर पांच साल में सीसीपी प्रमुख नीतियों को निर्धारित करने और शीर्ष नेताओं का चयन करने के लिए अपनी राष्ट्रीय पार्टी कांग्रेस का आयोजन करती है. इसके दौरान सदस्य केंद्रीय समिति का चयन करते हैं, जिसमें लगभग 370 सदस्य और मंत्रियों, वरिष्ठ नियामक अधिकारियों, प्रांतीय नेताओं और सैन्य अधिकारी शामिल होते हैं.

केंद्रीय समिति सीसीपी के लिए निदेशक मंडल के रूप में कार्य करती है, औरवार्षिक बैठक आयोजित करती है. इसे प्लेनम के रूप में जाना जाता है. केंद्रीय समिति पोलित ब्यूरो का भी चयन करती है, जिसमें पच्चीस सदस्य होते हैं.

सीएफआर पेपर में कहा गया है कि पोलित ब्यूरो गुप्त और पर्दे के पीछे की बातचीत के जरिए पोलित ब्यूरो की स्थायी समिति का चयन करता है. स्थायी समिति में पांच से नौ सदस्य हो सकते हैं. जो सीसीपी की शक्ति और नेतृत्व का केंद्र" है.  सीपीसी महासचिव के रूप में शी शीर्ष पर हैं, और प्रीमियर स्टेट काउंसिल के प्रमुख बी वही  हैं. ये चीन की एक कैबिनेट के बराबर पावरफुल माना जाता है.

भारत की कूटनीतिक चुनौती

चीन का नया विदेश मंत्री नामित किए जाने से ठीक पहले किन गांग ने एक पत्रिका में लिखा था कि  सीमा की स्थिति पर यथास्थिति यह है कि चीन और भारत दोनों "मौजूदा हालात को ठीक करने के लिए इच्छुक हैं" और "संयुक्त रूप से अपनी सीमाओं पर शांति की रक्षा करते हैं". इस साल मार्च में नई दिल्ली में किन के साथ अपनी बैठक में जयशंकर ने भारत की रेखाएं निर्धारित की थीं. जयशंकर ने यह साफ किया था कि जब तक सीमा पर सामान्य स्थिति नहीं होती तब तक संबंधों में सुधार नहीं होगा.

किन अब गायब हैं और सीमा विवाद पर भारत के सामने कई चुनौतियां फिर खड़ीं हैं. 

दोनों देशों के बीच सीमा पर तनाव बहुत पुराना मामला है. लेकिन दोनों देशों ने आपसी सहमति से सीमा विवाद को सुलझाने की कोशिशों के बीच राजनीतिक रिश्ते बनाए रखते हुए व्यापार और निवेश को लंबे समय तक चलते रहने दिया है. सड़क निर्माण से लेकर अनुच्छेद 370 के प्रावधानों के खत्म होने और काराकोरम पर्वतों पर चीन के नियंत्रण को लेकर भारत-चीन विवाद होता रहता है. 

वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बढ़ती कथित चीनी गतिविधियों का बड़ा कारण, "पुल और हवाई पट्टियों का निर्माण बताया जिसकी वजह से भारतीय गश्तें बढ़ चुकी हैं.  वहीं चीन ने भारत सरकार के  जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 के हटाने के फैसले का विरोध किया था .

अक्साई चिन के 38,000 वर्ग किलोमीटर के अलावा शक्सगाम घाटी के 5,000 वर्ग किलोमीटर से अधिक इलाके पर भी चीन का नियंत्रण है. 1948 में पाकिस्तान ने कब्जा जमा लिया था. बाद में 1963 में एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने इस क्षेत्र को चीन को सौंप दिया. चीन सरकार अरुणाचल प्रदेश पर भी अपना दावा करती रहती है, जो भारत का हिस्सा है. चीन ने हाल ही में अरुणाचल प्रदेश की  15 जगहों का नाम बदला थी.  चीन ऐसा करके अवैध तरीके से अरुणाचल प्रदेश को अपने कब्जे में लेना चाहता है.

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