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वादों की बरसात पर पीने को पानी नहीं, दिल्ली की कच्ची कॉलोनियों का ये है हाल

इस कॉलोनी में हर घर के सामने पानी के कनटेनर लाइन से लगे मिलते हैं. स्थानीय लोग अपनी दिक्कतें बताते-बताते भावुक हो जाते हैं.

राजधानी दिल्ली में गर्मियों के मौसम में पानी की किल्लत होना आम बात हो चुकी है, लेकिन खासतौर से परेशानी देखनी पड़ती है उन कच्ची कॉलोनियों में जहां पर सुविधाओं के वादे तो बहुत हुए, लेकिन सुविधाएं नहीं पहुंची. बादली विधानसभा स्थित स्वामी श्रद्धानंद कॉलोनी राजधानी दिल्ली की उन कच्ची कॉलोनियों में से एक है, जहां चुनाव के वक्त वादों की बरसात होती है, मगर गर्मी के मौसम में लोग पीने के पानी के लिए भी तरस जाते हैं.

इस कॉलोनी में हर घर के सामने पानी के कनटेनर लाइन से लगे मिलते हैं. स्थानीय लोग अपनी दिक्कतें बताते-बताते भावुक हो जाते हैं. लोगों ने बताया कि सरकारी व्यवस्था यहां बदहाल है. कई बार लोगों ने अपनी बात सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की, लेकिन हर बार नतीजा सिफर रहा.

सबसे बड़ी परेशानियां जो लोगों को झेलनी पड़ रहीं-

  • यहां रहने वाले लोगों की सबसे पहली और बड़ी परेशानी पीने का पानी उपलब्ध ना होना है. इस कॉलोनी में लोगों के पास पीने के पानी के लिए एक ही जरिया दिल्ली जल बोर्ड का टैंकर है, लेकिन यह टैंकर भी कभी 4 दिन तो कभी एक हफ्ते में एक बार आता है. ऐसे में लोगों को कंटेनरों में पानी इकट्ठा करके रखना पड़ता है.

  • दूसरी सबसे बड़ी समस्या गंदे पानी की है. यहां के निवासी बताते हैं कि कई लोग जिनके पास पैसे हैं कि वे समरसेबल लगवा सके, उन्होंने लगवाया पर पानी अभी भी गंदा आता है. टैंकर से पानी लेने के बाद से कंटेनर में एक-एक हफ्ते तक पानी इकट्ठा करके रखने की वजह से पानी कुछ दिनों में गंदा और बदबूदार हो जाता है. इतना ही नहीं इस पानी में मच्छर भी पैदा होने लगते हैं. इसी गंदे पानी को कपड़े से छान कर पीना पड़ता है.

  • तीसरी सबसे बड़ी समस्या यहां सरकारी सुविधाओं का अभाव है. यहां के निवासी बताते हैं कि पूरी कॉलोनी में सरकारी पाइप लाइन तो पहुंच चुकी है, मगर इन पाइप्स में पानी अब तक नहीं पहुंचा. कभी कभार तीन-चार दिन में शाम के वक्त पानी आता भी है, तो नाले के पानी जैसा होता है, जिसे फेंक देना पड़ता है. गंदे पानी को पीने की वजह से बड़े बूढ़े और बच्चे भी बीमार पड़ जाते हैं, जिसकी वजह से लोगों को पानी के साथ-साथ दवाइयां भी खरीदनी पड़ती है.

सबसे बड़ी बात जो यहां के लोग बताते हैं वह यह है कि कंटेनर में पानी इकट्ठा करके रखना पड़ता है, क्योंकि पता नहीं होता है कि अब टैंकर कब आएगा. ऐसे में कई बार सरकारी जांच में इन लोगों का चालान कट जाता है कि पानी इकट्ठा करने की वजह से डेंगू फैलेगा. ऐसी स्थिति में समझ नहीं आता कि अगर टैंकर से पानी इकट्ठा करके ना रखे तो पानी कैसे पिएंगे और अगर इकट्ठा करके रखते हैं, तो चालान कट जाता है.

रोजगार बजट 2022-23 में कच्ची कॉलोनियों के विकास के लिए 1300 करोड़ रुपये प्रस्तावित

इस पूरे मामले पर हमने दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से सवाल किया. सबसे पहले तो मनीष सिसोदिया ने कहा कि राजधानी दिल्ली में हर जगह पानी की सुविधा पहुंच चुकी है, आप नाम बताएं. हमारी तरफ से जवाब में बादली विधानसभा का नाम लिया गया और साथ ही साथ स्वामी श्रद्धानंद कॉलोनी का भी. इसके बाद मनीष सिसोदिया बेहद हल्का जवाब देते हुए कहते हैं कि दिल्ली में हर जगह पानी की सुविधा पहुंच गई है. एकाध जगह ही समस्या होगी. उनके बारे में भी हम पता करेंगे और वहां पर समस्या का हल निकालेंगे. बता दें कि रोजगार बजट 2022-23 में कच्ची कॉलोनियों के विकास के लिए 1300 करोड़ रुपये प्रस्तावित है. ऐसे में कब तक ये पैसा इन कॉलोनियों के विकास में लगाया जाएगा ये देखने वाली बात है.

केवल दिल्ली सरकार ही नहीं, दिल्ली में पानी की किल्लत के लिए एमसीडी भी उतनी ही जिम्मेदार है. ईस्ट एमसीडी के तहत आने वाला चिल्ला गांव भी इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहा है. यहां पर भी लोग बताते हैं कि टैंकर मोहल्ले में एक दो जगह तक ही पहुंचता है, जिसके बाद से सारा काम धाम छोड़कर, दुकानें बंद कर लाइन में लगकर पानी लेना पड़ता है. कई बार पता ही नहीं होता टैंकर कब आएगा, क्योंकि टैंकर 2 दिन में 3 दिन में आता है. ऐसे में कमाई का साधन अपनी दुकान बंद करके पानी लेने जाना पड़ता है और पानी ना मिलने पर पानी खरीदकर पीना पड़ता है. पहले से ही महंगाई इतनी ज्यादा बढ़ चुकी है और उसमें भी पानी अलग से बजट बिगाड़ रहा है.

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