Delhi Sultanate Qutbuddin Aibak: कई बार बेचा गया गुलाम, कैसे बन बैठा दिल्ली का सुल्तान, मंदिरों का किया विध्वंस
क़ुतुबुद्दीन ऐबक भारतीय इतिहास का एक ऐसा शासक था, जिसे एक ही नजरिए से नहीं देखा जा सकता. उसने जहां अपनी विजयों से तुर्की शासन स्थापित किया, वहीं मंदिरों के विध्वंस से नकारात्मक छवि बनाई.

कुतबुद्दीन ऐबक दिल्ली सल्तनत का वह शासक था, जिसने इस्लामी साम्राज्य की भारत में नींव रखी. उसका जन्म तुर्किए के ऐबक कबीले में हुआ था. बचपन में ही वे अपने परिवार से बिछड़ गया और गुलाम बाजार में बेच दिया गया. उसे नेशापुर लाया गया, जहां काजी फखरुद्दीन अब्दुल अजीज कूफी ने उसे खरीदा. काजी ने उसे सिर्फ केवल गुलाम नहीं समझा बल्कि बेटे जैसा प्यार और परवरिश दी. उसने ऐबक को कुरान की शिक्षा, घुड़सवारी और तीरंदाजी का प्रशिक्षण दिलाया. कुछ ही समय में ऐबक अपनी कुशलता और व्यवहार से सबका दिल जीतने लगा.
इतिहासकार मिन्हाज-उल-सिराज ने तबकात-ए-नासिरी में लिखा है कि काजी के निधन के बाद ऐबक फिर से बेच दिया गया और इस बार वह गजनी पहुंचा, जहां सुल्तान मोहम्मद गौरी ने उसे खरीद लिया. यही वह पल था जिसने ऐबक के जीवन की दिशा बदल दी. गौरी ने उसकी ईमानदारी और उदारता को पहचाना और धीरे-धीरे उसे अपना सबसे विश्वसनीय अधिकारी बना लिया.
मंदिरों का विध्वंस और मस्जिदों में परिवर्तन
ऐबक के शासनकाल को अक्सर उसकी बर्बरता के कारण याद किया जाता है. कई इतिहासकार लिखते हैं कि उसके आदेश पर अनेक मंदिरों और संस्कृत विद्यालयों को नष्ट किया गया. अजमेर के संस्कृत विद्यालय को तबाह कर अढ़ाई दिन का झोंपड़ा मस्जिद में परिवर्तित किया गया. दिल्ली, बनारस और मेरठ जैसे स्थानों पर भी कई प्राचीन मंदिरों और धार्मिक स्थलों को नुकसान पहुंचाया गया. इस विध्वंस ने तत्कालीन भारतीय समाज की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर पर गहरा आघात पहुंचाया. इतिहासकार इस पहलू को ऐबक की बर्बर नीतियों और सत्ता की मजबूती के लिए धार्मिक प्रतीकों को तोड़ने की रणनीति के रूप में देखते हैं.
विरोधाभासी व्यक्तित्व
क़ुतुबुद्दीन ऐबक का जीवन और शासन विरोधाभासों से भरा हुआ था. एक ओर उसने उत्तर भारत में तुर्क शासन स्थापित कर अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया. दूसरी ओर उसने सांस्कृतिक और धार्मिक धरोहरों को तोड़कर बर्बरता दिखाई. यह विरोधाभास ही ऐबक को भारतीय इतिहास में एक अनोखा और जटिल चरित्र बनाता है.
कुतबुद्दीन ऐबक की मृत्यु और विरासत
ऐबक का शासन काल लंबा नहीं रहा. 1210 में लाहौर में पोलो खेलते समय घोड़े से गिरकर उसकी मौत हो गई. उसकी असमय मृत्यु ने सल्तनत को झटका दिया, लेकिन उसने जो नींव रखी, उसी पर बाद में इल्तुतमिश और बलबन जैसे शासकों ने दिल्ली सल्तनत को मज़बूत किया. उसका मक़बरा लाहौर में है, जिसे अनारकली के पास ऐबक का मकबरा कहा जाता है.
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