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Delhi MCD Results 2022: 'आप' की झाड़ू के आगे नहीं चले बीजेपी के तीनों दांव, हाथ से निकल गई एमसीडी

एमसीडी चुनाव में अपनी 15 साल पुरानी सत्ता पर बरकरार रहने के लिए दिल्ली में बीजेपी ने अपनी पूरी ताकत झोंकी, लेकिन आम आदमी पार्टी बीजेपी के 15 साल के वर्चस्व को ध्वस्त करने में कामयाब हो गई.

दिल्ली के नगर निगम चुनाव (एमसीडी) में आम आदमी पार्टी झाड़ू चलाने में कामयाब हो गई. एमसीडी की 250 वार्डों पर हुए निकाय चुनाव में आप ने 131 सीटों पर जीत दर्ज कर लिया है. दूसरे नंबर पर बीजेपी रही जिसने 100 सीटों पर जीत दर्ज की. वहीं कांग्रेस  250 वार्डों में से सिर्फ 7 सीटें ही जीत पाई है और अन्य के खाते में 3 सीटें आई है.

इस चुनाव में अपनी 15 साल पुरानी सत्ता बरकरार रखने के लिए पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन आम आदमी पार्टी बीजेपी के 15 साल के वर्चस्व को ध्वस्त करने में कामयाब हो गई. ऐसे में जानते हैं उन दावों के बारे में जिसके बदौलत बीजेपी दिल्ली पर बादशाहत बरकरार रखना चाहती थी और आम आदमी पार्टी क्यों मानती है इसे बीजेपी का चाल.

चुनाव को समय पर नहीं करवाना

इस साल के मई महीने में राजधानी के तीनों म्युनिसिपल कारपोरेशन का कार्यकाल खत्म हो गया था, आमतौर पर कार्यकाल खत्म होने से एक महीने पहले ही चुनाव करा लिया जाता है. लेकिन इस बार 6 महीने बाद चुनाव के तारीख की घोषणा की गई. राज्य के चुनाव आयुक्त विजय देव ने तारीख की घोषणा में हुई देरी का कारण पहली नगर निगमों का एकीकरण और दूसरा वॉर्डों की परिसीमन प्रक्रिया बताया.

बीबीसी की एक रिपोर्ट के अनुसार राज्य के चुनाव आयुक्त विजय देव ने कहा, ''डीएमसी एक्ट में संशोधन के बाद म्युनिसिपल कारपोरेशन का एकीकरण किया गया. यानी एक यूनिफ़ाइड म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की स्थापना की गई. पहले राजधानी दिल्ली में कुल तीन नगर निगम थे, जो एकीकरण के बाद एक हो गए. इसके बाद परिसीमन प्रक्रिया जरूरी थी. ये एक लंबी प्रक्रिया होती है और इसे पूरा करने में वक्त लगा और यही कारण था कि चुनाव के तारीख की घोषणा में देरी हुई."

हालांकि चुनाव में देरी को लेकर आम आदमी पार्टी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. आम आदमी पार्टी का मानना था कि ये केवल एमसीडी चुनाव को टालने का एक तरीका है ताकि पार्टी हिमाचल और गुजरात चुनाव के बाद एमसीडी के लिए प्रचार कर सके. 

3 निगम को एक किया गया 

दिल्ली नगर निगम के तीन हिस्सों को जनवरी 2012 में तत्कालीन सीएम शीला दीक्षित ने बांटा था. इस बंटवारे के बाद साउथ दिल्ली (एसडीएमसी), नॉर्थ दिल्ली (एनडीएमसी) और ईस्ट दिल्ली (इडीएमसी) नगर निगम बनाई गई.

भारतीय जनता पार्टी काफी समय से दिल्ली नगर निगम के एकीकरण को मांग उठा रही थी. इस साल मार्च महीने में केंद्रीय कैबिनेट ने दिल्ली एमसीडी के एकीकरण पर मुहर लगा दी और फिर दोनों ही सदनों से विधेयक पास होने के बाद एकीकरण की प्रक्रिया पूरी हो गई. इस एकीकरण के बाद दिल्ली नगर निगम में फिर से वही व्यवस्था लागू हो गई, जो 10 साल पहले थी. अब एमसीडी वार्ड की संख्या 272 से घटकर 250 हो गई. इससे पहले दिल्ली एमसीडी में कुल 272 वॉर्ड थे.

एमसीडी और दिल्ली सरकार के बीच काफी बार फंड,अधिकार क्षेत्र और काम के बंटवारे को लेकर खींचतान होती रही है. तीनों निगम को एक करने की मांग के पीछे पार्टी का मानना था कि अगर ऐसा होता है तो यहां एक ही मेयर होगा और उसकी ताकत दिल्ली के सीएम के बराबर हो जाएगी. 

तीनों निगमों के एकीकरण से बीजेपी को फायदा इस तरह हो सकता है कि दिल्ली में तीन सरकारें (केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, नगर निगम) होना और उनमें तालमेल का अभाव राजधानी के विकास में रोड़ा बनता है. खासतौर पर जब तीनों जगह अलग अलग राजनीतिक दल का शासन हो. ऐसे में नगर निगम के एकीकरण के केंद्र सरकार के नियंत्रण को तरजीह दी जाएगी. 

तीनों नगर निगम को एक करने के पीछे की राजनीति 

साल 2012 में शीला दीक्षित की सरकार के दौरान जब नगर निगम को तीन हिस्सों में बांटा गया था तब से ही बीजेपी इसका विरोध कर रही है. इसका सबसे बड़ा कारण ये है कि तीनों नगर निगम के एक होने से मेयर भी एक होगा और उसकी ताकत मुख्यमंत्री के बराबर होगी. बीजेपी आरोप लगाती आई है कि दिल्ली की वर्तमान सरकार नगर निगमों को फंड जारी नहीं करती, जिसके कारण काफी नुकसान हो रहा है. 

वहीं दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी का कहना है कि इस मांग को चुनाव के समय ही क्यों फिर से उठाया गया. आप का कहना है कि बीजेपी 7-8 साल से केंद्र की सत्ता में है तो फिर चुनाव से पहले इसे एक करने का फैसला क्यों लिया जा रहा है.

लोकप्रियता की कमी 

आम आदमी पार्टी ने कई बार चुनाव में होने वाली देरी को लेकर ये दावा किया है कि बीजेपी जानबूझकर इस चुनाव को देर से करवा रही है. बीजेपी को डर है कि वह दिल्ली नगर निगम के चुनाव हार न जाए.  इसके अलावा बीजेपी ने देरी हथकंडा इसलिए भी अपनाया ताकि पार्टी के प्रति मतदाताओं में नाराज़गी वक्त बीतने के साथ कम हो जाए और उन्हें नए सिरे से अपनी चुनावी रणनीति बनाने का मौका भी मिल जाए.

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