कितनी है अयोध्या की विवादित और गैरविवादित जमीन, और क्यों हो रहा है विवाद
पूरी जमीन विवादित 2.77 एकड़ और गैविवादित 67.7 एकड़ जमीन है. यानि कुल जमीन है- 70.47 एकड़ है. इसी विवादित 2.77 एकड़ जमीन में 0.313 एकड़ विवादित जमीन पर रामलला विराजमान है.

नई दिल्ली: लोकसभा चुनाव से ऐन पहले मोदी सरकार ने अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण को लेकर अपना मास्टर स्ट्रोक चलते हुए सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की राम मंदिर-बाबरी मस्जिद की विवादित भूमि के अलावा जो गैरविवादित जमीन है उसे उसके असली मालिकों को लौटाने की अपील की है. केंद्र ने अपनी अर्जी में कहा है कि 67 एकड़ जमीन गैर विवादित है और इसे राम जन्मभूमि न्यास को लाटौई जाए. बाकी के बचे 0.313 एकड़ जमीन जो विवादित है इसपर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करे. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से 0.313 एकड़ भूमि को छोड़कर 2.77 एकड़ जमीन पर निर्माण कार्य की अपील की है.
आइए आपको बता दें कि अयोध्या की विवादित जमीन कितनी है और इसे लेकर पूरा मुद्दा और विवाद क्या है.
पूरी जमीन कितनी है?
पूरी विवादित जमीन 2.77 एकड़ और गैविवादित 67.7 एकड़ जमीन है. यानि कुल जमीन है- 70.47 एकड़ है. इसी विवादित 2.77 एकड़ जमीन में 0.313 एकड़ विवादित जमीन पर रामलला विराजमान है. सरकार ने अपनी अर्जी में सिर्फ इस जमीन को छोड़कर बाकी जमीनें लौटाने का आग्रह किया है.
जमीन का अधिग्रहण?
आपको बता दें कि अयोध्या में विवादित जमीन के आसपास दो बार सरकार ने जमीनें अधिग्रहित की हैं. पहला बार 1991 में राज्य सरकार ने जमीन अधिग्रहित की और दूसरी बार केंद्र सरकार ने अयोध्या कानून के तहत 1993 में विवादित जमीन के पास खाली पड़ी सभी जमीनों को अधिकग्रहित कर लिया.
अयोध्या एक्ट क्या है?
अयोध्या में राम मंदिर का विवाद काफी पुराना है, लेकिन आजाद भारत में इसकी शुरुआत 1949 से होती है. लंबी कानून खींचतान और राजनीतिक गरमा गर्मी के बीच 6 दिसंबर, 1992 में हिंदू कारसेवकों ने अयोध्या में विवाद बाबरी मस्जिद के ढांचे को तोड़ दिया. इसके बाद केंद्र की मौजूदा कांग्रेस सरकार ने 1993 में राम मंदिर पर एक अध्यादेश लेकर आई. 7 जनवरी 1993 को राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने इस अध्यादेश को मंजूरी दी. बाद में सरकार इसे बिल के रुप में संसद में लाई और जिसे संसद ने पारित किया. जिसे अयोध्या एक्ट के नाम से जाना जाता है. इस कानून के तहत विवादित 2.77 एकड़ जमीन के अलावा अगल बगल की 67.70 एकड़ जमीन भी अधिग्रहित की गई. तब सरकार ने इस जमीन का अधिग्रहण का मकसद राम मंदिर, मस्जिद और श्रद्धालुओं के लिए जनसुविधाएं, एक लाइब्री और म्यूजियम बनाने का बात बताया था.
पेचेदगियां क्या हैं
नरसिम्हा राव सरकार के दौरान अयोध्या कानून सर्वसम्मति से पारित किया था. अधिग्रहण के उद्देश्यों में अधिग्रहीत भूमि पर राममन्दिर, मस्जिद, संग्रहालय, वाचनालय और जनसुविधाओं वाले पांच निर्माण की बात की गई थी.
साल 2003 में सुप्रीम कोर्ट यथा स्थिति बनाए रखने की बात कह चुकी है. यानी सुप्रीम कोर्ट ये कह चुका है कि अंतिम फैसले के बाद विवादित भूमि के वास्तविक स्वामी या स्वामियों को उसके या उनके पूजास्थल के निर्माण के लिए उक्त भूमि का बड़ा हिस्सा दिया जाए.
आपको बता दें कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मालिकाना हक से जुड़े केस में सुप्रीम कोर्ट काफी लंबे समय से चल रहा है और इसे लेकर नियमित सुनवाई जल्द ही शुरू होनी है. 2010 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपने फैसले में विवादित स्थल को सुन्नी वक्फ बोर्ड, रामलला विराजमान और निर्मोही अखाड़ा के बीच 3 बराबर-बराबर हिस्सों में बांटने का आदेश दिया था.
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