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लखनऊ में उपद्रवियों के पोस्टर लगाने का मामला SC के 3 जजों की बेंच सुनेगी, फिलहाल HC के आदेश पर रोक नहीं

हाई कोर्ट ने लखनऊ के डीएम को तुरंत पोस्टर हटाने का आदेश दिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि आदेश का पालन करने के बाद 16 मार्च को सरकार उसे रिपोर्ट दे.सरकार का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन कर रहे इन लोगों से संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के तौर पर एक करोड़ 55 लाख रुपए की वसूली की जानी है.

नई दिल्ली: लखनऊ में CAA विरोधी प्रदर्शन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों के पोस्टर लगाए जाने के मामले पर सुप्रीम कोर्ट के 3 जजों की बेंच सुनवाई करेगी. आज 2 जजों की अवकाश कालीन बेंच ने मामले को बड़ी बेंच में भेजते हुए कहा कि इसे अगले हफ्ते सुना जाएगा. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के उस आदेश पर कोई रोक नहीं लगाई है, जिसमें सरकार से ऐसे पोस्टर तुरंत हटाने को कहा गया था.

लखनऊ में अलग-अलग चौक चौराहों पर 57 ऐसे लोगों की तस्वीरों वाले पोस्टर लगाए गए थे, जिन्होंने सरकार के मुताबिक 19 दिसंबर को सार्वजनिक संपत्ति की तोड़फोड़ की थी. सरकार का कहना है कि नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन कर रहे इन लोगों से संपत्ति को हुए नुकसान की भरपाई के तौर पर एक करोड़ 55 लाख रुपए की वसूली की जानी है.

6 मार्च को लखनऊ में इस तरह के पोस्टर लगाए गए. 7 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक्स पर संज्ञान ले लिया. रविवार, 8 मार्च को सुनवाई हुई और 9 मार्च को पोस्टर हटाने का आदेश जारी कर दिया गया. इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस गोविंद माथुर और राकेश सिन्हा की बेंच ने कहा कि सरकार को ऐसी कोई कानूनी शक्ति हासिल नहीं है, जिसके तहत वह इस तरह के पोस्टर लगाए. लोगों की तस्वीर के साथ लगे पोस्टर उनकी निजता के मौलिक अधिकार का हनन है.

हाई कोर्ट ने लखनऊ के डीएम को तुरंत पोस्टर हटाने का आदेश दिया. कोर्ट ने यह भी कहा कि आदेश का पालन करने के बाद 16 मार्च को सरकार उसे रिपोर्ट दे. ऐसे में अपने कदम को पूरी तरह से सही ठहरा रही यूपी सरकार के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख करना लाज़मी था.

आज यूपी सरकार की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी करने खड़े हुए सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, “हमारा कदम सुप्रीम कोर्ट के ही पहले आए फैसले के मुताबिक है. उस फैसले में आंदोलन के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वालों से वसूली किए जाने के लिए कहा गया था. 19 दिसंबर को हुई हिंसा में के उपलब्ध वीडियो के जरिए 95 लोगों की पहचान की गई, जिन पर तोड़फोड़ में शामिल होने का अंदेशा था. उन सब लोगों को नोटिस जारी किया गया. उनकी बात सुनी गई. आखिरकार, यह नतीजा निकला कि उनमें से 57 लोग तोड़फोड़ में शामिल थे. तब उन्हें पैसों की वसूली का नोटिस जारी किया गया.

बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस यू यू ललित ने सवाल उठाते हुए कहा, “इन लोगों को कब नोटिस जारी किया गया था? क्या इनसे वसूली की जो समय सीमा तय की गई थी, वह खत्म हो चुकी थी? अगर नहीं तो उससे पहले ही इनका पोस्टर लगा दिया जाने का क्या औचित्य था?”

मेहता ने कहा, “इन लोगों के पोस्टर इसलिए लगाए गए ताकि भविष्य में दूसरे लोग ऐसी घटना न करने के लिए प्रेरित हों. खुद इन लोगों को भी शर्मिंदगी महसूस हो और आगे के लिए सबक मिले.“ मेहता ने यूनाइटेड किंगडम की सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को भी कोर्ट के सामने रखा. इस फैसले में यह कहा गया है कि निजता का अधिकार बहुत अहम है. लेकिन जो लोग सार्वजनिक रूप से अनुशासनहीन आचरण करते हैं, उपद्रव या हिंसा करते हैं, उनकी तस्वीरों वाला पोस्टर लगाया जाना निजता के अधिकार का हनन नहीं माना जाएगा.

सॉलिसिटर जनरल ने यह भी कहा की निजता को मौलिक अधिकार घोषित करने वाले पुत्तास्वामी फैसले में भी जरूरी परिस्थितियों में निजता के कुछ पहलुओं को सार्वजनिक करने का अधिकार सरकार को दिया गया है. इस पर सवाल उठाते हुए 2 जजों की बेंच के सदस्य जस्टिस अनिरुद्ध बोस ने कहा, “लोग हर वह हर चीज कर सकते हैं, जिसकी कानून में मनाही नहीं है. लेकिन सरकार सिर्फ वही कर सकती है, जिसकी कानून में इजाजत है. दोनों की स्थितियों में फर्क है. आप हमें बताइए कि कौन से कानून के तहत आपको उपद्रवियों के पोस्टर लगाने का अधिकार हासिल है?”

इसके बाद अभिषेक मनु सिंघवी, कॉलिन गोंजाल्विस, सी यू सिंह जैसे वकील खड़े हो गए. इन लोगों का कहना था कि वह उन लोगों की नुमाइंदगी कर रहे हैं जिनके पोस्टर लखनऊ में लगाए गए हैं. उन्हें भी पक्ष रखने का मौका दिया जाना चाहिए. इस पर जस्टिस ललित ने कहा, “आप हाई कोर्ट में हुई कार्रवाई में पक्षकार नहीं है. इसलिए, आप यहां पर पक्ष रखने के लिए अलग से अर्जी दाखिल कीजिए. आपकी बात भी सुनी जाएगी.“

होली की छुट्टी के दौरान बैठी 2 जजों की अवकाशकालीन बेंच ने साफ किया कि मामले में सुप्रीम कोर्ट के कई पुराने फैसले सामने रखे गए हैं. दूसरे देशों की कोर्ट के भी कुछ फैसलों को पेश किया गया है. ऐसे में यह जरूरी है कि इसकी सुनवाई बड़ी बेंच में की जाए. कोर्ट ने मामला 3 जजों की बेंच के सामने भेजते हुए कहा है कि अगले हफ्ते सुनवाई होगी. चीफ जस्टिस उचित बेंच के गठन का आदेश जारी करेंगे.

गौरतलब है कि यूपी सरकार ने आज कोर्ट से अपनी तरफ से यह मांग नहीं की कि वह हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाए. न ही मामले को तीन जजों की बेंच में भेजते वक्त जजों ने अपनी तरफ से रोक का कोई आदेश दिया. ऐसे में पोस्टर को तुरंत हटाने वाला हाई कोर्ट का आदेश अभी भी कायम है. अब यह देखने वाली बात होगी कि यूपी सरकार पोस्टरों को हटाती है या सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित होने को ऐसा न करने का बहाना बनाती है.

करीब 2 दशक से सुप्रीम कोर्ट के गलियारों का एक जाना-पहचाना चेहरा. पत्रकारिता में बिताया समय उससे भी अधिक. कानूनी ख़बरों की जटिलता को सरलता में बदलने का कौशल. खाली समय में सिनेमा, संगीत और इतिहास में रुचि.
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