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BJP Foundation Day: 1984 की हार के बाद BJP का नाम बदलना चाहती थी पार्टी, लेकिन...

BJP Sthapna Diwas: जनता पार्टी की 4 अप्रैल 1980 को एक बैठक हुई और इसमें पार्टी का सदस्य और संघ का सदस्य होने के मुद्दे पर वोटिंग हुई. इसमें तय हुआ कि पार्टी का कोई भी सदस्य संघ का सदस्य नहीं हो सकता.

BJP Sthapna Diwas 2023: दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की स्थापना 6 अप्रैल 1980 को हुई. हर साल इस दिन बीजेपी का स्थापना दिवस मनाया जाता है, लेकिन इस पार्टी की स्थापना के शुरुआती दिनों में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब इसे लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा था.

तब पार्टी के तमाम नेता इस पार्टी का नाम बदलकर फिर से जनसंघ कर देना चाहते थे, बस अटल बिहारी वाजपेयी की एक जिद की वजह से पार्टी का नाम नहीं बदला और 1984 के चुनाव में महज दो सीटों पर सिमटने वाली पार्टी 2019 के लोकसभा चुनाव में 303 सीटें जीत गई.

4 अप्रैल 1980 को जनता पार्टी की एक बैठक हुई और इस बैठक में जनता पार्टी का सदस्य और संघ का सदस्य होने के मुद्दे पर वोटिंग हुई. 14 के मुकाबले 17 वोटों से तय हुआ कि जनता पार्टी का कोई भी सदस्य संघ का सदस्य नहीं हो सकता.

इसकी वजह से 1977 में जनता पार्टी में विलय कर चुके जनसंघ के नेताओं ने तय किया कि वो जनता पार्टी को तो छोड़ सकते हैं, लेकिन संघ को नहीं. 

1980 में दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में बैठक

दिल्ली के फिरोजशाह कोटला में 5 अप्रैल 1980 को  एक बैठक हुई. ये बैठक जनसंघ की थी, जो जनवरी 1980 में हुए चुनाव में बुरी तरह से हार गया था और उसके पास महज 16 सीटें थीं. उम्मीद थी कि बैठक में करीब 1500 लोग जुटेंगे,लेकिन वहां आए कुल 3683 लोग, जो पार्टी जनसंघ के प्रतिनिधि थे.

उस वक्त लाल कृष्ण आडवाणी ने एक नई पार्टी बनाने की घोषणा की. अगले दिन यानी कि 6 अप्रैल का दिन खत्म होते-होते नई पार्टी का नाम तय कर दिया गया और कहा गया कि इस पार्टी का नाम जनसंघ नहीं होगा, बल्कि अब इसे भारतीय जनता पार्टी के नाम से जाना जाएगा. 

नई पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष वाजपेयी

अटल बिहारी वाजपेयी इस नई पार्टी के संस्थापक अध्यक्ष बनाए गए.  कमल का फूल इस पार्टी का चुनाव चिह्न बना. इस नई-नवेली पार्टी के सामने सबसे बड़ा चुनाव साल 1984 में आया. तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकों ने गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

प्रधानमंत्री की हत्या से उपजी सहानुभूति के बीच हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने एकतरफा जीत दर्ज की. कांग्रेस को कुल 515 सीटों में से 403 सीटें मिलीं और उसका वोट प्रतिशत 49.1 फीसदी तक पहुंच गया.

इस चुनाव में बीजेपी को महज दो सीटें मिलीं. एक सीट गुजरात की मेहसाणा थी, जहां से एके पटेल ने जीत दर्ज की थी. जबकि दूसरी सीट आंध्र प्रदेश की हनमकोंडा थी. यहां से चंदूपाटला जंगा रेड्डी ने जीत दर्ज की थी.

खुद इस पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी माधव राव सिंधिया के हाथों लोकसभा का चुनाव हार गए.

राजीव गांधी के लिए विशाल हिंदू जनादेश

इस चुनावी रिजल्ट को वाजपेयी के बाद बीजेपी के दूसरे सबसे बड़े नेता रहे लाल कृष्ण आडवाणी ने शोकसभा बताया तो संघ के मुखपत्र रहे ऑर्गनाइजर ने इसे राजीव गांधी के लिए विशाल हिंदू जनादेश बताया. इससे पूरी की पूरी पार्टी का मनोबल बुरी तरह से टूट गया था. 

पार्टी के नेता इस पर बात करने लगे थे कि क्या उन्हें फिर से जनसंघ की ओर लौट जाना चाहिए और क्या बीजेपी को खत्म करके जनसंघ को ही जीवित करना ज्यादा कारगर नहीं होगा?

इस बीच वाजपेयी अड़ गए और बोले, "जनसंघ को दोबारा जीवित करना फिर से अतीत में लौटने जैसा होगा और अगर हमें प्रगति करनी है, तो हम ऐसा नहीं कर सकते हैं."

बड़ी हार की समीक्षा

वाजपेयी ने ये फैसला तो अकेले कर लिया कि वो पीछे नहीं हटेंगे. ये पार्टी की बड़ी हार थी तो इसकी समीक्षा भी होनी ही थी और किसी को जिम्मेदारी भी लेनी ही थी. इसके लिए राष्ट्रीय कार्यकारिणी की तमाम बैठकें आयोजित होती रहीं. इसमें बीजेपी के नेता एक-दूसरे पर ही आरोप लगाते रहे.

ऐसी ही एक बैठक मार्च 1985 में भी हुई. इसमें बतौर पार्टी अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी ने भाषण दिया. वो बोले, "पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर मैं पार्टी की विधानसभा और लोकसभा चुनाव में असफलता की नैतिक जिम्मेदारी लेता हूं और मैं वो हर दंड भुगतने को तैयार हूं जो पार्टी तय करेगी."

जब वाजपेयी ने पूछा कि...

इस दौरान वाजपेयी ने पूछा कि क्या पार्टी की हार 1977 में जनसंघ को जनता पार्टी में विलय करने और 1980 में जनता पार्टी से अलग होने के हमारे फैसलों के कारण थी. उन्होंने साथ ही ये भी पूछा कि क्या बीजेपी को पीछे हटना चाहिए और भारतीय जनसंघ को पुनर्जीवित करना चाहिए.

इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए वाजपेयी के परामर्श पर राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने एक कार्यसमिति का गठन किया. इसका अध्यक्ष कृष्णलाल शर्मा को बनाया गया, जो पार्टी के झुकावों पर पुनर्विचार करने वाली थी और पार्टी के लिए अगले पांच साल का रोडमैप तैयार करने वाली थी.

प्रदेश कार्यालयों से भी रिपोर्ट मंगवाकर इस कार्यसमिति ने अपनी रिपोर्ट पेश की और कहा, "हमें जनसंघ की विरासत पर बहुत गौरव है. हमें जनता पार्टी में होने का बहुत लाभ हुआ है और हम भाजपा का निर्माण करते हुए आगे की तरफ प्रयाण करेंगे और अपने अभिलक्षित उद्देश्यों की तरफ आगे बढ़ेंगे."

तब का दिन है और आज का दिन है. कभी जो बीजेपी 1984 के लोकसभा चुनाव में महज दो सीटों पर सिमट गई थी उस पार्टी के पास आज लोकसभा की कुल 303 सीटें हैं. यही नहीं वो निरंतर आगे की ओर बढ़ती जा रही है. 

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