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यूं ही Bharat Jodo Yatra से दूरी नहीं रख रहे अखिलेश-मायावती-जयंत, जानिए क्या हैं वजह?

UP Politics: भारत जोड़ो यात्रा के जरिये कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पूरे देश में राहुल गांधी और पार्टी के पक्ष में सियासी माहौल तैयार करने की कोशिश कर रही है.

Akhilesh Jayant Distence Bharat Jodo Yatra: कन्याकुमारी से कश्मीर तक राहुल गांधी के नेतृत्व में निकाली जा रही 'भारत जोड़ो यात्रा' तीन जनवरी को उत्तर प्रदेश पहुंचेगी. कांग्रेस ने इस यात्रा में शामिल होने के लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव, आरएलडी चीफ जयंत चौधरी और बसपा सुप्रीमो मायावती को निमंत्रण भेजा है. इतना ही नहीं, कांग्रेस ने भाजपा नेता दिनेश शर्मा को भी भारत जोड़ो यात्रा का न्योता भेजा है.  

दरअसल, भारत जोड़ो यात्रा के जरिये कांग्रेस 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले पूरे देश में राहुल गांधी और पार्टी के पक्ष में सियासी माहौल तैयार करने की कोशिश कर रही है. हालांकि, कांग्रेस इस बात से इनकार ही करती है. पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं ने इस अवधारणा को खारिज करने की कोशिश भी की है. वहीं, इस बारे में जब सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव से सवाल पूछा गया, तो उन्होंने निमंत्रण मिलने से ही इनकार कर दिया.

वैसे, अखिलेश यादव इस मामले में अकेले नहीं हैं. आरएलडी नेता जयंत चौधरी ने भी कार्यक्रम की व्यस्तता का हवाला देते हुए भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने से तकरीबन मना ही कर दिया है. वहीं, बसपा सुप्रीमो मायावती के इस यात्रा में शामिल होने की संभावना शून्य ही कही जा सकती हैं. भाजपा नेता दिनेश शर्मा के भी भारत जोड़ो यात्रा में शामिल होने की उम्मीद नहीं है. सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर अखिलेश-मायावती-जयंत भारत जोड़ो यात्रा से दूरी क्यों बना रहे हैं?

कांग्रेस का साथ नहीं आया अखिलेश को रास

2017 के यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था. उस दौरान अखिलेश यादव और राहुल गांधी की जोड़ी को 'यूपी के लड़के' का नाम दिया गया था. हालांकि, चुनावी नतीजों में सपा और कांग्रेस का ये गठबंधन मुंह के बल गिर पड़ा था. 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में भाजपा के एनडीए गठबंधन को रिकॉर्ड 325 सीटों पर जीत मिली थी. 

वहीं, सत्ताधारी पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ कांग्रेस को भी जनता ने पूरी तरह से नकार दिया था. सपा-कांग्रेस के इस गठबंधन को महज 54 सीटों के साथ संतोष करना पड़ा था. इसमें कांग्रेस का हाल तो सबसे खराब था. पार्टी को केवल सात विधानसभा सीटों पर ही जीत हासिल हुई थी. इसके कुछ ही समय बाद ये गठबंधन टूट गया था. 2019 के लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बसपा सुप्रीमो मायावती से गठबंधन किया था, लेकिन ये भी फेल ही रहा था.

आसान शब्दों में कहें, तो समाजवादी पार्टी और अखिलेश यादव को बड़े सियासी दलों का साथ लेने का कोई फायदा नहीं पहुंचा था. वहीं, 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव में छोटे सियासी दलों के साथ किए गए गठबंधन में अखिलेश यादव को 111 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश में सपा को मजबूत करने की कोशिश में जुटे अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ गठबंधन का खतरा मोल नहीं लेना चाहेंगे.

जयंत चौधरी तो पहले ही अखिलेश के साथ

राष्ट्रीय लोक दल यानी आरएलडी के चीफ जयंत चौधरी को समाजवादी पार्टी का खूब रास आ रहा है. भले ही आरएलडी ने यूपी विधानसभा चुनाव में 8 सीटें ही जीती हों, लेकिन हाल ही में हुए खतौली विधानसभा उपचुनाव में भी जयंत चौधरी का सिक्का चला था. आरएलडी ने भाजपा के कब्जे वाली ये सीट 22 हजार वोटों से जीती थी. जयंत चौधरी को समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा भी भेजा है, तो वो शायद ही अखिलेश यादव का साथ छोड़ना चाहेंगे. वैसे भी सपा के साथ रहते हुए पश्चिमी यूपी में आरएलडी और मजबूत ही हुई है. कुल मिलाकर कांग्रेस की दाल आरएलडी नेता जयंत के सामने भी नहीं गलनी है.

मायावती का 'हाथी' अपनी अलग ही राह पर

बसपा सुप्रीमो मायावती ने यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में किसी भी सियासी दल के साथ गठबंधन नहीं किया था. इतना ही नहीं, मायावती ने विधानसभा चुनाव अखिलेश यादव की मुश्किलें बढ़ाने में भी कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी थी. साथ ही मायावती ने ये भी ऐलान कर ही दिया है कि बसपा का सपा से गठबंधन नामुमकिन है. इस लिहाज से अगर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा में मायावती और अखिलेश यादव का एकसाथ शामिल होना मुश्किल ही है. हां, अगर कांग्रेस केवल मायावती को निमंत्रण देती, तो कुछ होने की संभावना भी थी.

वैसे भी अखिलेश-जयंत-मायावती जैसे दिग्गज नेता यूपी में अपना जनाधार खो चुकी कांग्रेस के साथ शायद ही कोई संबंध रखना चाहेंगे. सपा, बसपा और आरएलडी जैसे सियासी दल 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में पहले से ही जुटे हुए हैं. कांग्रेस को साथ में जोड़कर वो लोकसभा सीटों के बंटवारे में एक और हिस्सेदार को नहीं जोड़ना चाहेंगे.

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देवेश त्रिपाठी एबीपी न्यूज की डिजिटल वेबसाइट में कार्यरत हैं. राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते हैं. व्यंग्यात्मक लेखन में रुचि रखते हैं.
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