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बोर्दोवा थान जाने से रोके गए राहुल गांधी, असम के इस तीर्थ स्थल का क्या है धार्मिक महत्व?

बोर्दोवा मैनेजमेंट कमेटी का कहना है कि रामलला प्राण प्रतिष्ठा के कारण बोर्दोवा मठ में हजारों लोगों की भीड़ थी. ऐसे में राहुल गांधी से पहले ही थान नहीं जाने के लिए कहा गया था.

कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सोमवार (22 जनवरी) को असम के वैष्णव संत शंकरदेव के जन्मस्थान बोर्दोवा थान में जाने की अनुमति नहीं दी गई. वह पार्टी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा के दौरान असम के नागांव पहुंचे. उनका बोर्दोवा थान जाने का प्रोग्राम था, लेकिन उन्होंने आरोप लगाया कि उन्हें मंदिर जाने से रोका गया. उनका यह भी कहना था कि पहले उन्हें अनुमित दी गई, लेकिन बाद में रोक दिया गया. इसके चलते वह कल धरने पर बैठ गए. उनके साथ कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई और बोर्दोवा विधायक सिबमोनी बोरा भी थे.

सुबह के समय राहुल गांधी को वहां जाने की अनुमति नहीं मिली, लेकिन 3 बजे के बाद वह मंदिर में जा सकते थे. रविवार को थान की मैनेजमेंट कमेटी ने सिबमोनी बोरा को पत्र लिखकर कहा था कि राहुल गांधी को दोपहर तीन बजे तक मंदिर में जाने की अनुमति नहीं दी जाएगी क्योंकि सुबह से अयोध्या राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के कारण मंदिर में भारी भीड़ मौजूद रहेगी. असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भी राहुल गांधी से अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन का कार्यक्रम संपन्न होने के बाद शंकरदेव मठ जाने की अपील की थी.

कौन थे श्रीमंत शंकरदेव?
असम के नागांव में स्थित बोर्दोवा थान का राज्य के वैष्णवों के लिए खास महत्व है. यह थान वैष्णवों के संत श्रीमंत शंकरदेव के जन्मस्थान पर बना है. नागांव जिले की वेबसाइट के मुताबिक, शंकरदेव ने 15वीं शताब्दी में नव वैष्णव के प्रचार के लिए बोर्दोवा में पहले कीर्तन घर की स्थापना की थी और एक शरण नाम धर्म का प्रचार किया था. उन्होंने मूर्ति पूजा के बदले भगवान के नाम को अधिक महत्व दिया. उन्होंने गायन, नृत्य और नाटक के माध्यम से भगवान की पूजा करने को महत्व दिया है. उन्होंने असम में भ्रमण करके इसी तरह एक शरण नाम धर्म का प्रचार किया था.

क्या है एक शरण नाम धर्म
एक शरण नाम धर्म में भगवान कृष्ण की भक्ति के रूप में पूजा की जाती है. कृष्ण के नाम और उनके कार्यों का गायन और सामूहिक श्रवण कर उनकी पूजा की जाती है और एक शरण नाम धर्म में मूर्ति पूजा के बदले भगवान का नाम लेकर भक्ति की जाती है. इसमें इसे ही भगवान की पूजा माना जाता है. शंकरदेव समानता और भाईचारे पर आधारित समाज की बात करते थे. उनके धर्म के चार घटक- देव, नाम, भक्त और गुरु हैं.

श्रीमंत शंकरदेव ने असम में घूम-घूम कर नव-वैष्णव का प्रचार किया था. जिन-जिन स्थानों पर वह गए थे, 16वीं शताब्दियों में उन्हें मठ बना दिया गया था. आज इन मठों को वहां थान या सत्र के नाम से जाना जाता है. इन संस्थानों में संगीत, नृत्य और नाटक के माध्यम से भगवान की पूजा की जाती है. शंकरदेव ने कला के माध्यम से भगवान की पूजा करने की अनूठी पद्धति की शुरुआत की थी, जिसे यहां अभी भी फॉलो किया जाता है. हर सत्र में पूजा करने के लिए एक हॉल होता है और सत्र का एक हेड होता है, जिसे सत्राधिकार कहते हैं.

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