रामलला के पक्षकार ने कहा- भगवान राम का जन्मस्थल अपने आप में देवता है, कोई मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने 9वें दिन अयोध्या मामले की सुनवाई की, रामलला के पक्षकार ‘राम लला विराजमान’ ने दलीलें दीं.

नई दिल्ली: राम लला की ओर से पैरवी कर रहे एक वकील ने सुप्रीम कोर्ट से बुधवार को कहा कि अयोध्या में भगवान राम का जन्मस्थल अपने आप में एक देवता है और कोई भी महज मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कर इस पर मालिकाना हक का दावा नहीं कर सकता. दशकों पुराने राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद में पक्षकारों में से एक ‘राम लला विराजमान’ ने कहा कि हिन्दुओं ने ‘जन्मस्थान’ पर हमेशा से पूजा-अर्चना के अपने अधिकार का इस्तेमाल और दावा किया है.
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली पांच सदस्यीय पीठ आज नौवें दिन मालिकाना विवाद मामले में सुनवाई कर रही थी. वरिष्ठ अधिवक्ता सी एस वैद्यनाथन ने पीठ से कहा कि न तो निर्मोही अखाड़ा और न ही मुस्लिम पक्ष प्रतिकूल कब्जा के कानूनी सिद्धांत के तहत अयोध्या में 2.77 एकड़ विवादित भूमि पर स्वामित्व अधिकार का दावा कर सकते हैं.
पीठ में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर भी शामिल हैं. वैद्यनाथन ने पीठ से कहा, ‘‘हिन्दुओं ने जन्मस्थान पर हमेशा पूजा-अर्चना के अधिकार का दावा किया है और इसलिए यह प्रतिकूल कब्जे का मामला नहीं हो सकता.’’
प्रतिकूल कब्जे के सिद्धांत की बात तब आती है जब किसी व्यक्ति के पास संपत्ति का स्वामित्व न हो, लेकिन वह वास्तविक स्वामी द्वारा 12 साल तक नहीं निकाले जाने और अपने कब्जे के आधार पर संपत्ति का मालिक बन जाता है. वैद्यनाथन ने कहा, ‘‘यदि संपत्ति स्वयं में भगवान राम का जन्मस्थल है तो इस पर कोई महज मस्जिद जैसा ढांचा खड़ा कर स्वामित्व अधिकार का दावा नहीं कर सकता.’’ मामले पर सुनवाई गुरुवार को फिर शुरू होगी.
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