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सागर और विशाल का दो-दो बार नहीं निकला था प्रीलिम्स, एक ने 13वां रैंक तो दूसरे ने 49वां रैंक हासिल किया

13वां रैंक हासिल करने वाले सागर और 49वां रैंक हासिल करने वाले विशाल ने कई रोचक बातें साझा कीं. बिहार के सागर ने तो अपनी बात की शुरुआत राज्य के मिथिलांचल में बोले जाने वाली मैथिली में की. वहीं विशाल ने इस परीक्षा के दौरान होने वाला दर्द साझा करते हुए कहा कि जब वो दूसरी बार इंटरव्यू से छंट गए थे तब वो एक घंटे तक रोए थे.

नई दिल्ली: एबीपी न्यूज़ के टॉपर्स सम्मेलन में 13वां रैंक हासिल करने वाले सागर और 49वां रैंक हासिल करने वाले विशाल ने कई रोचक बातें साझा कीं. बिहार के सागर ने तो अपनी बात की शुरुआत राज्य के मिथिलांचल में बोले जाने वाली मैथिली में की. वहीं विशाल ने इस परीक्षा के दौरान होने वाला दर्द साझा करते हुए कहा कि जब वो दूसरी बार इंटरव्यू से छंट गए थे तब वो एक घंटे तक रोए थे. लेकिन फिर विशाल ने तीसरे मौके के लिए कमर कस ली.

परिवार के वर्दी वालों ने IAS लेने के लिए प्रेरित किया आपको बता दें कि 13वां रैंक हासिल करने वाले सागर से जब ये पूछा गया कि उन्होंने IAS की जगह IPS बनने का फैसला क्यों लिया तब उन्होंने कहा कि परिवार में पहले से पुलिस की वर्दी पहनने वाले लोगों की वजह से उन्हें इसकी प्रेरणा मिली. तैयारी के लिए विषय चुनने के सवाल पर उन्होंने कहा कि उनका गणित का बैकाग्राउंड था और उन्होंने इसी को विकल्प के तौर पर चुना. फिर जमकर तैयारी में लग गए.

दो बार प्रीलिम्स नहीं निकला था आपको ये भी बता दें कि सागर का दो बार प्रीलिम्स नहीं निकला था. लेकिन उन्हें पता था कि प्रीलिम्स पास कर गए तो गणित की ताकत से बाकी की परीक्षा निकाल लेंगे. जब उनसे पूछा गया कि उनका इंजीनियरिंग का अनुभव कैसा रहा तब उन्होंने कहा कि IIT आपको ईमानदारी बनाता है.  उन्होंने ये भी कहा कि 12वीं में जेईई की परीक्षा देने के समय बच्चों को करियर के विकल्पों का पता नहीं होता. लेकिन जब वो कॉलेज पहुंचते हैं तब उन्हें इसका पता चलता है और वहां से उनका रास्ता बदल जाता है.

बिहार कैडर की है चाह उन्होंने सरकारी पैसे का बच्चों की शिक्षा पर हो रहे खर्च के व्यर्थ जाने के सवाल पर कहा कि IAS-IPS बनने वाले इंजीनियरिंग की पढ़ाई का इस्तेमाल भी अपनी सेवा को बेहतर तरीके से देने में कर सकते हैं. जब उनसे पूछा गया कि उन्हें कौन सा कैडर चाहिए तो उन्होंने पूरा ज़ोर देकर कहा कि उन्हें बिहार कैडर चाहिए.

मेडिटेशन और संगीत से मिलती है राहत सागर का कहना है कि उन्हें परिवार का पूरा सहियोग मिला. वहीं, उनके पापा को हमेशा लगता था कि वो टॉप- 20 में रहेंगे. जब उनसे पूछा गया कि वो तैयारी के दौरान होने वाले तनाव से कैसे निपटते थे तब जवाब में उन्होंने कहा कि तैयारी के दौरान मेडिटेशन से सेहत अच्छी रहती है और संगीत भी काफी मदद करता है. उन्होंने ज़ोर देकर कहा तैयारी का मूल मंत्र अख़बार है और कभी भी इसे नहीं छोड़ना चाहिए.

सागर ने ये भी कहा कि अगर उन्हें बिहार कैडर मिलता है तो वो लॉ एंड ऑर्डर पर बहुत काम करेंगे है और साइबर क्राइम से निपटने में भी अपना योगदान देना चाहेंगे.

तीसरा बार भी ठीक नहीं हुआ था प्रीलिम्स, फिर से तैयारी में लग गए थे विशाल 49वां रैंक हासिल करने वाले विशाल ने बताया कि उनका प्रीलिम्स ठीक से नहीं हुआ लेकिन फिर वो प्रीलिम्स पास कर गए जिसके बाद वो पूरी ताकत से मेन्स और इंटरव्यू की तैयारी में जुट गए. दो बार इस परीक्षा में पास नहीं कर पाने वाले विशाल से जब पूछा गया कि अगर तीसरी बार में भी वो पास नहीं हो पाते तब उनके पास क्या विकल्प थे, इसके जवाब में उन्होंने कहा कि उन्होंने एम-टेक किया है लेकिन उन्हें इससे जुड़े क्षेत्र में रुचि नहीं है. वहीं, विशाल ने इंटरव्यू में भी ईमानदारी से बताया कि उनके पास एम-टेक करने की कोई वजह नहीं थी, उन्होंने बस ऐसे ही ये कोर्स कर लिया.

प्रथामिक शिक्षा के क्षेत्र में सुधार का है लक्ष्य उनसे भी जब वही सवाल दोहराया गया कि IIT जैसे संस्थानों में सरकार बच्चों की पढ़ाई पर पैसे खर्च करती है, ऐसे में उनका ये क्षेत्र छोड़ना सरकार के पैसों की बर्बादी कैसे नहीं? इसके जवाब में उन्होंने कहा कि IIT की पढ़ाई के दौरान भले ही सरकार छात्रों पर पैसे खर्च करती हो लेकिन काम वही करना चाहिए जिसमें खुद का सबसे अच्छा इस्तेमाल कर सकें.  विशाल का लक्ष्य प्रथामिक शिक्षा के क्षेत्र में सुधार करना है. वहीं, वो वॉटर रिसोर्सेज के क्षेत्र में भी काम करना चाहते हैं.

ट्रांसफर हो तो पुराने अनुभव का करें इस्तेमाल जब उनसे पूछा गया कि अगर किसी अधिकारी को सज़ा के तौर पर ट्रांसफर मिलता है तो उसे क्या करना चाहिए, तब उन्होंने कहा कि सज़ा के तौर पर मिले ट्रांसफर को लेकर अफसर की स्ट्रेटजी ये होनी चाहिए कि वो नई जगह अपने पुराने अनुभव का जमकर इस्तेमाल करे. तैयारी से जुड़े सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि बड़े लक्ष्य से ना घबराएं और इसे छोटा-छोटा बनाकर हासिल करें.

ग्रमीण इलाके वालों को होती हैं काफी मुश्किलें वहीं, उन्होंने ये भी कहा कि UPSC की परीक्षा के दौरान ग्रमीण इलाके का होने की वजह से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. उन्होंने बताया कि उन्होंने अपनी पढ़ाई हिंदी मीडियम से की थी और बोर्ड के बाद अंग्रेज़ी पर खूब काम करना पड़ा. इंटरव्यू में पूछे गए सवालों के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि वो कानपुर से हैं जिसकी वजह से कानपुर और गंगा से जुड़े काफी सवाल पूछे गए. सिविल इंजीनियरिंग के बैकग्राउंड की वजह से सबसे ज़्यादा सवाल इसी से पूछे गए.

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