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प्रयागराज: क्वारंटीन सेंटर की कमी उजागर करने वाले प्रोफ़ेसर को बड़ी राहत, HC ने रद्द की FIR, सरकार और अफसरों को कड़ी फटकार

हाईकोर्ट ने इस मामले में तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा है कि इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी से सम्बद्ध डिग्री कालेज के प्रोफ़ेसर के खिलाफ जिस तरह मनमाने तरीके से एफआईआर दर्ज की गई, उससे साफ़ है कि अफसरान अपनी कमियों को उजागर करने वाली आवाज़ को दबाना चाहते हैं.

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने क्वारंटीन सेंटर की अव्यवस्था के बारे में फेसबुक पर टिप्पणी करने के आरोपी प्रोफ़ेसर के खिलाफ प्रयागराज में दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया है और साथ ही सरकारी अमले को जमकर फटकार लगाई है. हाईकोर्ट ने इस मामले में तल्ख़ टिप्पणी करते हुए कहा है कि इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी से सम्बद्ध डिग्री कालेज के प्रोफ़ेसर के खिलाफ जिस तरह मनमाने तरीके से एफआईआर दर्ज की गई, उससे साफ़ है कि अफसरान अपनी कमियों को उजागर करने वाली आवाज़ को दबाना चाहते हैं. ऐसी कार्रवाई करते हैं, जिससे आगे कोई भी विरोध करने या कमी उजागर करने की हिम्मत न जुटा सके. कोर्ट ने इस मामले को लेकर यूपी सरकार के कामकाज पर भी सवाल उठाए हैं और कहा है कि ऐसा लगता है कि राज्य का अपने अधिकारियों पर कोई नियंत्रण नहीं रह गया है.

अदालत ने इस मामले में इलाहाबाद सेंट्रल युनिवर्सिटी से सम्बद्ध ईविंग क्रिश्चयन कालेज के प्रोफ़ेसर और शिक्षकों की संस्था आक्टा के महासचिव डॉ उमेश प्रताप सिंह के खिलाफ दर्ज की गई एफआईआर को रद्द कर दिया है. यह आदेश जस्टिस पंकज नकवी व जस्टिस विवेक अग्रवाल की खंडपीठ ने दिया है .

हाईकोर्ट ने एफआईआर रद्द करते हुए कहा कि यह दुर्भावना से प्रेरित होकर दर्ज कराई गई थी. कोर्ट ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि प्रशासन फेसबुक पर क्वारंटाइन सेंटर की अव्यवस्था और उसकी कमियों के खिलाफ की गई टिप्पणियों के आधार पर अपनी व्यवस्था में सुधार करता या इस पोस्ट के बाद उसमें इंगित की गई कमियों में सुधार लाता और अपनी व्यवस्थागत कमियों को दूर करता, तो वह इस बात की प्रशंसा करता. परंतु प्रशासन ने ऐसा कुछ ना करके अपने द्वारा किए गए कृत्य को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया. न्यायालय ने कहा है कि इससे ऐसा लगता है जैसे राज्य का अपने अधिकारियों पर नियंत्रण ख़त्म हो रहा है और वे विरोध के किसी स्वर को उठने ही नहीं देना चाहते हैं. कहा जा सकता है कि सुधारवादी आवाजों के प्रति असहिष्णुता प्रदर्शित करने के लिए प्रशासन दोषी है और यह न्याय के प्रशासन में एक प्रकार का हस्तक्षेप है.

गौरतलब है कि डा० उमेश प्रताप सिंह ने जून महीने में प्रयागराज के एल वन लेवल के कोविड हॉस्पिटल और क्वारंटीन सेंटर में सुविधाओं की कमी को लेकर फेसबुक पर पोस्ट डाली थी. इस पर हॉस्पिटल के सुपरिटेंडेंट डॉ अमृत लाल यादव ने 23 जून को उनके खिलाफ एफ आई आर दर्ज कराई. जिसमें आईपीसी के सेक्शन 500 (2) और 500 के प्रावधानों के तहत अपराध दर्ज किया गया. 24 जून को ही महामारी (संशोधन) विधेयक 2020 के सेक्शन 3(2) के अंतर्गत एक नई धारा जोड़ दी गयी.

इसके विरुद्ध डॉ उमेश प्रताप सिंह ने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दर्ज प्राथमिकी को चुनौती दी. उनके वकील ने न्यायालय में पक्ष रखते हुए कहा कि किसी भी क्वारंटाइन सेंटर की अव्यवस्था और उसकी कमियों को उजागर करना किसी भी प्रकार से भारतीय दंड संहिता की धारा 505 दो और 501 के तहत अपराध नहीं बनता है और न ही महामारी (संशोधन) विधेयक 2020 के अंतर्गत किसी प्रकार का अपराध नहीं बनता है. कोर्ट का भी मानना है कि यदि कोई नागरिक प्रशासन की व्यवस्था से असंतुष्ट होकर फेसबुक पर कोई पोस्ट लिखता है तो इसे वैमनस्व बढ़ाने वाला अथवा व्यवस्था को बदनाम करने वाली प्रिंटेड विषय वस्तु के रूप में नहीं देखा जा सकता है. इस कारण यह महामारी एक्ट की धाराओं के अंतर्गत नहीं आता है .

हाईकोर्ट ने कहा कि यह बिल्कुल स्पष्ट है कि राज्य के अधिकारियों द्वारा अपने क्वॉरेंटाइन सेंटर के कुप्रबंधन और कुव्यवस्था के विरुद्ध उठाई गई आवाज को कुचलने के लिए एफ आई आर किया गया और इस प्रकार का एफआईआर स्पष्ट रूप से दुर्भावनापूर्ण है और रद्द करने योग्य हैं. हाईकोर्ट ने ने कोटवा बनी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के सुपरिंटेंडेंट डॉ यादव व सी एम एस पर 5 हजार रूपया हर्जाना लगाया है, जो उन्हें अपने वेतन से देना है .

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