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'जादूगर' ने एक पल में गायब कर दिया कांग्रेस आलाकमान का इकबाल?

अशोक गहलोत को राजनीतिक का जादूगर कहा जाता है. कई संकटों और लड़ाइयों में उन्होंने अपने कुशल राजनीतिक दांवपेचों को जरिए सफलता पाई है. लेकिन इस बार उन्होंने आलाकमान को ही लपेटे में ले लिया.

साल 1998 में जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली थी तो दिल्ली में उनका आवास 10 जनपद देश की सबसे ताकतवर जगहों में शुमार होता चला गया. यूपीए शासनकाल में तो इस बात पर सीधे आरोप लगते थे कि फैसले प्रधानमंत्री कार्यालय से नहीं सोनिया गांधी के आवास से लिए जाते हैं.

लेकिन 2 दशक बाद गांधी परिवार की सबसे बड़ी नेता सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के आवास पर इससे पहले इतनी बेचारगी कभी नहीं देखी गई. गांधी परिवार के बेहद करीबी और तीन-तीन प्रधानमंत्रियों के साथ काम कर चुके राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने वो कर दिखाया जो बीते 3 दशकों से कोई नहीं कर सका. 

कांग्रेस अध्यक्ष का पद जिसे सोनिया गांधी 20 साल से संभाल रही थीं वो उसे अशोक गहलोत को देने की तैयारी कर चुकी थीं. लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि जादूगर नाम से मशहूर अशोक गहलोत के मन में कुछ और ही चल रहा था. दिल्ली का वो फरमान जिसकी तामील एक लाइन में होनी थी उसको कांग्रेस के सबसे समर्पित क्षत्रप ने बगावत में तब्दील कर दिया.

अशोक गहलोत ने साफ बता दिया है कि वो कांग्रेस अध्यक्ष पद के बदले राजस्थान के सीएम की कुर्सी को बिलकुल कुर्बान नहीं करेंगे. बुधवार को दिल्ली में हुई मुलाकात के बाद उन्होंने माफी तो मांगी लेकिन इरादे फिर जता दिए....राजस्थान की कुर्सी से समझौता वो खुद किसी भी कीमत पर नहीं करेंगे. 

सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ के गेट पर जब गाड़ी रुकी तो मीडिया के कैमरे की नजर उनके कागज पर पड़ी जिसमें लिखा था, 'जो कुछ भी हुआ दुखद है...मैं बहुत आहत हूं'. लेकिन अशोक गहलोत ने इरादा साफ करके आए थे. सोनिया गांधी से मिलने के बाद उन्होंने मीडिया से कहा वो एक बार फिर कांग्रेस आलाकमान के आदेश की नाफरमानी ही थी. 

उन्होंने कहा,' जयपुर में बीते दिनों जो कुछ भी हुआ उसे सबको हिलाकर रख दिया है. देश में संदेश में गया है कि मैं सीएम बने रहना चाहता हूं. एक लाइन का प्रस्ताव पारित नहीं करा सका. मैंने कांग्रेस अध्यक्ष से माफी मांगी है.' इसके साथ ही मीडिया में ये भी खबर आई गई कि वो कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव नहीं लड़ेंगे.

दरअसल अशोक गहलोत ने शुरुआत में ही तीन शर्तें रख दी थीं कि वो कांग्रेस अध्यक्ष की जिम्मेदारी तभी निभाएंगे जब राजस्थान में सचिन पायलट को सीएम नहीं बनाया जाएगा. इसी को लेकर उनके समर्थक विधायकों ने विद्रोह किया था. फिलहाल अब उनके राजस्थान के सीएम पद पर बने रहना अब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को करना है. 


जादूगर' ने एक पल में गायब कर दिया कांग्रेस आलाकमान का इकबाल?


लेकिन अगर अशोक गहलोत को सीएम पद से हटाया जाता है तो क्या ये फैसला वो या उनके समर्थक आसानी से मान लेंगे. ये सवाल अभी बना हुआ है.  राजस्थान में सीएम कौन होगा, ये फैसला लेना कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के आसान नहीं है. क्योंकि सचिन पायलट सीएम बनना चाहते हैं और गहलोत उनको बनने नहीं देना चाहते हैं. 

आखिर क्यों कमजोर हुआ गांधी परिवार
करीब 20 सालों से ज्यादा समय तक सत्ता का केंद्र रहा गांधी परिवार इस समय कोई भी फैसला ले पाने की स्थिति में नहीं है. इसकी एक बड़ी वजह अहमद पटेल जैसे नेता जो कुशल राजनीतिक मैनेजर थे, उनकी कमी हो गई है और जिनकी सलाह पर इस समय फैसले लिए जा रहे हैं वो पार्टी के अंदर के हालात को समझ नहीं पा रहे हैं.

दूसरी सबसे बड़ी कमजोरी सोनिया गांधी की तरह राहुल गांधी और प्रियंका गांधी चुनाव में जीताने लायक चेहरा नहीं बन पाएं हैं. साल 2014 का चुनाव राहुल गांधी के चेहरे पर लड़ा गया था लेकिन उसके बाद से पार्टी लगातार रसातल जाती चली गई. प्रियंका गांधी भी उत्तर प्रदेश में पूरी तरह से फेल रहीं.

इसी तरह पार्टी के कई युवा नेताओं ने भी साथ छोड़ दिया है. हाल ही में हिमाचल प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष बीजेपी में शामिल हो गए हैं. लेकिन ये सारी बातें अभी तक आलाकमान के इकबाल तक नहीं पहुंची थीं. जी-23 में शामिल नेताओं ने भी सोनिया गांधी को चिट्ठी लिखकर पार्टी में आमूलचूल परिवर्तन की मांग रखी थी. लेकिन उस समय भी किसी ने खुलकर नाफरमानी नहीं दिखाई थी. 


जादूगर' ने एक पल में गायब कर दिया कांग्रेस आलाकमान का इकबाल?

उदयपुर में हुए चिंतन शिविर में असंतुष्ट नेताओं को सबको साथ लेकर चलने का संदेश दे दिया गया था. उसके बाद कपिल सिब्बल, गुलाम नबी आजाद जैसे नेताओं ने अलग राह पकड़ ली है. यूपीए काल में बड़े ही जोरशोर से बनाई गई टीम राहुल (ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह) भी पूरी तरह से साफ हो गई है. 

कैप्टन अमरिंद सिंह को भी हटाया गया
पंजाब में भी कद्दावर नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह को विधानसभा चुनाव से पहले हटा दिया गया था. चुनाव में नफा-नुकसान की परवाह किए बिना गांधी परिवार ने एक झटके में कैप्टन से कप्तानी छीन ली थी. लेकिन वहां सरकार पर कोई संकट नहीं आया. क्योंकि कैप्टन के साथ विधायकों उतना समर्थन नहीं मिला था जितने कि अशोक गहलोत के साथ आए हैं.

अशोक गहलोत पर कैसे हो गई चूक
राजनीति में माहिर खिलाड़ी अशोक गहलोत कांग्रेस आलाकमान की कार्यशैली से पूरी तरह से वाकिफ हैं. इसलिए उन्होंने साल 2018 में सीएम बनने के बाद से ही सचिन पायलट को मजबूत होने का भी मौका नहीं दिया. यहां तक कि विधायकों के बीच भी सचिन कभी पैठ नहीं बना पाए. अशोक गहलोत को इस बात का अंदाजा जरूर रहा होगा कि आज नहीं तो कल टीम राहुल का ये नेता उनकी कुर्सी के लिए खतरा जरूर बनेगा. 

अशोक गहलोत ने सोची समझी रणनीति के तहत सचिन पायलट को इतना दबाया कि वो साल 2020 में अपने विधायकों के साथ बगावत कर बैठे. लेकिन सचिन विधायकों के समर्थन का गुणा-गणित नहीं लगा पाए. उस समय सचिन को प्रियंका गांधी ने समझाबुझा दिया.  इधर अशोक गहलोत ने उनसे डिप्टी सीएम का पद छीन लिया और मंत्रालय से भी हटा दिया.


जादूगर' ने एक पल में गायब कर दिया कांग्रेस आलाकमान का इकबाल?

दरअसल कांग्रेस आलाकमान की रणनीति थी कि अशोक गहलोत जैसे सिपहसालार को कांग्रेस अध्यक्ष बनाकर सचिन पायलट का रास्ता साफ कर दिया जाएगा. चुनाव से ठीक पहले सीएम बदलकर किसी युवा चेहरे के कुर्सी में बैठाकर सत्ता विरोधी लहर को शांत कर दिया जाएगा. इसके साथ सचिन पायलट के जरिए राजस्थान के गुर्जरों का 5 फीसदी एकमुश्त वोट भी पार्टी को मिल जाएगा.

वहीं अशोक गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाकर उनको ओबीसी चेहरे के तौर पर भी आगे किया जा सकेगा. लेकिन अशोक गहलोत को भी पता था कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने का बाद भी वो अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर पाएंगे. वो अपने राज्य तक का भी सीएम तय नहीं कर पाएंगे. उनके ऊपर केंद्रीय आलाकमान का दबाव रहेगा. और एक बार सचिन पायलट के हाथ में सत्ता चली गई तो उनके साथ-साथ बेटे वैभव गहलोत का भी राजनीतिक करियर दांव में लग सकता है.

अशोक गहलोत इन सब बातों का आकलन कर चुके थे और सोची समझी रणनीति के तहत उनके समर्थक विधायकों ने विद्रोह किया. और जब उनसे जवाब मांगा गया तो उन्होंने हाथ खड़े कर दिए कि ये उनके कंट्रोल में नहीं है.

गहलोत के तीन सिपहसालारों को नोटिस
कांग्रेस ने राजस्थान के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल, पार्टी के मुख्य सचेतक महेश जोशी और आरटीडीसी अध्यक्ष धर्मेंद्र राठौर को जयपुर में पार्टी विधायकों की समानांतर बैठक करने के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया. 

धारीवाल को जारी नोटिस में कहा गया है कि संसदीय कार्य मंत्री होने के नाते उन्होंने अपने आवास पर समानांतर विधायकों की बैठक आयोजित करके गंभीर अनुशासनहीनता की है और इस प्रकार विधायकों पर आधिकारिक बैठक में शामिल नहीं होने का दबाव डाला. 

नोटिस में कहा गया है, "संसदीय मामलों के मंत्री के रूप में, अनौपचारिक बैठक की मेजबानी करने से कांग्रेस विधायक भ्रमित हो गए कि आधिकारिक तौर पर किसे बुलाया गया था.

नोटिस में 10 दिनों के भीतर जवाब मांगा गया है और यह भी कहा गया है कि धारीवाल की कार्रवाई तब भी हुई जब पार्टी के वरिष्ठ नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और राजस्थान प्रभारी अजय माकन ने बार-बार स्पष्ट किया कि वे प्रत्येक विधायक से 'व्यक्तिगत और निष्पक्ष' बात करने आए हैं.


जादूगर' ने एक पल में गायब कर दिया कांग्रेस आलाकमान का इकबाल?

कांग्रेस को तलाश है अब अध्यक्ष की
इस घटनाक्रम के बीच मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का नाम तेजी से उभरा और खबर आई कि वो कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ेंगे. लेकिन अब उनका नाम भी पीछे कर दिया गया है. गांधी परिवार के दिग्विजय सिंह भी करीबी हैं लेकिन वो कितना कंट्रोल में रहेंगे. ये भी एक सवाल है.

शुक्रवार को मल्लिकार्जुन खड़गे का भी नाम सामने आया है. गांधी परिवार के वो भी करीबी हैं. शशि थरूर से शायद उन्हीं की टक्कर होगी. लेकिन इसे बदलता वक्त ही कहा जाएगा कि जिस कांग्रेस अध्यक्ष के पद के लिए कभी नेता मुख्यमंत्री तक की कुर्सी तक कुर्बान दिया करते थे वो उसको लेकर आज चेहरों की तलाश हो रही है. 
 

अब्दुल वाहिद आज़ाद इस वक़्त abp न्यूज़ में बतौर एडिटर (एबीपी लाइव- हिंदी) अपनी सेवाएं दे रहे हैं. आज़ाद abp न्यूज़ के डिजिटल विंग में बीते 12 साल से हिंदी वेबसाइट की जिम्मेदारी संभाले रहे हैं. इससे पहले वे बीबीसी उर्दू और हिंदी में अपनी सेवाएं दे चुके हैं और साढ़े तीन साल तक उनका जुड़ाव बीबीसी से रहा. इस दौरान उन्होंने रिपोर्टिंग से लेकर खबरों के संपादन के काम को बखू़बी अंजाम दिया. अब्दुल वाहिद आज़ाद ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत हिंदुस्तान एक्सप्रेस अखबार में बतौर कॉरेस्पोंडेंट की. पांच महीने की इस छोटी सी पारी में उन्हें बीजेपी और कांग्रेस पार्टी की बीट दी गई थी. बाजापता तौर पर पत्रकारिता की दुनिया में कदम रखने से पहले उन्होंने जामिया मिल्लिया इस्लामिया (केंद्रीय विश्वविद्यालय) के हिंदी विभाग से मास मीडिया में स्नातक और देश के प्रतिष्ठित मीडिया संस्थान MCRC से कनवर्जेंट जर्नलिज्म का कोर्स किया. आज़ाद राजनीति, चुनाव, समाज, मुस्लिम, भेदभाव, उत्पीड़न जैसे संजीदा मसलों के हल में रूचि रखते हैं और इन मुद्दों पर लगातार लिखते रहते हैं. अंतरराष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति पर भी उनकी पैनी नज़र है.
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