कांटों को चुनकर 'जल सहेलियों' ने दिखाया हरियाली का रास्ता, 25 साल से नहीं होने दिया एक भी बोरिंग
पानी की कीमत उन लोगों से पूछने की जरूरत है, जो इसकी बूंद-बूंद को तरसे और उसे सहेजना सीखा. ऐसी ही कहानी अमरतिया गांव के लोगों की है, जिनके लिए पानी किसी कीमती चीज से कम नहीं है.

राजस्थान का जिक्र हो तो तपता रेगिस्तान, सूखे-कांटेदार पौधे और पानी के लिए तरसते लोग जेहन में जिंदा हो जाते हैं. आज हम आपको राजस्थान के एक ऐसे हिस्से से रूबरू करा रहे हैं, जो न सिर्फ हरा-भरा है, बल्कि यहां भूजल स्तर इतना ज्यादा है कि कुओं से पानी ऐसे ही बहता रहता है. हर तरफ इतनी ज्यादा हरियाली है कि एक बार को भ्रम ही हो जाए कि वाकई राजस्थान के किसी हिस्से में घूम रहे हैं. यह ठिकाना है भीलवाड़ा जिले के अमरतिया गांव में, जहां की जल सहेलियों ने 25 साल पहले अपनी हिम्मत और मेहनत से जमीन को इस कदर सींचा कि तपती माटी का कलेजा चीरकर जलधारा निकाल ली.

इन्होंने लोगों को न सिर्फ पानी बचाना सिखाया, बल्कि पानी को बचाने के लिए अपना खून भी बहाने को तैयार रहीं. वहीं, पूरे गांव का साथ भी उन्हें इस कदर मिला कि भले ही लोगों के विचार आपस में न मिलते हो, लेकिन पानी बचाने की मुहिम में हर कोई कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा नजर आता है.
25 साल पहले पानी के लिए तरसते थे लोग

अमरतिया गांव में रहने वाली सरजू बाई ने बताया कि 25 साल पहले पानी के लिए दूरदराज के गांवों में जाना पड़ता था. कई बार तो पानी के लिए मारामारी भी हो जाती थी. 25 साल पहले तो हमारे गांव में जंगल भी नहीं था. हर तरफ सिर्फ छोटी-छोटी झाड़ियां होती थीं.

शुरुआत में लगता था डर
सरजू बाई के मुताबिक, पर्यावरण को बचाने के कदम की शुरुआत एफईएस संस्था की मदद से हुई. उस वक्त संस्था के कई अधिकारी गांव में आए थे. उन्होंने गांव में जंगल, चारागाह और पानी के स्रोत बनाने की बात कही तो हमें डर लगा कि वे लोग हमारी जमीन पर कब्जा न कर लें. हमने उनसे अपने मन की बात कही तो उन्होंने हमें समझाया कि हम सिर्फ आपकी मदद करना चाहते हैं. हमारा मकसद हर तरफ हरियाली लाना है. हम यहां किसी की भी जमीन पर कब्जा नहीं करना चाहते हैं. गांव के लोगों को यह बात समझ आई तो पानी बचाने की मुहिम शुरू हो गई.
दूध की तरह बचाया पानी

गांव के एक बुजुर्ग नारायण धाकड़ पानी बचाने की यह कहानी सुनाते-सुनाते भावुक हो गए. उन्होंने बताया कि उस वक्त हर किसी में काफी जोश था. गांव की भलाई के लिए हर किसी ने कमर कस ली थी. उस वक्त इतने साधन तो नहीं होते थे, लेकिन हर कोई अपना वक्त गांव के हालात सुधारने के लिए लगाने को तैयार था. उन्होंने बताया कि उस दौरान गांव के लोग मजदूरी करने के लिए बाहर जाते थे, लेकिन जब गांव को पानी से लबरेज करने का काम शुरू हुआ तो हर कोई गांव में ही काम करने लगा. तब लोगों को मनरेगा के तहत पैसे मिलते थे और मजदूरी सिर्फ 35 रुपये होती थी. वैसे तो ये पैसे कम थे, लेकिन गांव के लिए हर किसी ने यह कुर्बानी दी.

इस तरह बचाया गया पानी

प्रधान नवलराम धाकड़ ने बताया कि गांव की किस्मत संवारने में यहां के बुजुर्गों का काफी ज्यादा योगदान रहा. उन्होंने सबसे पहले चेक डैम बनाए और नाडी खोदीं. इस वक्त गांव में तीन नाडी हैं, जो गांव में मौजूद 11 एनी कट से कनेक्टेड हैं. इसकी वजह से गांव के चारों तरफ हर वक्त पानी रहता है. आलम यह है कि अब तो वॉटर लेवल इतना ज्यादा हो चुका है कि कुएं ओवरफ्लो रहते हैं.
पानी के लिए खून बहाने को भी तैयार

शासन से कम मिलता है सहयोग

गांव के पानी बचाओ अभियान में अपनी जवानी खपाने वाले तेज सिंह गांव के किस्से सुनाते-सुनाते पुरानी यादों में खो जाते हैं. वह कहते हैं कि उस वक्त तो पूरे गांव ने मेहनत की और यहां के हालात बदलकर रख दिए, लेकिन अफसोस यह है कि इस काम में हमें शासन से काफी कम सहयोग मिला. अब अगर कोई चेक डैम खराब होता है या एनी कट की सफाई होनी है तो उसके लिए बजट की समस्या रहती है. शासन की तरफ से इन दिक्कतों को दूर करने के लिए कोई भी मदद नहीं मिलती है.
भविष्य को लेकर जताते हैं चिंता

गांव के ही दो बुजुर्ग भोजराज गुर्जर और कालू लाल गुर्जर कहते हैं कि अमरतिया के लोगों की मेहनत अब दुनिया को नजर आती है, लेकिन यहां आसपास में कई गांव ऐसे हैं, जिन्होंने इससे सबक नहीं लिया और वहां आज भी पानी की किल्लत है. उनका कहना है कि पुराने लोगों ने जितनी मेहनत की, उतना हौसला नई पीढ़ी में नजर नहीं आता है. आजकल के युवा सोशल मीडिया के चक्कर में लगे रहते हैं, जिससे उनका ध्यान गांव के हालात दुरुस्त करने पर नहीं होता है. अगर ऐसी चीजें बरकरार रहीं तो अगले 25 साल में अमरतिया एक बार फिर हरियाली और पानी को गंवा सकता है.
कई गांवों ने अपनाया यह मॉडल

एफईएस से जुड़े युवा मुकेश शर्मा ने बताया कि गांव में पानी बचाने के लिए देवनारायण जल ग्रहण विकास समिति बनाई गई, जिसकी पूरी जिम्मेदारी गांव के ही लोग संभालते हैं और पानी बचाने के लिए तत्पर रहते हैं. उन्होंने बताया कि बुजुर्गों की जल संरक्षण की इस मुहिम को अब युवा आगे बढ़ा रहे हैं, लेकिन उनकी संख्या कम ही रहती है. अमरतिया में आए बदलाव के बाद सबसे पहले चित्तौड़िया गांव में जल संरक्षण को लेकर मुहिम शुरू हुई. इसके दो साल बाद भरिंडा गांव के लोग भी पानी बचाने की मुहिम में जुट गए. वहीं, चार साल बाद डामटी गांव के लोगों ने भी पानी बचाने के लिए कमर कस ली. आज इन तीनों गांवों में भी वॉटर लेवल काफी अच्छी स्थिति में आ चुका है.
डिस्क्लेमर: यह रिपोर्ट प्रॉमिस ऑफ कॉमन्स मीडिया फेलोशिप के तहत प्रकाशित की गई है.
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Source: IOCL
























