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Currency Printing: भारत में कितनी करेंसी छापनी है, कौन करता है इसका फैसला? जान लें नियम

Currency Printing: क्या आप जानते हैं कि भारत में यह कौन तय करता है की कितनी करेंसी छापी जानी चाहिए. आइए जानते हैं क्या है इस सवाल का जवाब और क्या होती है पूरी प्रक्रिया.

Currency Printing: जब भी महंगाई, कैश की कमी या फिर नोटबंदी की बात होती है तो एक सवाल सभी के मन में उठता है कि भारत में असल में कौन तय करता है कि कितनी करेंसी छापी जानी चाहिए. दरअसल भारत में करेंसी छापना एक कानूनी और आर्थिक प्रकिया का पालन करके किया जाता है. इसमें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और केंद्र सरकार दोनों ही शामिल होते हैं. 

करेंसी जारी करने का पहला अधिकार किसके पास?

कितनी करेंसी छापी जानी है इस बात को तय करने में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की सबसे बड़ी भूमिका होती है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया एक्ट 1934 की धारा 22 के तहत आरबीआई के पास भारत में बैंक नोट जारी करने का एकमात्र कानूनी अधिकार है. इसमें ₹2 से लेकर ₹2000 तक के सभी डिनॉमिनेशन शामिल हैं. हालांकि इस शक्ति का यह मतलब नहीं है कि आरबीआई मनमाने ढंग से पैसा छापता है. दरअसल हर साल आरबीआई अनुमान लगाता है की अर्थव्यवस्था को कितनी करेंसी की जरूरत होगी. यह अनुमान जीडीपी ग्रोथ, महंगाई के रुझान, पुराने या खराब नोटों को वापस लेने और डिजिटल लेनदेन में बढ़ोतरी जैसे भुगतान की आदतों में बदलाव का विश्लेषण करने के बाद लगाया जाता है.

केंद्र सरकार की क्या भूमिका?

आरबीआई करेंसी की जरूरत का अनुमान लगाता है और योजना बनाता हैं. वहीं भारत सरकार के पास कुछ पहलुओं पर अंतिम फैसला होता है. केंद्र सरकार आरबीआई एक्ट की धारा 25 के तहत बैंक नोटों के डिजाइन, आकर, सुरक्षा सुविधा और डिनॉमिनेशन को मंजूरी देता है. जरूरी बात यह है कि ₹1 के नोट और सभी सिक्के कॉइनेज एक्ट 2011 के तहत सीधे सरकार द्वारा जारी किए जाते हैं.

न्यूनतम रिजर्व सिस्टम 

भारत न्यूनतम रिजर्व सिस्टम का पालन करता है जिसे 1956 में लागू किया गया था. इस सिस्टम के तहत आरबीआई को कोई भी करेंसी जारी करने से पहले ₹200 करोड़ का न्यूनतम रिजर्व बनाए रखना होता है. इसमें से कम से कम ₹115 करोड़ सोने के रूप में होने चाहिए. इसी के साथ बाकी 85 करोड़ रुपए विदेशी मुद्रा या विदेशी सिक्योरिटीज के रूप में रखे जाने चाहिए.

करेंसी की मात्रा कैसे होती है तय?

छापे जाने वाले नोटों की संख्या अंदाजे से नहीं बल्कि इकोनॉमिक मॉडलिंग के जरिए तय की जाती है.  आरबीआई एक्सपेक्टेड जीडीपी ग्रोथ, महंगाई के स्तर, कैश कि मौसमी मांग और अपनी क्लीन नोट पॉलिसी के तहत खराब या कटे फटे नोटों को बदलने पर विचार करता है. बैंकों और आरबीआई के क्षेत्रीय कार्यालय से मिलने वाला फीडबैक भी जमीनी स्तर पर मांग का अनुमान लगाने में बड़ी भूमिका निभाता है.

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स्पर्श गोयल को कंटेंट राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग में चार साल का अनुभव है.  इन्होंने अपने करियर की शुरुआत नमस्कार भारत से की थी, जहां पर लिखने की बारीकियां सीखते हुए पत्रकारिता और लेखन की दुनिया में कदम रखा. इसके बाद ये डीएनपी न्यूज नेटवर्क, गाजियाबाद से जुड़े और यहां करीब दो साल तक काम किया.  इस दौरान इन्होंने न्यूज राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग दोनों में अपनी पकड़ मजबूत की.

अब स्पर्श एबीपी के साथ अपनी लेखनी को निखार रहे हैं. इनकी खास रुचि जनरल नॉलेज (GK) बीट में है, जहां ये रोज़ नए विषयों पर रिसर्च करके अपने पाठकों को सरल, रोचक और तथ्यपूर्ण ढंग से जानकारी देते हैं.  

लेखन के अलावा स्पर्श को किताबें पढ़ना और सिनेमा देखना बेहद पसंद है.  स्क्रीनराइटिंग के अनुभव की वजह से ये कहानियों को दिलचस्प अंदाज़ में पेश करने में भी माहिर हैं.  खाली समय में वे नए विषयों पर रिसर्च करना और सोशल मीडिया पर अपडेट रहना पसंद करते हैं.

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