कॉकटेल कब व्हिस्की को छोड़ देती है पीछे, कैसे मीठे स्वाद का हो जाता है तीखा नशा?
Alcohol Strength In Cocktails: कॉकटेल का मीठा स्वाद कई बार वह सच छिपा लेता है जिसे व्हिस्की साफ-साफ महसूस कराती है. दिखने में हल्का सा ड्रिंक कब दिमाग पर गहरी पकड़ बना लेता है, यही इसकी चाल है.

रात की रोशनी में चमकते ग्लास को देखकर अक्सर लोग समझ लेते हैं कि मीठा-सा कॉकटेल सिर्फ स्वाद बदलने वाला पेय है, नशा बढ़ाने वाला नहीं, लेकिन असल खेल उसी मिठास में छिपा होता है, जहां रंग हल्का होता है पर असर कई बार व्हिस्की से भी भारी पड़ जाता है. सवाल उठता है कि वह कौन सी सीमा है, जहां कॉकटेल धीरे-धीरे स्वाद से निकलकर सीधे दिमाग पर चढ़ने लगता है? और आखिर कब एक साधारण-सा ड्रिंक आपको पता भी नहीं चलने देता कि नशा कब हावी हो चुका है?
वाइन एक्सपर्ट और कई अंतरराष्ट्रीय बेवरेज स्टडीज बताती हैं कि यह सोच उतनी ही गलत है, जितना यह मान लेना कि हर चाय मीठी ही होती है. कॉकटेल की दुनिया में ऐसा बहुत कुछ है जो बाहर से स्मूद दिखता है लेकिन अंदर से व्हिस्की की स्ट्रेंथ की बराबरी या उससे भी कहीं ज्यादा कर सकता है.
अक्सर चौंका देती है कॉकटेल
सबसे पहले समझने वाली बात यह है कि कॉकटेल की ताकत रंग या गार्निश देखकर कभी नहीं समझी जा सकती है. कई बार जो ड्रिंक नींबू रंग, गुलाबी, हल्का अथवा पारदर्शी दिखता है, उसके अंदर अल्कोहल का स्तर किसी भी बड़े व्हिस्की पैग से अधिक हो सकता है. उदाहरण के तौर पर लॉन्ग आइलैंड आइस टी को ही ले लीजिए, नाम में ‘टी’ है, दिखने में कोला जैसा है, लेकिन इसके अंदर पांच अलग-अलग स्पिरिट्स का मिश्रण होता है, जिनका संयुक्त असर एक या दो बड़े पैग के बराबर पहुंच जाता है. यही कारण है कि यह ड्रिंक अक्सर लोगों को चौंकाती है.
मिक्सर इल्यूजन
दूसरी बड़ी वजह है ‘मिक्सर इल्यूजन’. कॉकटेल में शुगर सिरप, सोडा, टॉनिक वॉटर, जूस, पंच फ्लेवर और कई इन्फ्यूजन शामिल होते हैं. ये तत्व अल्कोहल की कड़वाहट को लगभग गायब कर देते हैं. शरीर में हल्की जलन या स्ट्रॉन्गनेस महसूस नहीं होती, जिससे दिमाग को लगता है कि ड्रिंक हल्का है. इस भ्रम की वजह से लोग तेजी से ग्लास खाली कर देते हैं और वहीं से शरीर में अल्कोहल का स्तर बिना चेतावनी के बढ़ने लगता है. मीठा स्वाद, स्मूद टेक्सचर और चटख रंग- ये सब मिलकर अल्कोहल की असल ‘किक’ को छिपा देते हैं.
विशेषज्ञ बताते हैं कि कई कॉकटेल्स में स्पिरिट की मात्रा अलग-अलग लेयर में मिलाई जाती है. यानी आपको महसूस होता है कि आपने जूसवाला ड्रिंक पिया है, लेकिन वास्तव में उसके अंदर अलग-अलग अनुपात में रम, जिन, वोडका या टकीला मौजूद रहता है. यही मिश्रण नशे को तेज़ बनाता है और कई बार शरीर को समझने का समय भी नहीं मिलता कि उसने कितना अल्कोहल ले लिया है.
कब व्हिस्की से ज्यादा नशीली हो जाती है कॉकटेल
अब सवाल यह भी है कि कॉकटेल कब व्हिस्की से ज्यादा नशीली हो जाती है? इसका जवाब सिर्फ एक लाइन में छिपा है, जब उसमें मौजूद अल्कोहल की कुल मात्रा शरीर की प्रोसेसिंग स्पीड से तेज हो जाए.
यानी अगर किसी कॉकटेल में 40 से 60 ml की जगह 70 से 120 ml तक स्पिरिट का संयोजन है, तो वह स्पष्ट रूप से किसी भी स्टैंडर्ड व्हिस्की पैग से ज्यादा असर करेगा. कई बार लोग इस फर्क को नजरअंदाज कर देते हैं और उन्हें लगता है कि कॉकटेल है, तो लाइट ही होगी.
पीने वाले की स्पीड
इसके साथ ही पीने की स्पीड भी नशा निर्धारित करती है. व्हिस्की आमतौर पर धीरे-धीरे सिप की जाती है, जिससे बॉडी को अल्कोहल मेटाबोलाइज करने का समय मिलता है. लेकिन कॉकटेल अपने स्वाद के कारण एक झटके में नीचे चली जाती है. तेजी से पीने पर अल्कोहल ब्लडस्ट्रीम में अचानक बढ़ता है, जिससे नशा तीव्र होता है. यही वजह है कि कई लोग एक हल्के ड्रिंक की उम्मीद में कॉकटेल का ग्लास उठाते हैं और कुछ ही मिनटों में उन्हें महसूस होता है कि असर उम्मीद से कहीं ज्यादा है.
यह भी पढ़ें: Alcohol Snack: भारत में शराब के साथ सबसे ज्यादा खाया जाता है यह चखना, जानें क्यों है पीने वालों की यह पहली पसंद
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL























