मौत के बाद हिंदुओं में की जाती है तेरहवीं, मुस्लिमों में क्या है रिवाज?
जिस तरह हिंदू समाज में मृत्यु के बाद 13वीं के रस्में की जाती है, इस तरह मुस्लिम समुदाय में भी मृत्यु भोज का नियम है. जिसे चेहल्लुम कहा जाता है. यह आयोजन मृत्यु के 40वें दिन किया जाता है.

हमारे देश में किसी भी धर्म में किसी परिवार के सदस्य की मौत के बाद अलग-अलग रीति रिवाज अपनाए जाते हैं. घर में किसी की भी मौत हो जाने के बाद परिवार वाले कई धार्मिक नियमों और परंपराओं का पालन करते हैं, ताकि मरने वाले की आत्मा को शांति मिले और परिवारजन भी इस दुख से उबर सके. वहीं हमारे देश में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म में मौत के बाद अलग-अलग रीति रिवाज होते हैं. जिनका उद्देश्य मृतक के प्रति सम्मान और उसकी आत्मा की शांति ही होता है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि हिंदुओं में मौत के बाद 13वीं की जाती है, लेकिन मुसलमानों में इसे लेकर क्या रिवाज है.
हिंदू धर्म में मुंडन और 13वीं का महत्व
हिंदू समाज में किसी भी सदस्य की मृत्यु के बाद घर में 13 दिनों तक पातक लगने की मान्यता है. इस दौरान परिवार नए कपड़े नहीं पहन सकता, शुभ कार्य से दूर रहता है और पुरुषों का मुंडन कराया जाता है. माना जाता है कि बाल मन को सांसारिक मोह से जोड़ते हैं. इसलिए मुंडन शोक व्यक्त करने और मोह से दूरी बनाने का तरीका होता है. वहीं यह भी विश्वास है कि इस समय आत्मा घर के आसपास मंडराती है और मुंडन उसे सांसारिक बंधनों से मुक्त करने का प्रतीक माना जाता है. वहीं तेरहवीं के दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाना और दान देना एक महत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है. कुछ एक्सपर्ट्स बताते हैं कि ब्राह्मण वेद और धर्म के प्रति प्रतिनिधि माने जाते हैं. इसलिए उन्हें भोजन करना आत्मा तक पुण्य पहुंचने का माध्यम माना गया है. 13वीं में हिंदू धर्म में खीर-पूरी, दाल-चावल और लौकी जैसे सात्विक भोजन बनाए जाते हैं. जिसका उद्देश्य मृतक की आत्मा को तृप्ति और शांति दिलाना होता है.
मुसलमान में मौत के बाद होने वाली रस्में
जिस तरह हिंदू समाज में मृत्यु के बाद 13वीं की रस्में की जाती हैं, इस तरह मुस्लिम समुदाय में भी मृत्यु भोज का नियम है. जिसे चेहल्लुम कहा जाता है. यह आयोजन मृत्यु के 40वें दिन किया जाता है और इसमें गरीब लोगों को भोजन खिलाया जाता है. पहले अमीर वर्ग भी इस भोजन को खाते थे, लेकिन समय के साथ यह नियम बदल गया और चेहल्लुम का हक सिर्फ गरीबों तक सीमित कर दिया गया. चेहल्लुम के दिन घर वाले मृतक व्यक्ति की पसंद का खाना बनाते हैं, दुआ करते हैं और कुछ घर के सदस्य कब्र पर जाकर फातिहा पढ़ते हैं. वहीं महिलाएं घर पर कुरान पढ़ती है और परिवारजन मरने वाले को याद करते हैं. वहीं मुस्लिम में मुंडन नहीं कराया जाता है. बल्कि मृत्यु के तुरंत बाद सबसे पहले इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन कहा जाता है और करने वाले के शरीर को गुस्ल देकर सफेद कपड़े में कफनाया जाता है. इसके बाद नमाज-ए-जनाजा पढ़कर मृतक को किबला की दिशा में दाईं करवट लेकर दफनाया जाता है.
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