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सेना में धार्मिक छूट हट जाए तो किसे सबसे ज्यादा नुकसान? US आर्मी में दाढ़ी पर विवाद के बीच जानें जवाब

Religious Freedom In Us Military: अमेरिकी सेना में सैनिकों के लंबे बाल और दाढ़ी रखने पर धार्मिक छूट हटा दी गई है. चलिए जानें इस नियम के बाद आखिर किस समुदाय पर सबसे ज्यादा असर देखने को मिलेगा.

अमेरिकी सेना हाल ही में लागू किए गए नए ग्रूमिंग नियमों को लेकर विवादों में घिर गई है. इन नियमों के मुताबिक दाढ़ी और लंबे बाल रखने पर रोक लगाई गई है और अब धार्मिक छूट भी नहीं मिलेगी. इसका सीधा असर सिख, मुस्लिम और ऑर्थोडॉक्स यहूदी सैनिकों पर देखने को मिलेगा, जिन्हें अपनी आस्था और सेना में सेवा के बीच कठिन निर्णय करना होगा. इसे अमेरिकी संवैधानिक मूल्यों और धार्मिक स्वतंत्रता के खिलाफ माना जा रहा है. आइए जानें कि अगर सेना में धार्मिक छूट हट जाए तो सबसे ज्यादा नुकसान किसे होगा.

धर्म या सेना किसी एक को चुनना होगा

सिख समाज में पुरुषों के लिए दाढ़ी और पगड़ी उनकी धार्मिक पहचान का अहम हिस्सा मानी जाती है. ये धार्मिक आदेश सिख धर्म के गुरुओं द्वारा तय किए गए हैं और उनका पालन करना हर सिख के लिए जरूरी होता है. सेना में पहले सिख और अन्य धार्मिक समूहों को यह छूट दी जाती थी कि वे धार्मिक प्रतीक और विशेष पोशाक रख सकते हैं. इसमें दाढ़ी, पगड़ी और अन्य धार्मिक प्रतीक शामिल थे, लेकिन अगर यह छूट खत्म कर दी जाती है, तो सैनिकों को या तो अपनी धार्मिक पहचान का पालन छोड़ना पड़ेगा या सेना से सेवा समाप्त करनी पड़ेगी.

किस समुदाय पर पड़ेगा ज्यादा असर? 

ऐसे में सबसे ज्यादा असर सिख समुदाय पर पड़ेगा, क्योंकि उनके लिए दाढ़ी और पगड़ी धर्म का अभिन्न हिस्सा हैं. अन्य धर्मों के लिए यह बदलाव उतना गंभीर नहीं माना जा रहा है. हिंदू, मुस्लिम या ईसाई धर्म में दाढ़ी या अन्य प्रतीकों पर सख्त बाध्यता नहीं है. वे सेना के नियमों के अनुसार खुद को ढाल सकते हैं, जबकि सिखों के लिए यह आसान नहीं है. इसलिए, अगर धार्मिक छूट पूरी तरह समाप्त हो जाए, तो सिख सैनिकों की संख्या और उनकी सेना में भागीदारी पर सीधा असर पड़ेगा.

कम हो सकती है सिख सैनिकों 

ऐसे में सिख समुदाय का कहना है कि सेना में सेवा करना उनके लिए गर्व की बात है, लेकिन धार्मिक पहचान बनाए रखना उनकी आस्था का हिस्सा भी है. रिपोर्ट्स की मानें तो धार्मिक छूट हटने से सेना की विविधता और सांस्कृतिक समावेशिता पर भी प्रभाव पड़ेगा और सेना में सिख सैनिकों की संख्या कम हो सकती है. 

यह भी पढ़ें: Illegal Foreigners In India: भारत में कितने अवैध विदेशी रहते हैं, जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों की यह टिप्पणी?

About the author निधि पाल

निधि पाल को पत्रकारिता में छह साल का तजुर्बा है. लखनऊ से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत भी नवाबों के शहर से की थी. लखनऊ में करीब एक साल तक लिखने की कला सीखने के बाद ये हैदराबाद के ईटीवी भारत संस्थान में पहुंचीं, जहां पर दो साल से ज्यादा वक्त तक काम करने के बाद नोएडा के अमर उजाला संस्थान में आ गईं. यहां पर मनोरंजन बीट पर खबरों की खिलाड़ी बनीं. खुद भी फिल्मों की शौकीन होने की वजह से ये अपने पाठकों को नई कहानियों से रूबरू कराती थीं.

अमर उजाला के साथ जुड़े होने के दौरान इनको एक्सचेंज फॉर मीडिया द्वारा 40 अंडर 40 अवॉर्ड भी मिल चुका है. अमर उजाला के बाद इन्होंने ज्वाइन किया न्यूज 24. न्यूज 24 में अपना दमखम दिखाने के बाद अब ये एबीपी न्यूज से जुड़ी हुई हैं. यहां पर वे जीके के सेक्शन में नित नई और हैरान करने वाली जानकारी देते हुए खबरें लिखती हैं. इनको न्यूज, मनोरंजन और जीके की खबरें लिखने का अनुभव है. न्यूज में डेली अपडेट रहने की वजह से ये जीके के लिए अगल एंगल्स की खोज करती हैं और अपने पाठकों को उससे रूबरू कराती हैं.

खबरों में रंग भरने के साथ-साथ निधि को किताबें पढ़ना, घूमना, पेंटिंग और अलग-अलग तरह का खाना बनाना बहुत पसंद है. जब ये कीबोर्ड पर उंगलियां नहीं चला रही होती हैं, तब ज्यादातर समय अपने शौक पूरे करने में ही बिताती हैं. निधि सोशल मीडिया पर भी अपडेट रहती हैं और हर दिन कुछ नया सीखने, जानने की कोशिश में लगी रहती हैं.

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