Mughal Emperor: इस मुगल बादशाह ने की थीं सबसे ज्यादा शादियां, जानें कितनी थीं उसकी संताने और इसके पीछे की वजह?
Mughal Emperor: क्या आप जानते हैं कि मुगल काल में किस मुगल बादशाह ने सबसे ज्यादा शादियां की थी? आइए जानते हैं उस मुगल सम्राट के बारे में और इसके पीछे की वजह.

Mughal Emperor: मुगल काल को अक्सर उसकी भव्यता और समृद्ध संस्कृति के लिए जाना जाता है. मुगल इतिहास के कई पहलुओं में मुगल बादशाहों की शादी ने हमेशा ध्यान खींचा है. उस काल में एक से ज्यादा शादी करना आम था. लेकिन आज हम आपको एक ऐसे शासक के बारे में बताने जा रहे हैं जिसने सबसे ज्यादा शादियां की थी. आइए जानते हैं मुगलों के किस बादशाह ने की थी सबसे ज्यादा शादियां.
किसने की थीं सबसे ज्यादा शादियां?
अबुल फजल की आइन-ए-अकबरी और अकबरनामा जैसे कई ऐतिहासिक ग्रंथ अकबर के असंख्य विवाहों के बारे में जानकारी देते हैं. हालांकि उनकी पत्नियों की सही संख्या पर अभी भी पर्दा ही है, लेकिन कुछ वृतांतों में दर्जनों का जिक्र किया गया है तो कुछ में सैकड़ों का. यह तो साफ है कि उनके विवाह व्यक्तिगत मामलों से कहीं ज्यादा थे. यह एक राजनीतिक कदम था जिसका उद्देश्य खास तौर से बड़े राज परिवारों के साथ गठबंधन बनाना था. बड़े राज परिवारों में विवाह करने से अकबर को उत्तर पश्चिमी भारत में अपनी शक्तियों को मजबूत करने और क्षेत्रीय शासकों के बीच निष्ठा को बढ़ावा देने में मदद मिली.
अन्य मुगल बादशाहों से तुलना
जहांगीर, शाहजहां और औरंगजेब जैसे दूसरे मुगल शासकों ने भी बहुविवाह का प्रचलन किया. लेकिन अकबर के विवाह अपनी संख्या और ऐतिहासिक अभिलेखों की वजह से मशहूर हैं. अकबर के विवाह साम्राज्य के राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किए गए थे.
अकबर के बच्चे
अकबर के कई पुत्र और पुत्रियां हुईं. इतिहास में उनके तीन पुत्रों को सबसे ज्यादा याद किया जाता है. जलालुद्दीन मोहम्मद सलीम (बाद में सम्राट जहांगीर), मुराद और दानियाल. इसी के साथ उनकी पुत्रियां भी थी जिनमें आरजानी बेगम और खानजादा बनो शामिल थीं. अपने विवाहों के जरिए अकबर ने न सिर्फ अपने समय के राजनीतिक परिदृश्य को आकार दिया बल्कि मुगल दरबार में सांस्कृतिक एकीकरण और धार्मिक सहिष्णुता की नींव भी रखी.
अकबर के वैवाहिक संबंध राजनीतिक एकीकरण की उनकी रणनीति के केंद्र में थे. विवाह के जरिए अकबर ने राज परिवारों को सम्मानित करके उन्हें प्रतिष्ठित उपाधियां, जागीरें और दरबार में उन्हें उच्च पद प्रदान करके मुगल प्रशासन के साथ मिलाया. अकबर के इस कदम को सुलह-ए-कुल के रूप में जाना जाता है. इन संबंधों से उत्पन्न राजकुमारों को मुगल और राजपूत दोनों वंशों से वैधता मिली हुई थी.
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