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हीरे का वो खादान जिसके ऊपर से प्लेन तो क्या पक्षी भी उड़ा तो गायब हो गया, दिलचस्प है इसके पीछे की कहानी

यह हीरे की खदान रूस के साइबेरियन प्रांत में है. पूर्वी रूस में मौजूद यह खदान 1722 फीट गहरा और 3900 फीट चौड़ाई वाला एक ऐसा बड़ा गड्ढा है, जो आर्कटिक सर्कल से महज 280 मील की दूरी पर मौजूद है.

आप ने बरमूडा ट्रायंगल के बारे में खूब सुना होगा. यहां तक की कई फिल्में भी देखी होंगी. जिन लोगों को इसके बारे में नहीं पता है उन्हें हम बता दें कि बरमूडा ट्रायंगल एक ऐसी जगह है जिसके ऊपर उड़ने वाला कोई भी प्लेन अचानक से क्रैश हो जाता है. लेकिन यह एकलौती दुनिया में ऐसी जगह नहीं है जहां इस तरह के हादसे होते हैं. रूस की साइबेरियन रीजन में एक ऐसी हीरे की खदान है जिसके ऊपर से उड़ने वाली हर चीज अचानक से उसके भीतर समा जाती है. आज हम आपको इसी रहस्यमई हीरे की खदान की कहानी बताएंगे और यह भी बताएंगे कि आखिर इसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या है.

कहां है यह खदान

यह हीरे की खदान रूस के साइबेरियन प्रांत में है. पूर्वी रूस में मौजूद यह खदान 1722 फीट गहरा और 3900 फीट चौड़ाई वाला एक ऐसा बड़ा गड्ढा है, जो आर्कटिक सर्कल से महज 280 मील की दूरी पर मौजूद है. इस खदान के पास एक गांव है जिसका नाम मर्नी है. इस गांव के लोग इस खदान को शापित मानते हैं. उनका मानना है कि वैज्ञानिकों ने जब यहां से हीरा निकालने के लिए इस खदान की खुदाई की तो इसमें कई मजदूरों की मौत हो गई. जिसके बाद से यह खदान शापित हो गया और इसी वजह से इसके ऊपर से गुजरने वाली कोई भी चीज इसके अंदर समा जाती है.

दूसरे विश्व युद्ध से क्या है इसका नाता

इस हीरे की खदान का नाता दूसरे विश्वयुद्ध से है. दरअसल जब दूसरे विश्वयुद्ध के बाद रूस आर्थिक तौर पर कंगाल हो गया और फिर से वापस खड़े होने की कोशिश करने लगा तो उसने रूस की जमीन के नीचे मौजूद तमाम तरह के कीमती तत्वों की खुदाई करने पर विचार किया. इसी दौरान कुछ जियोलॉजिस्ट की टीम ने रूस की सरकार को बताया कि इस जगह पर हीरे की खदान हो सकती है. जिसके बाद रूस के तानाशाह शासक स्टालिन ने यहां खुदाई करने का आदेश दिया. हड्डी जमा देने वाली बेहद कड़ाके की सर्दी में मजदूरों ने दिन रात काम करके यहां खुदाई की और अंत में एक हीरे की खदान मिल गई.

यहां से कई हीरे निकले

इस रहस्यमई खदान से कई बेशकीमती हीरे निकले. साल 1960 के दौरान से ही यहां हीरों का मिलना शुरू हो गया था. पहले दशक के दौरान यहां लगभग एक करोड़ कैरेट के डायमंड हर साल निकलते रहे. इनमें से कुछ तो 342.57 कैरेट के लेमन येलो डायमंड थे. जिनकी कीमत पूरी दुनिया में बहुत ज्यादा होती है.

साल 2004 के बाद से होने लगे हादसे

साल 2004 के पहले तक यह खदान अच्छे से चल रही थी, लेकिन साल 2004 में आई एक बाढ़ के कारण अचानक इसे बंद करना पड़ा. इसके बाद से ही इस खदान के ऊपर उड़ने वाले छोटे-छोटे एयरक्राफ्ट और हेलीकॉप्टर अचानक से इसकी ओर आकर्षित होकर इस खदान में समाने लगे. कहा जाता है कि अगर इस खदान से 1000 फीट से नीचे की उड़ान कोई हेलीकॉप्टर या एयरक्राफ्ट भरता है तो उसे यह खदान निगल जाती है. साल 2009 में इस खदान को फिर से खोला गया था, लेकिन 2017 में जब यहां एक बार और बाढ़ आई और उसमें 140 से ज्यादा मजदूरों की मौत हो गई तो उसके बाद इसे बंद कर दिया गया.

ऐसा क्यों होता है

वैज्ञानिकों द्वारा बताया जाता है कि इस खदान के ऊपर उड़ने वाली हर चीज का इसमें समा जाने के पीछे का रहस्य यहां ठंडी और गर्म हवा का आपस में मिलना है. ठंडी-गर्म हवा के आपस में मिलने से यहां एक शक्तिशाली आकर्षण केंद्र बन जाता है, जिसके चलते यह अपने ऊपर से उड़ने वाली चीज़ें अंदर की ओर खींच लेता है.

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