फील्ड से सर्वर तक सीक्रेट ट्रैकिंग! SIR में कैसे बारीकी से पकड़ी जाती है हर गड़बड़ी
SIR Second Phase: क्या आप जानते हैं कि आखिर चुनाव आयोग का SIR कैसे बिना किसी शोर के वोटर लिस्ट की परत-दर-परत कैसे पड़ताल कर रहा है. फील्ड से सर्वर तक कैसे हर डेटा ट्रैक हो रहा है.

बिहार में संपन्न हुए SIR (विशेष गहन पुनरीक्षण) के बाद चुनाव आयोग ने देश के 12 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मतदाता सूचियों के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण लागू करने का ऐलान कर दिया है. 28 अक्टूबर को इन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की मतदाता सूचियां स्थायी रूप से फ्रीज कर दी गईं, जिससे SIR का दूसरा चरण शुरू हो गया है. यह चरण 7 फरवरी 2026 तक जारी रहेगा. इस प्रक्रिया में शामिल क्षेत्रों में अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, गोवा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, पुडुचेरी, छत्तीसगढ़, गुजरात, केरल, तमिलनाडु और लक्षद्वीप शामिल हैं.
अब यहां यह भी जान लेते हैं कि आखिर SIR में होने वाली गड़बड़ी को फील्ड से लेकर सर्वर तक आखिर किस तरीके से पकड़ा जाता है, जिससे कि गलती दोहराई न जा सके.
परखा जाता है हर नाम
क्या आपने कभी सोचा है कि मतदाता सूची में जो लाखों नाम होते हैं, उनमें हर एक को कैसे परखा जाता है? कोई नाम दोहराया न जाए, कोई फर्जी पहचान न बचे, कोई असली वोटर छूट न जाए, ये सब काम अब चुपचाप लेकिन बेहद सटीक तरीके से हो रहा है, और इस पूरे अभियान का नाम है विशेष गहन पुनरीक्षण यानि SIR.
सर्वर पर ट्रैक होता है पूरा डेटा
SIR दरअसल वोटर लिस्ट की सबसे बड़ी जांच प्रक्रिया है, जो फील्ड से लेकर सर्वर तक फैल चुकी है. बाहर से यह बस एक प्रशासनिक काम लगता है, लेकिन अंदर इसके पीछे चल रहा सिस्टम किसी जासूसी नेटवर्क से कम नहीं है. हर नाम, हर पते और हर दस्तावेज की जांच का पूरा डेटा ऑनलाइन जुड़ा है. जब किसी मतदाता की जानकारी अपडेट या हटाई जाती है, तो उसका रिकॉर्ड सीधे सर्वर पर ट्रैक होता है- कब, कहां, किस अधिकारी ने जांच की.
फील्ड से सर्वर तक डेटा मैचिंग
फील्ड लेवल पर इस काम के लिए बूथ लेवल अधिकारी (BLO) घर-घर जाकर मतदाताओं से मिलते हैं. वे यह देखते हैं कि व्यक्ति वास्तव में वहीं रह रहा है या नहीं, उसकी उम्र वोट देने लायक है या नहीं, और क्या पहले से उसका नाम किसी दूसरी जगह दर्ज तो नहीं है. यह जानकारी मोबाइल ऐप के जरिए सीधे सर्वर तक जाती है. वहीं सर्वर पर बैठी टीम डेटा मैचिंग और डुप्लिकेट एंट्री पकड़ने का काम करती है.
डिजिटल डिटेक्टिव की तरह होता है काम
सबसे दिलचस्प बात यह है कि अब इस जांच में आधार लिंकिंग, फेस वेरिफिकेशन और डिजिटल फॉर्म्स जैसी आधुनिक तकनीकें भी जुड़ गई हैं. यानी अगर कोई मतदाता दो जगह से नाम दर्ज कराता है, तो सिस्टम खुद अलर्ट भेज देता है. यह पूरी प्रक्रिया ऐसे काम करती है जैसे कोई डिजिटल डिटेक्टिव हर चाल को ट्रैक कर रहा हो.
खत्म हो रहीं समस्याएं
SIR की असली ताकत उसकी पारदर्शिता में है. यहां हर कदम पर यह देखा जाता है कि किसी अधिकारी ने बिना जांच के कोई बदलाव तो नहीं किया है और अगर कहीं कोई गड़बड़ी दिखती है, तो तुरंत उसे फ्लैग किया जाता है ताकि उच्च स्तर पर समीक्षा हो सके. यही वजह है कि अब फर्जी वोटिंग, डुप्लिकेट आईडी और गलत एंट्री जैसी पुरानी समस्याएं तेजी से खत्म हो सकेंगी. इस अभियान का असर भी अब साफ दिखने लगा है. लाखों नाम सुधारे जा चुके हैं, कई दोहराव हटाए गए हैं, और नए युवा वोटरों के नाम बड़ी संख्या में जोड़े जा रहे हैं.
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Source: IOCL























