मीनार पर चढ़कर चील-कौओं के लिए लाशें छोड़ देते हैं ये लोग, भारत ही नहीं...पाकिस्तान में भी इनकी आबादी
हम जिन लोगों की बात कर रहे हैं वो एक ऐसे समुदाय से आते हैं जो भारत और पाकिस्तान दोनों जगह रहते हैं. इस समुदाय में ये प्रथा सदियों से चली आ रही है. ये लोग अपने परिजनों के शव को एक खास टावर पर रखते हैं.
मृत्यु के बाद हर इंसान का अंतिम संस्कार उसके धर्म के अनुसार होता है. जैसे हिंदुओं में मृत्यु के बाद उनके शरीर को जला दिया जाता है. वहीं मुसलमानों में मृत्यु के बाद शरीर को दफना दिया जाता है. लेकिन इस दुनिया में एक ऐसा समुदाय भी है जो अपने परिजनों की मृत्यु के बाद उनके शरीर को ना तो दफनाते हैं और ना ही जलाते हैं. बल्कि एक खास मीनार पर शव को रख देते हैं.
कौन हैं ये लोग
हम जिन लोगों की बात कर रहे हैं वो पारसी समुदाय के हैं. पारसी समुदाय में ये प्रथा सदियों से चली आ रही है. ये लोग अपने परिजनों की मौत के बाद उनके शव को टावर ऑफ साइलेंस पर रख देते हैं. इस प्रथा के लिए एक खास शब्द 'दखमा' का इस्तेमाल किया जाता है. दरअसल, पारसी समुदाय के लोग मानते हैं कि मौत के बाद इंसान के शरीर को प्रकृति को वापिस कर देना चाहिए. यही वजह है कि पारसी लोग शवों को टावर ऑफ साइलेंस पर रख देते हैं ताकि चील कौए उन्हें खा कर अपना पेट भर सकें.
इस प्रथा के बारे में पारसी लोग क्या सोचते हैं?
इस मुद्दे पर बीबीसी से बात करते हुए कोलकाता के पारसी अग्नि मंदिर के पुजारी जिमी होमी तारापोरवाला कहते हैं कि भारत में पहला टावर ऑफ साइलेंस कोलकाता में बनाया गया था. हम सदियों से इस प्रथा का पालन कर रहे हैं. तारापोरवाला कहते हैं कि मुख्य रूप से इन शवों को गिद्ध खाते हैं. हालांकि, कौए और अन्य पक्षी भी कई बार इन शवों को खाने टावर ऑफ साइलेंस पर आ जाते हैं.
पाकिस्तान में भी रहते हैं ये लोग
पारसी समुदाय के लोग आपको भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में मिल जाएंगे. 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में पारसियों की संख्या 57,264 थी. हालांकि, 2001 की जनगणना के अनुसार, इनकी संख्या भारत में 69 हजार से ज्यादा थी. जबकि, पाकिस्तान की बात करें तो 2015 की जनगणना के अनुसार पाकिस्तान में पारसियों की संख्या 1092 थी.
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