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कौन थे बहादुर शाह जफर, जिनकी पेंटिंग पर औरंगजेब समझकर पोत दी गई कालिख

Who Was Bahadur Shah Zafar: आज गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने बहादुर शाह जफर की पेंटिंग को औरंगजेब की समझकर उस पर कालिख पोत दी. चलिए जानें कि बहादुर शाह जफर कौन थे.

उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद रेलवे स्टेशन पर आज गजब हंगामा देखने को मिला. वहां पर हिंदू रक्षा दल के कार्यकर्ताओं ने एक मुगल बादशाह की पेंटिंग पर कालिख पोत दी. लेकिन जिस पेंटिंग को उन लोगों ने औरंगजेब की समझ कर उस पर कालिख पोती, दरअसल वह आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर की निकली. अब रेलवे पुलिस आरोपियों के खिलाफ सख्त एक्शन की तैयारी में है. चलिए आपको बताएं कि आखिर बहादुर शाह जफर कौन थे और भारत में उनका क्या योगदान था. 

132 साल बाद चला था कब्र का पता 

बहादुर शाह जफर हमारे उस स्वतंत्रता संग्राम के नायक रहे हैं, जिसको हम भले ही हार गए थे, लेकिन हिंदू और मुसलमान क्रांतिकारियों ने उसे एकजुट होकर लड़ा था और अपनी एकता के जरिए अंग्रेजों में खौफ पैदा कर दिया था. बहादुर शाह जफर का नाम आते ही हिंदुस्तान के प्रति उनके प्रेम को याद किया जाता है. 1857 के विद्रोह में उन्होंने देश के सभी राजाओं का एक सम्राट के तौर पर नेतृत्व किया था. लेकिन इसके लिए उनको भारी कीमत अंग्रेजों का बंदी बनकर और जान देकर चुकानी पड़ी थी. अंग्रेजों ने उनको ऐसी मौत दी थी कि 132 साल तक उनकी कब्र के बारे में पता ही नहीं चल पाया. 

देशप्रेम की सजा मौत से चुकानी पड़ी

बहादुर शाह जफर के पिता उनको गद्दी नहीं सौंपना चाहते थे. लेकिन धीरे-धीरे मुगलों का पतन हो रहा था और अंग्रेज देश की गद्दी पर राज जमा रहे थे. ऐसे में मुगलों के पास राज करने के लिए सिर्फ शाहजहांबाद यानि दिल्ली ही बचा था. मेरठ से जब अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति का बिगुल बजा तो अंग्रेजों के आक्रमण से परेशान राजा-महाराजाओं ने एकजुट होना शुरू किया. उन सभी ने बहादुर शाह जफर से बात की तो बहादुर शाह जफर ने विद्रोह में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ नेतृत्व को स्वीकार कर लिया. लेकिन 82 साल के बहादुर शाह जफर यह युद्ध हार गए और जिंदगी के आखिरी दिन अंग्रेजों की कैद में गुजारने पड़े. 

कब और कैसे हुई आखिरी मुगल बादशाह की मौत

ब्रिगेडिर जसबीर सिंह की किताब कॉम्बैट डायरी, ऐन इलस्ट्रेटेड हिस्ट्री ऑफ़ ऑपरेशन्स कनडक्टेड बाय फोर्थ बटालियनए द कुमाऊं रेजिमेंट 1788 टू 1974 में लिखा है कि 6 नवंबर 1862 को बहादुर शाह जफर को लकवे का तीसरा दौरा पड़ा और 7 नवंबर की सुबह उनका निधन हो गया था. उसी दिन रंगून में शाम को 4 बजे के करीब उनको दफन कर दिया गया था. जिस घर में उनको दफनाया गया था, उसके बाद उनकी कब्र की जमीन को समतल कर दिया गया था. जब 132 साल के बाद 1991 में एक स्मारक कक्ष की आधारशिला रखने के लिए नींव की खुदाई की जा रही थी, तब एक भूमिगत कब्र का पता चला. 

कब बनी थी दरगाह

उस दौरान उस कब्र में से बहादुर शाह जफर की निशानी और कुछ अवशेष मिले, जिससे कि यह साबित हो पाया कि वो कब्र बहादुर शाह जफर की थी. भले ही 87 साल में उनकी मौत हो गई हो, लेकिन उनकी दरगाह 132 साल के बाद 1994 में बनी थी.

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