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राकेश शर्मा से भी पहले अंतरिक्ष में पहुंची थी इस भारतीय की आवाज, गुरुदेव ने दिया था ‘सुरश्री’ का खिताब

Kesarbai Kerkar Indian Classical Singer: सुर से श्रोताओं के दिल पर छाप छोड़ने वाली भारतीय गायिका की आवाज आज से 48 साल पहले अंतरिक्ष में गूंजी थी. उस वक्त तो राकेश शर्मा भी अंतरिक्ष में नहीं पहुंचे थे.

हर सदी में कोई न कोई आवाज ऐसी होती है, जो कि सदियों तक लोगों के कानों में तो गूंजती ही है साथ ही साथ उसकी खनक रूह को छू जाती है. कभी-कभी यह आवाज इतनी खास हो जाती है कि धरती से अंतरिक्ष तक में गूंजने लगती है. एक ऐसी ही आवाज थी केसरबाई केरकर की. वो न सिर्फ जादुई आवाज की मल्लिका थीं, बल्कि उनकी गायकी अंतरिक्ष तक जा पहुंची थी. केसरबाई केरकर ऐसी पहली भारतीय गायिका थीं, जिनकी आवाज भारत के पहले अंतरिक्ष यात्री राकेश शर्मा से भी पहले अंतरिक्ष में गूंजी थी. चलिए आज आपको इनके बारे में विस्तार से बताते हैं. 

छोटी उम्र में ही कर ली सुरों से दोस्ती

केसरबाई केलकर 13 जुलाई 1892 को गोवा के एक छोटे से गांव में जन्मी थीं. उस वक्त गोवा में पुर्तगालियों का शासन हुआ करता था. भारत में उस वक्त अंग्रेजों का राज था. बचपन से ही उनके अंदर संगीत को लेकर एक अलग लगाव था. देवदासी परंपरा में जन्मी केसरबाई केलकर को देखकर लोगों ने यही सोचा था कि उनकी मंजिल सिर्फ मंदिर तक ही सीमित होगी. लेकिन उन्होंने परंपराओं को तोड़ते हुए सुरों के साथ अपनी दोस्ती की व अपनी आवाज को आसमान तक पहुंचा दिया. केसरबाई को संगीत से बहुत लगाव था, तो उन्होंने सिर्फ 16 साल की उम्र में ही शास्त्रीय संगीत सीखना शुरू कर दिया था और इसके लिए वे मुंबई चली आई थीं. उस वक्त उन्होंने कई गुरुओं से शिक्षा ली थी, लेकिन उनको जिस सुर की तलाश थी, वो इच्छा अभी भी अधूरी थी.

विरासत बन गया 'जात कहां हो'

केसरबाई केलकर का सपना था कि वे उस्ताद अल्लादिया खान से शिक्षा लें. वे उनके पास गईं, उन्होंने केसरबाई को तीन महीने परखने के बाद मना कर दिया था. लेकिन वे निराश होकर रुकीं नहीं, उन्होंने तब शाहू महाराज से मदद मांगी और यहीं से उनकी जिंदगी में एक नया मोड़ आया. 25 साल उन्होंने अपने सुर साधना में लगा दिए. कहा जाता है कि वे गाती नहीं थीं, बल्कि संगीत में ही सांस लेती थीं. उनका मानना था कि संगीत को सिर्फ महसूस किया जा सकता है, बल्कि बेचा नहीं जा सकता. इसीलिए वे रिकॉर्डिंग नहीं करती थीं. फिर भी राग भैरवी में गाया उनका एक गाना 'जात कहां हो' देश को मिला जो कि एक विरासत बन गया.

नासा ने अंतरिक्ष में भेजी उनकी आवाज

1977 में नासा का भेजा Voyager 1 यान जो कि हमारे सौरमंडल से भी आगे जा रहा था, इसके साथ 27 देशों की सबसे सुंदर आवाजें दर्ज थीं. उनका गाया 'जात कहां हो' एथ्नोम्यूजिकॉलजिस्ट रॉबर्ट ई. ब्राउन के सुझाव पर चुना गया था. उनका कहना था कि यह हिंदुस्तान के संगीत की सबसे सुंदर रिकॉर्डिंग में से एक है. वे इतना सुंदर गाती थीं कि 1938 में रवींद्रनाथ टैगोर ने उनको 'सुरश्री' की उपाधि दी थी, जिसका अर्थ होता है 'सुरों की रानी'. इसके अलावा उनको पद्म भूषण के अलावा कई सम्मान भी मिले. 1977 में ही केसरबाई का निधन हो गया था, लेकिन आज भी उनकी आवाज अंतरिक्ष में कहीं पर गूंज रही है. 

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About the author निधि पाल

निधि पाल को पत्रकारिता में छह साल का तजुर्बा है. लखनऊ से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत भी नवाबों के शहर से की थी. लखनऊ में करीब एक साल तक लिखने की कला सीखने के बाद ये हैदराबाद के ईटीवी भारत संस्थान में पहुंचीं, जहां पर दो साल से ज्यादा वक्त तक काम करने के बाद नोएडा के अमर उजाला संस्थान में आ गईं. यहां पर मनोरंजन बीट पर खबरों की खिलाड़ी बनीं. खुद भी फिल्मों की शौकीन होने की वजह से ये अपने पाठकों को नई कहानियों से रूबरू कराती थीं.

अमर उजाला के साथ जुड़े होने के दौरान इनको एक्सचेंज फॉर मीडिया द्वारा 40 अंडर 40 अवॉर्ड भी मिल चुका है. अमर उजाला के बाद इन्होंने ज्वाइन किया न्यूज 24. न्यूज 24 में अपना दमखम दिखाने के बाद अब ये एबीपी न्यूज से जुड़ी हुई हैं. यहां पर वे जीके के सेक्शन में नित नई और हैरान करने वाली जानकारी देते हुए खबरें लिखती हैं. इनको न्यूज, मनोरंजन और जीके की खबरें लिखने का अनुभव है. न्यूज में डेली अपडेट रहने की वजह से ये जीके के लिए अगल एंगल्स की खोज करती हैं और अपने पाठकों को उससे रूबरू कराती हैं.

खबरों में रंग भरने के साथ-साथ निधि को किताबें पढ़ना, घूमना, पेंटिंग और अलग-अलग तरह का खाना बनाना बहुत पसंद है. जब ये कीबोर्ड पर उंगलियां नहीं चला रही होती हैं, तब ज्यादातर समय अपने शौक पूरे करने में ही बिताती हैं. निधि सोशल मीडिया पर भी अपडेट रहती हैं और हर दिन कुछ नया सीखने, जानने की कोशिश में लगी रहती हैं.

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