Sheikh Hasina Verdict: बांग्लादेश के सुप्रीम कोर्ट से कितना अलग है ICT, जिसने शेख हसीना को सुनाई मौत की सजा
ICT Bangladesh Sheikh Hasina Verdict: सुप्रीम कोर्ट और ICT दोनों अलग-अलग मामलों में फैसला करते हैं. आइए जानें कि दोनों के काम और मामलों कें क्या फर्क होता है.

ICT Bangladesh Sheikh Hasina Verdict: बांग्लादेश में शेख हसीना के खिलाफ ICT अदालत अपना फैसला सुना दिया है. कोर्ट ने शेख हसीना को फांसी की सजा सुनाई है. इस फैसले को टीवी पर लाइव दिखाया गया, इसलिए सुरक्षा को बहुत सख्त कर दिया गया है. राजधानी ढाका में पुलिस को चेतावनी दी गई है कि अगर प्रदर्शनकारियों ने हिंसा की तो सीधे कार्रवाई की जाएगी. शहर में तनाव का माहौल है और लगभग 15 हजार सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं. अदालत ने कहा कि शेख हसीना पर प्रदर्शन के दौरान मानवता के खिलाफ अपराध करने के आरोप हैं और इसके लिए पर्याप्त सबूत मौजूद हैं.
लेकिन क्या आपको यह पता है कि आखिर यह ICT कोर्ट क्या है, जो कि शेख हसीना पर लगे गंभीर आरोपों और सबूत के आधार पर उनको मौत तक की सजा सुना सकती है. चलिए जानें कि यह बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट से कितनी अलग है.
बांग्लादेश का सुप्रीम कोर्ट
बांग्लादेश की न्याय व्यवस्था दो प्रमुख संस्थाओं से संचालित होती है, पहला है सुप्रीम कोर्ट और दूसरा ICT (International Crimes Tribunal). सुप्रीम कोर्ट देश की सर्वोच्च न्यायिक संस्था है. यह नागरिक, आपराधिक, संवैधानिक और रोजमर्रा के मामलों की अंतिम सुनवाई करती है. इसके फैसले पूरे देश में बाध्यकारी होते हैं और किसी भी नागरिक या संस्था पर तुरंत लागू होते हैं.
क्या है ICT कोर्ट?
वहीं ICT एक विशेष न्यायालय है, जो केवल गंभीर अपराधों की सुनवाई करता है. इन अपराधों में मुख्य रूप से युद्ध अपराध, नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराध शामिल हैं. ICT का गठन 1971 के बांग्लादेश स्वतंत्रता युद्ध के दौरान हुए बड़े अपराधों के लिए किया गया था. इसका उद्देश्य इतिहास के सबसे गंभीर अपराधों के लिए न्याय देना है, और यह आम नागरिक मामलों को नहीं देखता है.
किस तरह के मामले देखता है ICT
सुप्रीम कोर्ट और ICT के बीच फर्क सिर्फ मामले की प्रकृति का ही नहीं, बल्कि प्रक्रिया और अधिकार क्षेत्र का भी है. सुप्रीम कोर्ट में सामान्य न्यायाधीश होते हैं और वह सभी प्रकार के मामलों पर निर्णय देता है. ICT में विशेष नियुक्त न्यायाधीश और विशेषज्ञ होते हैं, और यह केवल इतिहास और युद्ध से जुड़े मामलों को देखता है.
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसी बड़े राजनीतिक व्यक्ति को ICT के सामने लाया भी जाता है, तो सजा की प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है. मृत्युदंड की संभावना तभी होती है जब अपराध के स्पष्ट और पर्याप्त प्रमाण हों. केवल राजनीतिक विरोध या सत्ता के लिए विवादों को ICT या सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा के लिए आधार नहीं मानते हैं.
मतलब साफ है कि सुप्रीम कोर्ट और ICT दोनों अलग हैं. सुप्रीम कोर्ट रोजमर्रा के मामलों और संवैधानिक मामलों में अंतिम शब्द कहती है, जबकि ICT केवल इतिहास के गंभीर अपराधों की सुनवाई करती है. शेख हसीना जैसे राजनीतिक चेहरे के मामले में, सजाए मौत तक पहुंचना सबूतों के आधार पर संभव हो सकता है.
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