Major Mohit Sharma: आतंकियों के बीच आतंकी बनकर कितने दिन रहे थे मेजर मोहित शर्मा, जिन पर बनी है रणवीर सिंह की फिल्म 'धुरंधर'?
Major Mohit Sharma: रणवीर सिंह की लेटेस्ट फिल्म धुरंधर के बाद मेजर मोहित शर्मा के बारे में चर्चाएं तेज हो गई हैं. आइए जानते हैं कि मेजर मोहित शर्मा आतंकवादियों के बीच कितने दिन तक रहे थे.

Major Mohit Sharma: रणवीर सिंह की लेटेस्ट फिल्म धुरंधर 5 दिसंबर 2025 को रिलीज हो चुकी है. यह फिल्म लोगों के बीच काफी सुर्खियां बटोर रही है और उसे देखकर कई लोगों का मानना है कि कहानी स्पेशल फोर्स के जांबाज कमांडो मेजर मोहित शर्मा से प्रेरित है. हालांकि मेकर्स का कहना है कि यह कहानी पूरी तरह से काल्पनिक है. इसी बीच आइए जानते हैं कि कौन थे मेजर मोहित शर्मा और आतंकवादियों के बीच वे कितने दिन तक अंडर कवर थे.
कौन थे मेजर मोहित शर्मा
हरियाणा के रोहतक में जन्मे मोहित शर्मा ने देश की सेवा करने का एक खूबसूरत सपना देखा था. उनका यह सपना नेशनल डिफेंस अकादमी और इंडियन मिलिट्री अकादमी में पूरा हुआ. यहां उन्होंने एक बेहतरीन सैनिक बनने की ट्रेनिंग ली. बाद में वह 1 पैरा स्पेशल फोर्स में शामिल हो गए. यह यूनिट सबसे ज्यादा मुश्किल और खुफिया ऑपरेशंस के लिए जानी जाती है. मेजर शर्मा जल्द ही यूनिट के सबसे काबिल और भरोसेमंद अधिकारियों में से एक बन गए.
2004 का अंडरकवर मिशन
मेजर मोहित शर्मा का सबसे असाधारण मिशन 2004 में श्रीनगर से लगभग 50 किलोमीटर दूर शोपियां में हुआ था. इस मिशन के लिए उन्होंने इफ्तिखार भट्ट की पहचान अपनाई और अंडरकवर चले गए. उन्होंने उस इंसान की पहचान बनाई जो भारतीय सेना से अपने भाई की मौत का बदला लेना चाहता था. उन्होंने अपना रूप पूरी तरह से बदल लिया. लंबे बाल, घनी दाढ़ी, बदली हुई आवाज और बदला हुआ व्यवहार.
इस मिशन के लिए मेजर शर्मा दो हफ्तों तक हिजबुल मुजाहिदीन के आतंकियों के बीच रहे. वहां उन्होंने खुफिया जानकारी इकट्ठी की, उनके ठिकानों को निशाना बनाया, उनके रास्तों को समझा और पूरे नेटवर्क के काम करने के तरीकों को समझ लिया.
एक दिन खुल गया राज
खुफिया जानकारी इकट्ठा करने के बाद एक दिन स्थिति बिगड़ गई और मेजर शर्मा की असली पहचान सामने आ गई. चारों तरफ से घिरे होने के बावजूद उन्होंने आतंकवादियों का डटकर मुकाबला किया और मदद आने से पहले दो टॉप आतंकवादी अबू तोरारा और अबू सब्जार को मार गिराया.
कुपवाड़ा 2009 का मिशन
मार्च 2009 में उन्होंने कुपवाड़ा के घने जंगलों में एक और जरूरी ऑपरेशन को लीड किया. मुठभेड़ के दौरान उन्हें कई गोलियां लगीं. लेकिन गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी उन्होंने अपनी टीम को लीड करना जारी रखा और चार आतंकवादियों को मार गिराया. दुर्भाग्य से चोट जानलेवा साबित हुई और भारत ने अपने सबसे बेहतरीन योद्धाओं में से एक को खो दिया.
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