(Source: ECI / CVoter)
Z security: कैसे मिलती है किसी को Z सिक्योरिटी, कौन उठाता है इसका खर्च
देश में लोकसभा चुनाव की तैयारियां जोरो-शोरों से जारी हैं. लेकिन आप जानते हैं कि इस दौरान मुख्य चुनाव आयुक्त को Z सिक्योरिटी मिली है. आखिर ये सुरक्षा कैसे मिलती है और इसका खर्च कौन उठाता?
देश में लोकसभा चुनाव की तैयारी जोरो-शोरों से जारी है. अभी हाल ही में सरकार ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को सशस्त्र कमांडो की जेड श्रेणी की वीआईपी सुरक्षा दी है. बता दें कि यह फैसला गृह मंत्रालय ने इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट के आधार पर लिया है. लेकिन सवाल ये है कि Z सिक्योरिटी कैसे मिलती है और इसका खर्चा कौन उठाता है. आज हम आपको बताएंगे कि किन लोगों को मिल सकती है ये सिक्योरिटी...
किसे मिलेगी सुरक्षा?
बता दें कि किसी भी व्यक्ति को सिक्योरिटी कवर देने का फैसला गृह मंत्रालय करता है. इसके अलावा ये महत्वपूर्ण हस्तियों को मिलती है. जैसे वर्तमान गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत समेत कुछ अन्य व्यक्तियों का नाम इसमें शामिल है.
बता दें कि इसके अलावा केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के आकलन पर अभिनेता, क्रिकेटर्स को भी सुरक्षा दी जा सकती है. सुरक्षा एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर तय होता है कि किस शख्स को कौन-सी कैटेगरी की वीवीआईपी सुरक्षा दी जाएगी. भारत में आमतौर पर सरकार द्वारा पांच तरह सुरक्षा कैटेगरी दी जाती हैं- Z+, Z, Y+, Y और X. उदाहरण के लिए साल 2020 में सुरक्षा एजेंसी की रिपोर्ट के आधार पर बॉलीवुड अभिनेत्री कंगना रनौत को CRPF की Y+ श्रेणी की सुरक्षा दी गई थी.
कौन उठाता है इसका खर्च?
आपने देखा होगा जिस भी व्यक्ति को ये सुरक्षा मिलती है, उसके साथ जवानों और सुरक्षा वाहन का जत्था होता है. ये सुरक्षा बहुत खर्चीली व्यवस्था होती है. ऐसे में सवाल उठता है कि यह खर्च उठाता कौन है? इसका बहुत आसान जबाव ये है कि नागरिकों को सुरक्षा देने की जिम्मेदारी सरकार की होती है. ऐसे में इस वीआईपी सिक्योरिटी का खर्च भी सरकार उठाती है.
बता दें कि 2014 में दायर हुई एक आरटीआई के जवाब में सरकार ने कहा था कि इन सुरक्षा घेरों का खर्चा राज्य सरकार के खाते में जाता है. सुरक्षा पाने वाला व्यक्ति जिस भी राज्य में आमतौर पर रहता है, उसे मिलनी वाली सुरक्षा का खर्च वो ही राज्य सरकार उठाती है. वहीं इस तरह की व्यवस्था में कई सारी एजेंसियां शामिल होती हैं. इसलिए सुरक्षा कवर पर होने वाले खर्च का सटीक आंकड़ा नहीं बताया जा सकता है.
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