हिंदुओं के घर में मौत होने पर कराते हैं मुंडन, जानिए मुस्लिमों में क्या है रिवाज?
हिंदुओं में मौत के बाद मुंडन किया जाता है जिसमें पुरुष अपने बाल काटते हैं. मुस्लिमों में मुंडन की परंपरा नहीं होती. मुस्लिमों में मृत्यु होते ही पहले इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन कहा जाता है.

भारत में मृत्यु से जुड़े रीति रिवाज धर्म के अनुसार अलग-अलग होते हैं. हिंदू धर्म में जहां मौत के बाद कई तरह की परंपराएं निभाई जाती है, वहीं मुस्लिम समुदाय में भी अंतिम संस्कार से जुड़ी अपनी धार्मिक प्रक्रियाएं और रस्में होती है. दोनों धर्म में परंपराओं का उद्देश्य मरने वाले की आत्मा की शांति और परिवार को सांत्वना देना होता है. ऐसे में चलिए आज हम आपको बताते हैं कि हिंदुओं के घर में मौत होने पर मुंडन करते हैं तो मुस्लिम में इसे लेकर क्या रिवाज है.
हिंदू धर्म में मृत्यु के बाद मुंडन का महत्व
हिंदू धर्म में किसी भी सदस्य की मृत्यु के बाद घर में पातक लगने की मान्यता है, जो 13 दिनों तक चलता है. इस दौरान परिवार के लोग कई नियमों का पालन करते हैं,जैसे नए कपड़े न पहनना, शुभ कार्यों से दूरी रखना और मुंडन कराना. वहीं ग्रंथों के अनुसार बाल मन को सांसारिक मोह से जोड़ते हैं, इसलिए मुंडन को शोक व्यक्त करने और परलोक सिधारे व्यक्ति के प्रति श्रद्धा दिखाने का तरीका माना गया है. यह भी माना जाता है कि मुंडन के बाद पातक समाप्त हो जाता है और व्यक्ति कुछ समय के लिए भौतिक आकर्षण से दूर रहता है. इसके साथ ही यह धारणा भी है कि मृत्यु के बाद आत्मा अपने परिजनों के आसपास रहने की कोशिश करती है, ऐसे में मुंडन को उसे सांसारिक संबंधों से मुक्त करने का प्रतीक माना जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार अगर यह नियम पूर्ण नहीं किया जाए तो मृतक की आत्मा को मोक्ष पाने में दिक्कत आती है.
कैसी होती हैं मुस्लिम समुदाय में मृत्यु के बाद की रस्में?
हिंदुओं में मौत के बाद मुंडन, आत्मा की शांति के लिए होता है, जिसमें पुरुष अपने बाल काटते हैं. वहीं, मुस्लिमों में मुंडन की परंपरा नहीं होती है. मुस्लिम समुदाय में मृत्यु होते ही सबसे पहले इन्ना लिल्लाहि व इन्ना इलैहि राजिऊन कहा जाता है. इसका मतलब है कि हम अल्लाह के हैं और उसी की ओर लौटकर जाएंगे. इसके बाद मुस्लिम समुदाय में मृतक को धार्मिक रूप से पवित्र करने के लिए गुस्ल दिया जाता है. शरीर को साफ पानी से धोया जाता है और फिर बिना सिले हुए सफेद कपड़े यानी कफन में लपेटा जाता है. मुस्लिम समुदाय में पुरुषों के लिए तीन और महिलाओं के लिए पांच कपड़ों का उपयोग किया जाता है. इसके बाद नमाज ए जनाजा अदा की जाती है, जिसमें लोग मृतक की माफी और शांति के लिए दुआ करते हैं. नमाज के बाद शव को कब्रिस्तान ले जाकर सुपुर्द-ए-खाक किया जाता है, जहां मृतक को दाईं करवट किबला की दिशा में दफनाया जाता है. वहीं मुस्लिम समुदाय में मिट्टी डालने की परंपरा अंतिम विदाई का प्रतीक होती है.
मौत के बाद मुस्लिम समाज में चेहल्लुम की परंपरा
जिस तरह हिंदू धर्म में 13वीं का आयोजन होता है, उसी तरह मुस्लिम समाज में मृत्यु के 40वें दिन चेहल्लुम मनाया जाता है. इसमें मृतक की पसंद का खाना बनाकर गरीबों में बांटा जाता है. इस दिन परिवार के लोग कब्र पर जाकर दुआ करते हैं और कुरान की आयतें पढ़ते हैं. चेहल्लुम का उद्देश्य मृतक की आत्मा के लिए भलाई की दुआ करना और परिवार को मानसिक रूप से मजबूत बनाना होता है.
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