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क्या सच में होते हैं हिम मानव? जानिए इनकी सच्चाई

येति यानी हिममानव के बारे में कहा जाता है कि ये करीब 900 साल पुराने हैं. उनके आकार को लेकर कई सारे किस्से कहानियां दुनिया भर में कहे जाते हैं. लेकिन इनकी असलियत अब तक किसी को नहीं मालूम है.

आपसे कुछ साल पहले भारतीय सेवा ने हिमालय के कुछ एरिया में एक रहस्य में इंसान के पैरों के निशान देखे थे. भारतीय सेना के एक दल ने इस बात की जानकारी दी कि उन्होंने 32x15 इंच वाले हिम मानव के पैरों के निशान देखे. न सिर्फ उन्होंने ये जानकारी दी बल्कि उसकी तस्वीरे भी साझा की. तो क्या भारतीय सेना ने जो तस्वीरें साझा की थीं. उनके हिसाब से यह मान लिया जाए कि धरती पर वाकई में हिम मानव रहते हैं.  आइये जानते हैं क्या है इनकी सच्चाई. 

कैसे होते हैं हिम मानव?

येति यानी हिममानव के बारे में कहा जाता है कि ये करीब 900 साल पुराने हैं. उनके आकार को लेकर कई सारे किस्से कहानियां दुनिया भर में कहे जाते हैं. लेकिन इनकी असलियत के बारे में अब तक किसी को भी साफ-साफ कुछ नहीं पता है. हिमालय के कई इलाकों में इनके देखे जाने की बात सामने आई है. लेकिम सबूत कहीं से बी सामने नहीं आया है. इनके बारे में कहा जाता है कि इनका शरीर किसी बंदर की तरह होता है. इनके पूरे शरीर पर बाल होते हैं. लेकिम इनकी खासियत यह है कि वह इंसानों की तरह चल सकते हैं और दौड़ सकते है. नेपाल में हिम मानव यानी येति को लेके काफी कहानियां चलती रहती हैं. नेपाल में कई जगहों पर इनका नाम भी इस्तेमाल होता रहता है.

सबसे पहले कब दिखे?

इंडियन आर्मी ने जब हम मानवों के पैर के फोटो साझा किये. तो एक बार फिर से हिम मानव के बारे में लोगों की उत्सुकता बढ़ गई थी. लेकिन हम मानव दुनिया में कोई नया टर्म नहीं था. सबसे पहले हम मानव के बारे में साल 1882 में बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी के एक पर्वतारोही ने इस बारे में जानकारी दी थी. उन्होंने बताया था कि जब वह हिमालय में ट्रैकिंग कर रहे थे तब उनके गाइड ने एक बहुत बड़े इंसान की तरह किसी चीज को देखा था. इंसान इसलिए क्योंकि वह दो पैरों पर चल रहा था . जिसमें शरीर पर उन्होंने घने लंबे बालों का जिक्र किया था. लेकिन उनकी इस कहानी में बात यह थी  पर्वतारोही बीएच होजशन ने खुद उसे नहीं देखा था. 

नहीं मिले ठोस सबूत

यदि यानी हिमालय के बारे में एक नहीं बल्कि कई कहानियां दुनिया में बताई गईं और सुनाई गईं हैं. लेकिन पूर्ण रूप से इसके साक्ष्य अभी तक नहीं मिले हैं. यानी कि  हे मानव के पैर के निशान तो लोगों ने देखे हैं और भारतीय सेवा ने उसके फोटो भी साझा किए थे. लेकिन अब तक ही मानव को देखने का ना किसी ने दावा किया है और ना ही उसका कोई फोटो अब तक कहीं से सामने आया है. तो ऐसे में हम मानव के अस्तित्व पर यकीन कर पाना मुश्किल है. इसीलिए साक्ष्यों के आधार पर कहें तो हिम मानव अस्तित्व में नहीं है. 

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About the author नीलेश ओझा

नीलेश ओझा पिछले पांच साल से डिजिटल पत्रकारिता में सक्रिय हैं. उनकी लेखन शैली में तथ्यों की सटीकता और इंसानी नजरिए की गहराई दोनों साथ-साथ चलती हैं.पत्रकारिता उनके लिए महज़ खबरें इकट्ठा करने या तेजी से लिखने का काम नहीं है. वह मानते हैं कि हर स्टोरी के पीछे एक सोच होनी चाहिए.  

कुछ ऐसा जो पाठक को सिर्फ जानकारी न दे बल्कि सोचने के लिए भी मजबूर करे. यही वजह है कि उनकी स्टोरीज़ में भाषा साफ़ होती है.लिखने-पढ़ने का शौक बचपन से रहा है. स्कूल की नोटबुक से शुरू हुआ यह सफर धीरे-धीरे पेशेवर लेखन और पत्रकारिता तक पहुंचा. आज भी उनके लिए लेखन सिर्फ पेशा नहीं है यह खुद को समझने और दुनिया से संवाद करने का ज़रिया है.

पत्रकारिता के अलावा वह साहित्य और समकालीन शायरी से भी गहराई से जुड़े हुए हैं. कभी भीड़ में तो कभी अकेले में ख्यालों को शायरी की शक्ल देते रहते हैं. उनका मानना है कि पत्रकारिता का काम सिर्फ घटनाएं गिनाना नहीं है. बल्कि पाठक को उस तस्वीर के उन हिस्सों तक ले जाना है. जो अक्सर नजरों से छूट जाते हैं.

उन्होंने स्पोर्ट्सविकी, क्रिकेट एडिक्टर, इनशॉर्ट्स और जी हिंदुस्तान जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म्स के साथ काम किया है.

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