Mrs Movie: आपके अंदर कोई 'मर्द' है तो जरूर देखिए 'मिसेज', 5 वजहें बनाती हैं फिल्म को मस्ट वॉच
Mrs- 5 Reasons to Watch: जी5 पर आ चुकी सान्या मल्होत्रा की फिल्म 'मिसेज' देखने के लिए थोड़ी सी समझदारी की जरूरत है. फिल्म देखने के बाद हो सकता है बहुत से लोगों की नासमझी दूर हो जाए.

Sanya Malhotra Mrs Movie: वेलकम टू द फैमिली अब आप हमारी बेटी हो...' शादी होते ही किसी लड़की के ससुर ऐसा बोलें तो देखने सुनने वालों के साथ नई नवेली दुल्हन को भी सुखद एहसास होता है. उसके अंदर के वो डर जो कहीं घर करके बैठे होते हैं कि शादी के बाद ससुराल कैसा होगा, लोग कैसे होंगे, क्या वो वहां खुशी ढूंढ पाएगी...ये डर अचानक से खत्म से होने लगते हैं. दर्शकों के तौर पर जब आप 'मिसेज' के शुरुआती कुछ सीन्स देखते हैं तो आपको भी उस खुशी में भागीदार बनने का मन करता है.
लेकिन क्या सच में जो आपको देखने सुनने में अच्छा लग रहा होता है वो सच होता है? क्या होता है वो? भ्रम, दिखावा या छलावा या फिर कुछ और. यही 'कुछ और' की कहानी है मिसेज. मलयालम फिल्म 'द ग्रेट इंडियन किचन' की रीमेक है ये फिल्म. उस फिल्म से तुलना करने के बजाय सिर्फ इस फिल्म से जुड़ी उन 5 वजहों पर नजर डालते हैं जो इसे महिलाओं से ज्यादा पुरुषों के लिए मस्ट वॉच बनाती हैं.

1- पाक साफ नीयत से बनाई गई फिल्म के लिए
इस फिल्म को सिर्फ एंटरटेनमेंट के लिए नहीं बनाया गया है. बल्कि एंटरटेनिंग वे में गंभीर बातों को समीक्षात्मक रूप देकर सोशल मैसेज देने दिया गया है. फिल्म की कहानी शादी करके ससुराल पहुंची महिला की हर रोज की जद्दोजहद के इर्द-गिर्द घूमती है. वो जद्दोजहद ऐसी है जिस पर किसी की नजर नहीं जाती. यहां तक उसके सबसे नजदीकी इंसान मां या पति की भी नहीं.
उस दर्द में वो महिला किस हद तक घुटती है उसका अंदाजा शायद आप इस फिल्म को देखकर लगा पाएं. ऐसा जरूरी नहीं है कि हर महिला के साथ ये होता हो, लेकिन हम जिस समाज में रह रहे हैं वहां ये हम अपने आसपास होते जरूर देखते हैं. शायद ये फिल्म देखकर आप इस बात को समझ पाएं.
2- शोषण को दिखाने का नजरिया अलग है, इसे समझने के लिए
जैसा कि हमने कहा कि फिल्म में जो कुछ दिखाया गया है वो हम अपने आसपास होते देखते होंगे, लेकिन कई बार हम उन चीजों पर ध्यान नहीं दे पाते. इसके पहले बहुत सी फिल्में बनीं जिनमें ऐसा ही सोशल मैसेज देने की कोशिश की गई. उनमें राइटर्स के पास महिला के साथ हो रहे शोषण को दिखाने के लिए बेहद सरल एलीमेंट्स ही थे. जैसे उसके साथ मारपीट, घरेलू हिंसा या फिर गाली गलौज.
लेकिन इस फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है. एक भी बार महिला के साथ शारीरिक चोट पहुंचाने की कोशिश भी नहीं होते दिखाई गई. लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि फिल्म में हिंसा नहीं है. बस वो उससे अलग जिसे हम आमतौर पर हिंसा मानते हैं. फिल्म देखते देखते आप सान्या मल्होत्रा के किरदार के साथ हो रही हिंसा को खुद से जोड़कर देखने लग जाएंगे क्योंकि ये शारीरिक नहीं मानसिक और भावनात्मक हिंसा थी.

3- राइटिंग-डायरेक्शन का कमाल देखने के लिए
पूरी फिल्म में मिसेज के किरदार में सान्या मल्होत्रा के ससुर उन्हें बेटा ये कर लो, बेटाजी वो कर लो, बेटा 'आप' जैसे शब्दों का इस्तेमाल करके बेहद स्नेह से बुलाते दिखते हैं. लेकिन जैसा कि हमने ऊपर वाले पॉइंट में बताया फिल्म में इस स्नेह के साथ हिंसा को इस तरह से मिश्रित कर दिया गया है कि जिसके साथ ऐसा रवैया अपनाया जा रहा है, वो भी इस बात को समझ नहीं पाती.
यहां सबसे समझने वाली बात ये है कि पूरी फिल्म में मौजूद मेल कैरेक्टर्स भी इस बात को नहीं समझ पाते कि वो परिवार के नए सदस्य का असल में शोषण कर रहे हैं. राइटर डायरेक्टर ने उसी पुरुषवादी सोच को दिखाने के लिए एक पूरी फिल्म बना डाली है. इसे डायलॉग से समझाने के बजाय छोटी-छोटी घटनाओं से समझाया गया है और ये बात समझ में भी आती है.
'बहू हमारी बेटी जैसी है...' इतना कहने के बाद उसे खाना बनाने के तरीकों पर सवाल उठाना, सिलबट्टे पर चटनी पिसवाना और यहां तक बिरयानी को पुलाव बोलकर पूरी तरह से खारिज कर देना. ये सब कुछ उन्हीं छोटी-छोटी घटनाओं के अंश हैं. हरमन बावेजा और अनु सिंह चौधरी की ऐसी राइटिंग फिल्म में जान फूंकती है और उसे इंगेजिंग तरीके से पेश करने में डायरेक्टर आरती कदव ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है.
4- एक्टिंग के लिए (खासतौर पर सान्या मल्होत्रा के लिए)
फिल्म में ससुर के किरदार में कंवलजीत सिंह और पति के किरदार में निशांत दहिया ने संयम से बंधी एक्टिंग की है, जिनकी वजह से सान्या मल्होत्रा को खुलकर अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका मिला है. सान्या बॉलीवुड की वो एक्ट्रेस हैं जिनके खाते में दंगल (2000 करोड़ के ऊपर का बॉक्स ऑफिस कलेक्शन) और जवान (1000 करोड़ के ऊपर का कलेक्शन) जैसी फिल्में हैं.
उसके बावजूद वो स्टार बनने के पीछे कभी नहीं भागीं. उन्होंने स्मिता पाटिल और शबाना आजमी वाली राह पकड़ ली है. पगलैट, पटाखा और कटहल जैसी फिल्में इस बात का सबूत भी हैं. ऐसी ही बेहतरीन कंटेंट वाली फिल्मों में से एक मिसेज भी उन्होंने चुनी और इस किरदार को उसी घुटन और परेशानी दिखाते हुए निभा गई हैं जो सच की कहानियों में होता है. इसलिए उनके लिए फिल्म देखनी जरूरी है.
5- महिलाओं के साथ बढ़ती हिंसा पर ध्यान देने के लिए
फिल्म में ऐसे आंकड़े पेश नहीं किए गए, लेकिन अगर आपने फिल्म देखी तो शायद आप एक बार ये जानने की कोशिश जरूर करेंगे कि देश में ऐसी बढ़ती घटनाओं की वजह क्या है और क्यों न चाहते हुए भी कहीं न कहीं महिलाओं के साथ समाज के तौर पर हम सभी कुछ गलत कर रहे होते हैं.

नैशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2022 की रिपोर्ट जो सच दिखाती है वो भयावह है. न्यूज क्लिक ने एनसीआरबी के हवाले से लिखा है कि 2020 में 3 लाख 71 हजार मामलों से बढ़कर 2022 में 4 लाख 28 हजार से ज्यादा ऐसे मामले दर्ज किए गए जिनमें महिलाओं के साथ बदसलूकी हुई. ये आंकड़े वो हैं जो दर्ज हुए, उन आंकड़ों का क्या जो कहीं रिपोर्ट ही नहीं हुए.
फिल्म में दिखाए गए पुरुष न तो राक्षस हैं और न ही वो कोई ऐसी हरकत करते दिखते हैं जिससे उन्हें शैतान कहा जाए. लेकिन उन्हें पता ही नहीं होता है कि वो गलत कर रहे हैं. शायद उनका दिमाग इसके लिए तैयार नहीं हुआ है.
उन्हें लगता है कि कुछ कपड़े, गहने या खाना देने से या फिर कुछ मीठी बातें कर लेने से वो महिलाओं को सम्मान देने वाली खानापूर्ति कर दे रहे हैं. लेकिन सम्मान सिर्फ यहीं तक तो सीमित नहीं होता है. आजादी क्या होती है ये समझने के लिए ये फिल्म देखनी चाहिए.
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Source: IOCL























