VIP सीट: सीएम योगी की सीट पर बीजेपी को लगाना होगा एड़ी-चोटी का जोर, हार पर हो सकता है बड़ा नुकसान!
लोकसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. सीएम योगी की सीट पर उप-चुनाव में कब्जा जमा चुके सपा ने पत्ते तो नहीं खोले हैं. लेकिन, अनुमान है कि सिटिंग एमपी प्रवीण निषाद को ही गठबंधन टिकट देकर एक बार फिर बीजेपी के खिलाफ मैदान में उतारेगा.

गोरखपुर: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट पर प्रत्याशी उतारने को लेकर खुद योगी आदित्यनाथ भी धर्म संकट में फंसे हैं. वहीं भाजपा शीर्ष नेतृत्व भी इस सीट पर उम्मीदवार को लेकर पेशोपेश में है. इस सीट पर भाजपा को एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा. ऐसा नहीं हुआ तो हार का अन्य सीटों पर भी असर पड़ेगा और भाजपा को भारी नुकसान हो सकता है.
गोरखपुर से पांच बार के सांसद योगी आदित्यनाथ जब साल 2017 में मुख्यमंत्री बने तो गोरखपुर की सीट खाली हो गई. यहां हुए उप-चुनाव को हल्के में लेने के कारण ये सीट बीजेपी के हाथ से चली भी गई. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले ही बीजेपी सीट पर लगातार मंथन कर रही है. जहां सर्वे बता रहे हैं कि यूपी में बीजेपी को भारी नुकसान हो सकता है, तो वहीं मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और मंदिर के सीट कहे जाने वाली गोरखपुर सदर सीट पर भाजपा में प्रत्याशी के नाम को लेकर एकमत नहीं बन पा रहा है.
कहा जा रहा है कि सपा-बसपा महागठबंधन को यूपी में भारी फायदा मिलने वाला है. ऐसे में गोरखपुर सीट पर हार-जीत बीजेपी के लिए भारी फायदा या नुकसान का सबब बन सकता है.
उप-चुनाव में समाजवादी पार्टी ने प्रवीण निषाद को गोरखपुर से टिकट देकर जहां जाति कार्ड खेला था. तो वहीं बसपा का उसके साथ आने के कारण भाजपा को इस सीट से हाथ धोना पड़ा. यही वजह है कि भाजपा शीर्ष नेतृत्व और खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ लगातार इस सीट को बचाने की जुगत में लगे हैं.
उप-चुनाव में भाजपा ने प्रवीण निषाद के खिलाफ उपेंद्र दत्त शुक्ल को मैदान में उतारकर ब्राह्मण और सवर्ण जाति के वोटों का ध्रुवीकरण कर जीत का सपना देखा था. लेकिन, उनका आकलन गलत साबित हुआ.
यही वजह है कि सपा के प्रवीण निषाद 22 हजार वोटों से जीत कर सांसद बन गए. उन्होंने भाजपा के हाथ से ये सीट छीनकर बड़ा उलटफेर भी कर दिया.
माना जा रहा है कि सपा बसपा-गठबंधन प्रवीण निषाद को ही इस बार टिकट देकर मैदान में उतारेगा. यही वजह है कि सपा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए अमरेन्द्र निषाद को टिकट देने पर भाजपा मंथन कर रही है.
अमरेन्द्र निषाद को भाजपा टिकट देती है, तो ये भी देखना होगा कि उनके पिता और पूर्व मंत्री स्वर्गीय जमुना निषाद की छवि को वह निषाद वोट बैंक में कितने बड़े पैमाने पर बदल पाते हैं. क्योंकि उनके सामने एक चुनौती ये भी है कि संभावित गठबंधन प्रत्याशी प्रवीण निषाद भी मछुआ समाज से आते हैं.
प्रवीण निषाद के पिता और निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. संजय निषाद 'निषाद समाज' की इस समय निषाद समाज में अच्छी साख है. उनका हक दिलाने का वादा करने वाले डा. संजय निषाद पर निषाद समाज को भरोसा भी है. उनकी एक आवाज पर निषाद समाज के लोग सड़कों पर उतर आते हैं.
जबकि पूर्व मंत्री स्वर्गीय जमुना निषाद के बेटे अमरेंद्र निषाद सपा में हाशिए पर रहे हैं. समाजवादी पार्टी में रहते हुए न तो उन्होंने कोई बड़ा आंदोलन नहीं किया और न ही निषाद समाज के हक की लड़ाई में वे कभी अगुआ बने.
वहीं अगर भाजपा फिर से उपेंद्र दत्त शुक्ल को मैदान में उतारती है, तो ये भी देखना होगा कि एकजुट सवर्ण के अलावा व्यापारी, अधिवक्ता और अन्य पेशे से जुड़े लोग उनके साथ आते हैं या नहीं. वोटों का प्रतिशत भी यह तय करेगा कि इस बार यह सीट भाजपा की झोली में जाती है या फिर सपा इस पर काबिज हो जाएगी.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की सीट को वापस पाना भाजपा के लिए एक बड़ा चैलेंज है. उनके उम्मीदवार के नाम पर ही अब हार या जीत का सेहरा बंधता दिख रहा है.
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