यूजीसी का नया स्नातक पाठ्यक्रम ड्राफ्ट जारी, सावरकर की किताब से मचा विवाद
यूजीसी ने स्नातक स्तर का नया पाठ्यक्रम ड्राफ्ट जारी किया है, जिसमें परंपरागत ज्ञान और आधुनिक शिक्षा का मेल दिखेगा हालांकि इतिहास में सावरकर की किताब शामिल करने पर विवाद खड़ा हो गया है.

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने स्नातक स्तर पर नौ विषयों के लिए लर्निंग आउटकम बेस्ड करिकुलम फ्रेमवर्क (LOCF) का ड्राफ्ट जारी किया है आयोग का कहना है कि इस नए पाठ्यक्रम का उद्देश्य शिक्षा को केवल रटने तक सीमित न रखकर उसे अधिक व्यावहारिक और परिणाम-आधारित बनाना है.
यूजीसी के मुताबिक, यह फ्रेमवर्क छात्रों को वास्तविक जीवन की चुनौतियों से जोड़ने में मदद करेगा। इसमें फील्डवर्क, लैब वर्क, समूह चर्चा और इंटरैक्टिव असाइनमेंट्स को अहम हिस्सा बनाया गया है. इसके जरिए विद्यार्थियों में क्रिटिकल थिंकिंग, समस्या-समाधान और विश्लेषणात्मक कौशल विकसित करने पर जोर है.
क्या है नए पाठ्यक्रम में खास?
रसायन शास्त्र (Chemistry): शुरुआत सरस्वती वंदना से होगी छात्रों को आयुर्वेद, सिद्ध और होम्योपैथी जैसी परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों से परिचित कराया जाएगा साथ ही दूध, शहद और पानी जैसे प्राकृतिक तत्वों के औषधीय महत्व और पारंपरिक भारतीय पेयों का अध्ययन भी कराया जाएगा.
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- गणित (Mathematics): शुल्ब सूत्रों से ज्यामिति, सूर्य सिद्धांत और आर्यभटीयम से खगोल विज्ञान व कालगणना पढ़ाई जाएगी पंचांग की गणना, युग और कल्प की अवधारणाएँ भी इसमें शामिल हैं आर्यभट, श्रीनिवास रामानुजन और डी.आर. कापरेकर जैसे गणितज्ञों के योगदान पर भी विशेष फोकस रहेगा.
• कॉमर्स (Commerce): इसमें कौटिल्य का अर्थशास्त्र, कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी को रामराज्य की अवधारणा से जोड़ना, भगवद गीता से नेतृत्व की शिक्षा और भारत बोध व विकसित भारत जैसे मॉड्यूल शामिल किए गए हैं.
• मानवशास्त्र (Anthropology): आयुर्वेदाचार्य चरक और शल्य चिकित्सा विशेषज्ञ सुश्रुत के ग्रंथों को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया गया है.
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इतिहास पर विवाद
सबसे ज्यादा विवाद इतिहास विषय को लेकर हो रहा है. इस पाठ्यक्रम में स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े अध्ययन के लिए विनायक दामोदर सावरकर की किताब “द इंडियन वॉर ऑफ इंडिपेंडेंस” को सुझाया गया है.यही हिस्सा विवाद का कारण बना है.
आलोचकों का कहना है कि अगर स्वतंत्रता आंदोलन को सिर्फ सावरकर के नजरिए से पढ़ाया गया, तो यह आंदोलन की विविधता और व्यापकता को कम कर देगा. उनका मानना है कि स्वतंत्रता संग्राम में गांधी, नेहरू, भगत सिंह, सुभाष चंद्र बोस समेत कई धाराएं थीं, जिन्हें संतुलित तरीके से पढ़ाया जाना चाहिए.
वहीं, दूसरी ओर कुछ शिक्षाविदों का मानना है कि सावरकर के योगदान को नजरअंदाज करना भी इतिहास के साथ अन्याय होगा. उनका कहना है कि छात्रों को हर दृष्टिकोण से परिचित कराना जरूरी है ताकि वे स्वयं सही निष्कर्ष तक पहुंच सकें.
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Source: IOCL





















