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किसी केस से खुद को कैसे अलग कर सकते हैं जज, क्या इससे करियर पर पड़ता है फर्क?

भारत की न्याय प्रणाली इसी भरोसे पर टिकी है. इसलिए कभी-कभी जज किसी खास केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लेते हैं, ताकि यह संदेश न जाए कि फैसले में कोई व्यक्तिगत झुकाव हो सकता है.

अदालतें सिर्फ फैसले सुनाती नहीं हैं, बल्कि लोगों के मन में न्याय के प्रति भरोसा भी बनाती हैं. एक आम नागरिक अदालत इसलिए जाता है क्योंकि उसे विश्वास होता है कि जज बिना किसी झुकाव या पूर्वाग्रह के उसके मामले को देखेंगे और उसे न्याय मिलेगा. भारत की न्याय प्रणाली इसी भरोसे पर टिकी है. इसलिए कभी-कभी जज किसी खास केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लेते हैं, ताकि यह संदेश न जाए कि फैसले में कोई व्यक्तिगत झुकाव हो सकता है.

पिछले कुछ सालों में कई बार ऐसा हुआ कि सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के कुछ जजों ने किसी केस से खुद को अलग कर लिया. कई बार वजह बताई जाती है, कई बार नहीं, लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर किसी केस से जज खुद को कैसे अलग कर सकते हैं और इससे करियर पर क्या फर्क पड़ता है. 

किसी केस से जज खुद को कैसे अलग कर सकते हैं

इसे अंग्रेजी में Recusal कहते हैं यानी किसी केस की सुनवाई से खुद को अलग कर लेना. इसका मुख्य कारण हितों का टकराव Conflict of Interest होता है. मतलब, ऐसा कोई रिश्ता, पृष्ठभूमि या जुड़ाव जो लोगों को लगे कि जज का निर्णय प्रभावित हो सकता है. जैसे जज उसी राज्य से हों, जहां से केस जुड़ा है. किसी पक्ष से पुराना परिचय या पेशेवर रिश्ता रहा हो, जज पहले उसी केस में वकील रह चुके हों, उस मामले से संबंधित किसी संस्था में जज के शेयर या हित हों. 

क्या जज को वजह बतानी होती है?
 
इसका कोई फिक्स नियम नहीं है कि जज को बताना ही पड़े कि वह क्यों हट रहे हैं. कभी जज खुद कारण बताते हैं, कभी बिना वजह बताए चुपचाप हट जाते हैं, यह पूरी तरह जज पर निर्भर करता है. हालांकि, कुछ नैतिक गाइडलाइन जरूर हैं. जैसे अगर किसी कंपनी में जज की हिस्सेदारी (शेयर) है, तो वह उसी कंपनी के केस नहीं सुन सकता है. इसके अलावा अगर जज पहले किसी केस में वकील रह चुका है, तो उसे उस केस से हट जाना चाहिए. 

अगर जज हट जाए तो केस का क्या होता है?

केस किसी दूसरे जज या नई बेंच को दे दिया जाता है. किसे देना है, यह फैसला हाईकोर्ट में मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट में CJI करते हैं. कभी एक जज बदला जाता है और कभी पूरी बेंच बदल दी जाती है. वहीं जज का केस से अलग होना एक सामान्य प्रक्रिया है. इसे समझदारी और नैतिकता माना जाता है. कई बार यह कदम न्यायपालिका की विश्वसनीयता बढ़ाता है. इससे साफ है कि न्याय के उद्देश्य से किसी जज का किसी खास सुनवाई या केस से हटना उनके करियर पर किसी तरह का असर नहीं डालता. 

यह भी पढ़ें ट्रिपल तलाक के अलावा कितनी तरह के होते हैं तलाक, इनमें क्या होता है अंतर?

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