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(Source: ECI / CVoter)

International Rupee Trade: डॉलर की दादागिरी को चुनौती, अब बांग्लादेश में भी चलेगा भारत का ‘सिक्का’!

Rupee Internationalisation: डॉलर कई दशकों से ग्लोबल करेंसी की भूमिका में है, लेकिन अब इसके दबदबे से कई देशों को परेशानी हो रही है और वे नए विकल्प तलाश रहे हैं...

डॉलर के दशकों पुराने दबदबे को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में चुनौती मिलने लगी है. कई देश डॉलर का विकल्प तलाशने पर गंभीरता से काम कर रहे हैं. पड़ोसी देश बांग्लादेश भी ऐसी ही एक तैयारी में है, जिससे भारतीय रुपये की वैल्यू बढ़ने वाली है. बांग्लादेश डॉलर पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए भारतीय रुपये को अपनाने की तैयारी कर रहा है.

बांग्लदेश के बैंकों ने खोले ये अकाउंट

ब्लूमबर्ग की एक खबर के अनुसार, बांग्लादेश के 2 बैंक भारतीय रुपये में व्यापारिक लेन-देन की योजना बना रहे हैं. इसके लिए बांग्लादेश के ईस्टर्न बैंक ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और आईसीआईसीआई बैंक में अकाउंट भी खोल लिया है. ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के अनुसार, ईस्टर्न बैंक इस संबंध में 11 जुलाई को ऐलान कर सकता है. इसी तरह बांग्लादेश का सरकारी बैंक सोनाली बैंक भी इसी तरह की सेवा देने की तैयारी में है.

कैसे शुरू हुई डॉलर की दादागिरी?

पहले और दूसरे विश्वयुद्ध ने दुनिया के मानचित्र में बड़े बदलाव किए. ये बदलाव सिर्फ भूगोल तक सीमित नहीं रहे, बल्कि इनका असर आर्थिक जगत से लेकर संस्कृति तक हुआ. जो सबसे बड़ा बदलाव हुआ, वह था दुनिया का दो ध्रुवों में बंट जाना. दुनिया के 2 नए ध्रुव बने अमेरिका और सोवियत संघ. दोनों के बीच लंबे समय तक खींचतान चली, जिसे इतिहास में कोल्ड वार यानी शीत युद्ध के नाम से जाना जाता है. 1990 के दशक में सोवियत संघ बिखर गया और उसके बाद दुनिया स्पष्ट रूप से एकध्रुवीय हो गई.

इस तरह ग्लोबल करेंसी बना डॉलर

बदली दुनिया को इस तरह से समझ सकते हैं कि अगर पूरी दुनिया को एक देश माना जाए तो अमेरिका की वही हैसियत हो गई जो भारत में नई दिल्ली की और चीन में बीजिंग की है. अमेरिका की इस ग्लोबल कैपिटल वाली हैसियत ने उसका सांस्कृतिक दबदबा भी तैयार किया और इसी कारण उसकी करेंसी डॉलर की दादागिरी भी चल निकली. हाल कुछ ऐसा बन गया कि अमेरिकी डॉलर ग्लोबल करेंसी का पर्याय बन गया.

कोई खरीदे-बेचे, अमेरिका को लाभ तय

इसे और आसान करके समझते हैं. उदाहरण के लिए भारत और बांग्लादेश के ही व्यापार को रखते हैं. भारत ने बांग्लादेश को गेहूं का निर्यात किया. अब बांग्लादेश उसके बदले में भारत को भुगतान करेगा और यह भुगतान डॉलर में होगा. इसके लिए बांग्लादेश के बैंकों को डॉलर खरीदने की जरूरत पड़ेगी. ठीक इसी तरह भारत ने बांग्लादेश से रेडिमेड कपड़े लिए. अब इसके भुगतान के लिए भारत को भी डॉलर जरूरत होगी. मतलब सामान भारत और बांग्लादेश का, व्यापार हुआ भारत और बांग्लादेश के बीच, यही दोनों क्रेता-विक्रेता, लेकिन हर एक सौदे में अमेरिका को भी फायदा हुआ. कारण... डॉलर की दादागिरी.

इतना है दोनों देशों का व्यापार

अब इसी दादागिरी को तोड़ने की तैयारी चल रही है. अब अगर भारत और बांग्लादेश आपस में व्यापार का भुगतान रुपये में कर लेते हैं तो दोनों की डॉलर पर निर्भरता कम हो जाएगी. दोनों देशों का आपसी व्यापार अभी 16 बिलियन डॉलर यानी करीब 1.33 लाख करोड़ रुपये का है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार, 2021-22 में भारत ने बांग्लादेश को करीब 14 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट किया, जबकि बांग्लादेश ने भारत को 2 बिलियन डॉलर का एक्सपोर्ट किया. दोनों देशों का आपसी व्यापार आने वाले सालों में काफी तेजी से बढ़ने वाला है. ऐसे में डॉलर के बजाय रुपये का इस्तेमाल करने से दोनों देशों को विदेशी मुद्रा भंडार के मोर्चे पर बड़ी राहत मिल सकती है.

सेंट्रल बैंक की ये भी हो रही तैयारी

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट बताती है कि बांग्लादेश का सेंट्रल बैंक इस दिशा में एक और तैयारी कर रहा है. बांग्लादेशी सेंट्रल बैंक सितंबर में टका-रुपी डेबिट कार्ड लॉन्च कर सकता है. इसके तहत बांग्लादेश के लोग भारत में ट्रैवल कोटा के तहत एक साल में 12 हजार डॉलर के बराबर की रकम भारतीय मुद्रा में खर्च कर सकेंगे. इससे बांग्लादेश के सेंट्रल बैंक को करेंसी के डबल कंवर्जन से छुटकारा मिलेगा और इससे होने वाले नुकसान में 6 फीसदी की कमी आएगी.

ये भी पढ़ें: जिनसे कंपटीशन, उनके बगल में ही स्टोर क्यों खोल देती हैं कंपनियां? आइए समझें बिजनेस का उनका मॉडल

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