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पूर्णिया में तेजस्वी का 'राजद को नहीं तो NDA को वोट दो' का बयान हताशा भरा, पप्पू यादव की कड़ी चुनौती

पहले चरण के मतदान के बाद अब दूसरे चरण के मतदान में महज कुछ दिन बचे हुए हैं. इस बीच सियासी बयानबाजी ने पहले से ही गरम वातावरण में और अधिक तुर्शी ला दी है. बिहार में एक अलग ही बयार चल रही है. पूर्णिया में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए तेजस्वी यादव ने जनता से यह तक कह दिया कि राजद की प्रत्याशी बीमा भारती को वोट दें, या फिर एनडीए को ही वोट दे दें. वह लड़ाई को दोतरफा बनाने की कोशिश कर रहे थे, क्योंकि वहां पप्पू यादव भी मैदान में हैं और उनको जनता का खूब समर्थन मिलने की खबरें भी आ रही हैं. तेजस्वी का इशारा उनकी ही तरफ था, हालांकि उसी सभा में कुछ लोगों ने पप्पू यादव जिंदाबाद के नारे भी लगा दिए. 

तेजस्वी ने आपा खोया

ये जो पूर्णिया की सभा में विचित्र सी स्थिति बनी, उससे भी अधिक मनोरंजक बात तो मीसा भारती ने कही है. पटना में हाल ही में उन्होंने कहा कि इंडिया और एनडीए दोनों ही एक ही हैं, दोनों देश बचाने को लड़ रहे हैं. तो, वो जो रेखा होती थी कि हमारी पार्टी दूसरी पार्टी से अच्छी या अलग, उस रेखा को ही राजद मिटाने का प्रयास कर रही है. इस कोशिश के पीछे इरादा दरअसल ये है कि भाजपा को वोट देनेवाले राष्ट्रवादी भी उनको वोट देने लगें, जाति के नाम पर जो वोट मिलता है, वो तो उनको मिलेगा ही. ये जो वोटों का दूसरा सेगमेंट है, वह भी उनको मिल जाए. अगर बिहार की ताजा स्थिति को देखें तो 40 से 50 फीसदी की आबादी वह है, जो 25 या उसके आसपास के आयुवर्ग में है. ये जातिवाद के नाम पर उतना नहीं झुकते. राजद के पास जो वोटबैंक था, वह माय (मुस्लिम और यादव) समीकरण पर वोट देता था. नए हालात में राजद को मुश्किल हो रही है. अगर पूर्णिया की बात करें, तो वहां डेढ़ लाख यादव वोटर्स हैं. उनका झुकाव राजद की तरफ नहीं है, यह परेशानी की वजह है. दूसरी परेशानी की वजह उनके परिवारवादी होने से है. यही चीज हम यूपी में भी देख सकते हैं जहां एक जाति-विशेष को अपनी बपौती मानने की नेताओं में प्रवृत्ति है. यह वोटबैंक जैसे ही छिटकता दिखाई देता है, तो वे सजग हो जाते हैं. कोई और नेता यादवों के नाम पर आगे न आए, इस लिए भी उनसे जलन है. 

पप्पू यादव से है खास दिक्कत

तेजस्वी यादव और राजद को पप्पू यादव से खास दिक्कत होने की एक वजह यह है कि बिहार के अखबारों में पप्पू यादव अक्सर सुर्खियों में रहते हैं. कोई भी घटना हो, पत्रकार पप्पू यादव को ही बाइट के लिए घेरते हैं औऱ वह भी बेहद संतुलित बयान देते हैं. हालांकि, मुद्दों पर उनकी राय को जनता का कितना समर्थन है, यह अलग बात है, लेकिन मीडिया में पप्पू यादव छाए होते हैं. तेजस्वी या तेजप्रताप या फिर राजद के दूसरे नेताओं के बयान बेहद नकारात्मक छाप लिए होते हैं. उदाहरण के लिए पूर्व शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर यादव ने कई अनर्गल बयान दिए हैं, जिसको लेकर उनकी काफी आलोचना भी हुई और उनकी वजह से उनकी पार्टी राजद को भी बहुत कुछ झेलना पड़ा था. पप्पू यादव की छवि यादवों के नेता के रूप में उभर रही थी और यह भी बहुत परेशान करनेवाली बात है. जिन चंद्रशेखर यादव की हम बात कर रहे हैं, उनको भी शुरू में राजद ने टिकट नहीं दिया था, बल्कि पप्पू यादव के समर्थन से ही वह चुनाव लड़ रहे थे और पप्पू और उनकी पत्नी चंद्रशेखर यादव के समर्थन में पर्चे छपवाकर बाँटते थे. अब डर यह है कि पप्पू यादव अगर जीत गए तो चंद्रशेखर यादव जैसे लोग फिर उनके इर्द-गिर्द जमा हो सकते हैं. 

हताशा दर्शाता है तेजस्वी का बयान

यह बयान तेजस्वी यादव की हताशा औऱ गुस्से को दिखाता है. कुछ क्षत्रप जो हैं, जैसे पप्पू यादव या फिर कुछ कुशवाहा, कोई मांझी, ये सभी राजद की आंखों में चुभने वाले हैं, क्योंकि ये मुकाबले को कई कोण का बना देते हैं. असदुद्दीन ओवैसी से तो सभी पार्टियों को दिक्कत है. अब जैसे सीमांचल में पूर्णिया को ही देखें, तो यहां कुल 18 लाख मतदाता हैं. इनमें पुरुष-महिला का अगर आधा-आधा मान लें, तो भी मुसलमान मतदाता करीबन छह लाख के करीब हैं. यादव मतदाता डेढ़ लाख हैं. कुशवाहा यहां साढ़े तीन लाख हैं औऱ अभी वहां से जो जीत रहे हैं, वो कुशवाहा नेता हैं. तो, यह लड़ाई राजद के लिए लड़ाई बिल्कुल नाक की है. यहां से जो प्रत्याशी चार लाख के करीब ले आते हैं, वह जीत जाते हैं और कागजों पर तो राजद के पास सात-आठ लाख वोट हैं. 

विपक्ष की स्थिति अमूमन बिहार में हर जगह खराब है. खासकर सीवान, छपरा, पूर्णिया और पाटलिपुत्र की सीटों ने तो सांस फुला दी है. राजद के पास अपना एक राजनीतिक वोटबैंक था, अधिकार था. हालांकि, इस चुनाव में तेजस्वी यादव के बारे में बड़ी सावधानी से बनायी गयी छवि टूट रही है. यह पूरा मामला आंखों में धूल झोंकने का था. तेजस्वी का जमीनी आधार नहीं है, वह लालू प्रसाद के जेल से छूटने और सहानुभूति की वजह से विधानसभा में उनको कई सीटोे पर जीत मिल गयी थी. लोकसभा में मोदी की काट फिलहाल नहीं दिख रही है और राजद कड़ी मुश्किल में है. 

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]

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