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'पूर्व अग्निवीरों को बीएसएफ में आरक्षण देना सही फैसला, हाइब्रिड वॉरफेयर के लिए ट्रेंड सोल्जर वक्त की जरूरत'

सेना के आधुनिकीकरण के लिए जब अग्निवीर स्कीम लाई गई थी तब चार साल की उनकी सेवा के बाद जवानों के रोजगार को लेकर प्रश्न खड़े किए गये थे. इस स्कीम पर देश के कुछ प्रमुख राज्यों में काफी बवाल भी हुआ था. उस वक्त केंद्र सरकार ने इसे लेकर राज्य पुलिस और अन्य सुरक्षा बलों में आरक्षण देने की बात कही थी. अब पूर्व अग्निवीरों के लिए बीएसएफ में 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है.

सरकार ने सेना में अग्निवीर को शामिल करने की प्रक्रिया जब लागू की तब उन्होंने यह भी कहा था कि केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल में उन्हें 10 प्रतिशत का आरक्षण दिया जाएगा. यह एक बहुत ही सराहनीय कदम है और यह विन-विन सिचुएशन है सेना के लिए भी, अग्निवीर के लिए भी और बीएसएफ के लिए भी.

यह बीएसएफ के लिए इसलिए अच्छा है क्योंकि चार साल में पूरी तरह से ट्रेंड होकर सैनिक बाहर आएंगे और बीएसएफ को हर परिस्थितियों का मुकाबला करने वाला सोल्जर मिल जाएगा. जब बीएसएफ खड़ी की गई तो वह सेना से ही खड़ी की गई थी.

चूंकि अब युद्ध अपना स्वरूप बदल रहा है और हाइब्रिड वॉरफेयर में सेना का, पुलिस का और समाज का बहुत ही अहम रोल हो गया है. अब कहीं भी आतंकी हमला हो सकता है, ऐसे हालात में सभी के लिए वीन-वीन सिचुएशन है. अग्निवीर के जवानों के लिए ये और भी अच्छा है क्योंकि वे 60 साल तक नौकरी कर पाएंगे यानी उनको सेना से रिटायरमेंट के बाद रोजगार मिल जाएगा. उनको सिनियोरिटी का भी लाभ मिलेगा, उनको ट्रेनिंग से भी छूट मिल जाएगा. ये सबके लिए अच्छा है.

जो लोग अग्नीवीर योजना के विरोध में खड़े थे, उन लोगों ने उकसाने का काम किया है कि चार साल के बाद अग्निवीर सड़क पर आ जाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं है. बीजेपी शासित राज्यों ने भी यह वादा किया है कि हम अग्निवीर को राज्य पुलिस में लेंगे. बीएसएफ ने भी इनको आरक्षण दे दिया है. मिनिस्ट्री ऑफ शिपिंग ने भी इनको रखने की बात कही है और अभी हाल ही में मर्चेंट नेवी ने भी इन्हें आरक्षण दिया है.

मेरा अपना ख्याल है कि ये बाहर निकलते ही सब के सब कहीं न कहीं एडजस्ट हो जाएंगे. यह पूरे देश के हित में है और सेना को फिर यंग लॉट मिलता रहेगा क्योंकि सेना का जो काम है वो हाई एल्टीट्यूट, विंटर वॉरफेयर, सियाचिन ग्लेशियर जैसे दुर्गम इलाकों में है. उसमें नौजवान सैनिक मिलते रहेंगे तो ठीक रहेगा. सेना भी इनको रखेगी ही. जैसे टेक्निकल कैटेगरी में नेवी और एयरफोर्स में इनकी सेवा ली जा सकेगी.

मेरा कहने का मतलब ये है कि अब सेना और पुलिस का रोल ओवरलैप हो गया है, तो उसमें उनको मैन पावर शेयरिंग भी करनी पड़ेगी. जब यह स्कीम लाई गई थी उस वक्त भी काफी विस्तृत तरीके से चर्चा की गई थी जिसमें यही बात फोकस में रखी गई थी कि इसका आउकम चार साल के बाद ही आएगा. अगर एक अग्निवीर सिविल में, केंद्रीय सुरक्षा बलों बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी और सीआईएसएफ में 4 साल के बाद चला जाता है तो शायद फौज को अपनी पॉलिसी को रिवाइज करनी पड़ जाएगी. अग्निवीर वहां  जाने के ज्यादा इच्छुक होंगे क्योंकि वे फौज में कितना रहना चाहेंगे वो उन पर निर्भर करेगा. अगर उनको सिविल में सहूलियत ज्यादा मिलती है तो उस परिस्थिति में फौज को 25 प्रतिशत से ज्यादा को रिटेन करना पड़ सकता है.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कहते रहे हैं कि अग्निवीर की पॉलिसी की समीक्षा हर साल की जाएगी और चार साल के बाद जियो-पॉलिटिकल परिस्थिति को देखते हुए प्राथमिकता तय की जाएगी. ये तो सब जानते हैं कि प्राथमिकता तो सेना ही तय करेगी कि उस वक्त फौज को कितने लोगों की जरूरत है.

ये एक ऐसी स्कीम है कि वक्त की जरूरतों को देखते हुए बनाई गई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह जो कहते हैं, वो करते हैं. उन्होंने वादा किया है कि इन्हें जरूर नौकरी मिलेगी. 25 प्रतिशत को तो सेना अपने साथ रखेगी ही और जरूरत के हिसाब से ये कोटा बढ़ाई भी जा सकती है. दूसरी बात ये है कि सभी अग्निवीर तो बाहर नहीं होंगे.

ख़ासकर इन्सर्जन्सी की वजह से सेना और पुलिस का काम ओवरलैप हो गया है. बॉर्डरिंग फिल्ट्रेशन रोकना सेना का काम है और जहां इन्सर्जन्सी है वहां राष्ट्रीय राइफल्स के जवान और असम राइफल्स के जवान शामिल हैं जिनमें सेना का कंपोनेंट ज्यादा शामिल है. इस ओवरलैपिंग काम में आपको एक्सपर्टिज, इंटेलिजेंस, मैन पावर सब कुछ शेयर करना पड़ेगा. इसे हर साल पॉलिसी की समीक्षा कर देखा जाएगा. यह पॉलिसी कारगिल रिव्यू कमेटी द्वारा सुझाया गया था जिसे अब धरातल पर उतारा जा रहा है और कोई कमियां नजर आएंगी तो उसमें सुधार किया जाएगा. सरकार ने जो कहा था वो काम शुरू हो गया है और चार साल होते-होते स्कीम बहुत अच्छी तरह से लागू हो जाएगी.

सेना को यंग बनाए रखने के लिए यह जरूरी था. चीन में तो हर किसी को 24 महीने के लिए फोर्स में जाने का प्रावधान है. इजरायल में 32 महीने के लिए, हमने चार साल के लिए किया है. रूस और यूक्रेन में भी इसी तरह की पॉलिसी लागू की गई है. चूंकि युद्ध करने के तौर-तरीके तेजी से बदलते जा रहे हैं तो ऐसी स्थिति में हर जगह ट्रेंड सोल्जर की जरूरत होगी.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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