दिल्ली चुनाव में इस बार पंजाबियों-पुरबियों का रुख रहेगा नतीजे पर असरदार

दिल्ली में जैसे-जैसे चुनाव के दिन नजदीक आ रहे हैं, वैसे-वैसे आरोप-प्रत्यारोप के दौर के साथ वोटर्स को लुभाने के कवायद भी बढ़ती जा रही है. दिल्ली एक कॉस्मोपोलिटन राज्य है जहां हर प्रांत और समुदाय के लोग हैं. ऐसे में सिर्फ महिलाओं या छात्रों या गरीब तबके को साधने से बात नहीं बनेगी. दिल्ली को वोटर्स के नये-नये क्लस्टर्स में बांट कर भी उनको साधने की कोशिश जारी है. ऑटो चालक, दलित, पूर्वांचली और पंजाबी समाज ऐसे ही क्लस्टर्स हैं जिन पर सारे राजनीतिक दलों की निगाहें हैं.
पुरबिया वोटों पर सबकी है नजर
भाजपा पूर्वांचली वोटर्स को साधने के लिए भाजपा असम प्रभारी हरीश द्विवेदी के संयोजन में 100 पूर्वांचली नेताओं को दिल्ली के मैदान में उतारने की घोषणा कर चुकी है. इसमें यूपी और बिहार के कद्दावर भाजपा नेता शामिल होंगे जो दिल्ली के पूर्वांचलियों को लुभाने की कोशिश में लगेंगे. भाजपा का पूर्वांचल मोर्चा छठ पूजा के समय की कु-व्यवस्थाओं, यमुना के गंदे जल और झाग को बिहारी सम्मान से जोड़कर इसे मुद्दा बनाने में लंबे समय से लगा हुआ है. जगदंबा सिंह, बिपिन बिहारी सिंह, मनोज तिवारी जैसे प्रमुख पूर्वांचली नेता चुनाव से पहले ही ग्राउन्ड ज़ीरो पर बड़ी मुस्तैदी से खड़े हैं.
दिल्ली कीि 70 में से लगभग 27 सीटों पर पूर्वांचालियों का दबदबा है और इनको साधने की कोशिश भी भरपूर है. इन सीटों पर लगभग 25 से 38% तक पूर्वांचली वोटर्स हैं जो बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश से रोजी-रोटी की तलाश में दिल्ली आ बसे हैं. 2020 में आम आदमी पार्टी ने 12 सीटों पर पूर्वांचलियों को टिकट दिया था तो इस बार भी उन्होंने लगभग 12 पूर्वांचलियों को दिल्ली चुनाव में उतारा है. दूसरी ओर भाजपा ने सिर्फ 5 पूर्वांचली नेताओं को इस बार टिकट दिया है जहां पिछली बार एनडीए ने 11 प्रत्याशियों पर भरोसा दिखाया था. एक ओर अरविन्द केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली के वोटर लिस्ट से पूर्वांचलियों के नाम काटे जाने का आरोप भाजपा पर लगाती रही. वहीं जुबानी जंग में भाजपा ने भी इसे पूर्वांचाली अस्मिता से जोड़ कर खूब प्रहार किए.
अरविंद केजरीवाल के पुराने बयान
ये वही अरविन्द केजरीवाल हैं जिन्होंने मुख्य मंत्री रहते हुए यह बयान दिया था कि बिहार यूपी से लोग गाड़ियों में भर-भर कर दिल्ली इलाज के लिए आ जाते हैं और दिल्ली की स्वास्थ्य सेवाओं पर अतिरिक्त भार डालते हैं. अब उन्हीं केजरीवाल जी को पूर्वांचालियों के महिमा मंडन में दिन रात कसीदे काढ़ते देखा जा रहा है. अनाधिकृत कॉलोनियों में पूरबी वॉटर्स की संख्या बहुत है जिन्हें पक्के मकान के वायदे से खूब लुभाया जा रहा है.
पूर्वांचलियों के अलावा पंजाबी वोटर्स की संख्या भी दिल्ली में अच्छी है. पंजाब विधानसभा जीतने के बाद आम आदमी पार्टी के लिए यह विश्वासी वोट बैंक की तरह हो गया है. इसके अलावा पंजाब उपचुनाव और लोकसभा में भी दल ने अच्छा प्रदर्शन किया और इस लिहाज से पार्टी अपने इस वोट बैंक को साधे रखने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रख रही. दिल्ली की 8 विधानसभा सीटों पर लगभग 18% पंजाबी वॉटर्स प्रत्याशियों की जीत हार तय करते हैं. तिलक नगर, रजौरी गार्डन, जंगपुरा, कारोल बाग, मोती नगर, हरी नगर, जनकपुरी और कृष्णा नगर में पंजाबी भारी संख्या में हैं. 2015 और 2000 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में ये समुदाय आम आदमी पार्टी की ओर ही झुका था मगर अभी दिल्ली के सातों लोकसभा सीट जिसमें चाँदनी चौक में 14%, उत्तरी दिल्ली में 17.6%, पश्चिमी दिल्ली में 20.8% और पूर्वी दिल्ली में 17% पंजाबी मतदाताओं वाले संसदीय क्षेत्रों ने अपना विश्वास भाजपा के साथ दिखाया था.
भाजपा ने दिया दिल्ली को पहला पंजाबी सीएम
दिल्ली को पहला पंजाबी मुख्यमंत्री मदन लाल खुराना को देने वाली पार्टी भी भाजपा ही रही है, तो इस क्लस्टर को अपने पक्ष में करने की कवायद भी जोर शोर से चल रही है. नई दिल्ली से भाजपा प्रत्याशी प्रवेश वर्मा ने दिल्ली के चुनाव में पंजाबी गाड़ियों और कर्मचारियों के दुरपयोग पर आम आदमी पार्टी को घेरा तो आदतन आम आदमी पार्टी ने इसको भी पंजाबी अस्मिता का मुद्दा बना दिया. गणतंत्र दिवस के समय अनावश्यक लाव लश्कर ले कर चल रहे ‘आम आदमी अरविन्द केजरीवाल’ जो हर नियम को ताख पर रख कर दो-दो राज्यों से जेड प्लस सुरक्षा लेकर चल रहे हैं, उन्होंने पलटवार करते हुए प्रवेश वर्मा पर यह आरोप लगा दिया कि प्रवेश वर्मा की नज़र में हर पंजाबी आंतकवादी है जिससे दिल्ली की सुरक्षा को खतरा है! कानून के मुताबिक कोई भी व्यक्ति दो राज्यों से जेड प्लस सुरक्षा नहीं ले सकता और केजरीवाल को दिल्ली पुलिस से यह सुरक्षा मिली ही हुई है तो नियमों की अनदेखी पर प्रवेश वर्मा ने सवाल तो ठीक ही उठाया था. दूसरे राज्यों से आने वाले वीवीआईपी भी सिर्फ 72 घंटों तक ही अपने साथ सुरक्षा रख सकते हैं. ऐसे में दिल्ली पुलिस और चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन करते हुए केजरीवाल की सुरक्षा में लगे पंजाब पुलिस के जवानों को वापस बुलाना पड़ा. तो ऐसे में आम आदमी पार्टी जिस आरोप को पंजाबियों के अस्मिता की लड़ाई बनाने निकले थे वो स्वयं ही संविधान की धज्जी उड़ते पाए गए और उन्हें अंततोगत्वा वही करना पड़ा जो परवेश वर्मा ने कहा था. पंजाब से आए आम आदमी पार्टी के दिग्गज नेता घर-घर जाकर दिल्ली में पार्टी के लिए वोट मांग रहे हैं खूब प्रचार प्रसार में लगे हैं.
हरेक दल को अपनी जीत का गुमान
आम आदमी पार्टी ने अपने घोषणा पत्र में ग्रंथियों को हर महीने 18000 रुए देने की घोषणा कर पहले ही पंजाबी वॉटर्स पर अपना अपर हैंड बना चुकी है. भाजपा अब तक तो इसकी काट लेकर नहीं उतरी है हां, मगर जुबानी जंग में वो इस घोषणा पर आम आदमी पार्टी को घेरती जरूर दिख रही है. इन सब स्थितियों में काँग्रेस की स्थिति अब भी डावांडोल ही है. दिल्ली की लड़ाई संदीप दीक्षित अकेले ही लड़ते दिखाई दे रहे हैं. राहुल गांधी समेत शीर्ष नेताओं का सर्वथा अभाव ही दिख रहा है. राहुल गांधी की सिलमपुर प्रचार के बाद कोई रैली नहीं दिखाई दे रही.
कभी 2008 के चुनाव में 40.3 प्रतिशत वोट प्राप्त करने वाली कांग्रेस पार्टी 2020 के चुनाव में महज 4.3 प्रतिशत के वोट शेयर पर रह गयी थी मगर आज भी कॉंग्रेस की लड़ाई आक्रामक नहीं दिखाई दे रही है.
कुछ भी हो दिल्ली चुनाव त्रिकोणिय दंगल होते हुए भी द्विपक्षीय ही लग रही और वॉटर्स को साधने की तैयारी खूब दिख रही है.
[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]
ट्रेंडिंग न्यूज
टॉप हेडलाइंस



























