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मध्य प्रदेश की 'नरम बीजेपी और गरम बीजेपी' के बीच सीएम शिवराज को आती है दिल जीतने की कला

अगर सीएम शिवराज सिंह चौहान जैसी दिल जीतने की कला पार्टी के दूसरे जिम्मेदार नेता भी उठाते तो सरकार और संगठन का बोझ चुनावों में शिवराज सिंह चौहान को अकेले नहीं उठाना पडता.

वो शिवराज सिंह चौहान का पिछले शनिवार का जबलपुर दौरा था जब वो डुमना एयरपोर्ट से उतरकर पास बसे गांव मेहगवां में सीधे अशोक चौधरी के घर जा पहुंचे. एस्बेस्टस की छत वाले उस छोटे से एक कमरे के मकान के बाहर ही सफेद चादर बिछाकर अतिथियों के आवभगत की व्यवस्था थी. शिवराज सिंह चौहान और उनके साथ आये जबलपुर सांसद राकेश सिंह और साथ आयी नेताओं की भीड़ का स्वागत करने के लिये अशोक और उसकी पत्नी भारती ने भजिये और चाय की तैयारी की थी. प्रदेश का मुखिया घर आया है तो सारा मोहल्ला और घर समझ नहीं पा रहा क्या करें और क्या ना करें. उधर शिवराज सिंह के चेहरे पर शिकन नहीं थी और आलथी-पालथी मारकर बैठे थे. सीएम भजिया खाने लगे और आसपास के लोगों को आग्रह भी करने लगे कि भजिया खाइये. इसी खाइये-खाइये के क्रम में वो भजिया की प्लेट बढा देते हैं अशोक के सामने और वो हाथ जोड लेता है. मगर प्रदेश के मुखिया के आग्रह को टालना कठिन था तो एक भजिया उठाकर मुंह में रखते हैं. इसी बीच जैसे शिवराज को कुछ याद-सा आता है तो कहते हैं कि अरे घर के बच्चों को बुलाओ... और एक छोटा सा बच्चा सामने आता है शिवराज उसे अपने करीब बैठाते हैं, भजिया खिलाते हैं, स्कूल-पढाई का पूछ सिर पर हाथ फेर कर स्नेह देते हैं और थोडी देर बाद ही ये काफिला दूसरे कार्यक्रम की ओर निकल पड़ता है.

ठीक कुछ ऐसी ही कहानी दोहराई गयी देवास की बंगाली कालोनी के निखिल सरकार के घर पर और सागर के गोपाल गंज में संजय वाल्मिकी के घर पर. जहां पर शिवराज सिंह ने स्नेह से घर पर भोजन किया और बातें की. ये सारे गरीब और दलित समाज के मेहनतकश के साथ ही सरकारी योजनाओं के हितग्राही भी हैं जिन्होंने कभी सोचा नहीं होगा कि प्रदेश के प्रमुख नेता का इस तरीके से आतिथ्य करना पडेगा. मगर ये तो शिवराज हैं जो इस बार एक साथ सख्त और कोमल प्रशासक की छवि बनाकर चौंकाते है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के सप्ताह में एक बार आने वाली वो फोटो भी चौंकाती है जिसमें वो अपने मंत्रिमंडल सहयोगी के साथ अपने निवास में बने दफ्तर में चाय पीते हैं, चर्चा करते हैं और फिर बाहर आकर वो सहयोगी बताता है क्या चर्चा हुई और कितनी अच्छी चर्चा हुई. हैरानी इस बात की होती है कि क्या मुख्यमंत्री की अपने सहयोगी मंत्री से इस तरह चाय पर बुलाकर चर्चा करना भी खबर है... मगर आप कहेंगे कि पिछली सरकार में जो होता रहा है उसमें तो मुख्यमंत्री और मंत्री से कथित तौर पर नहीं मिलना ही सरकार गिरने का कारण बना था. इसलिए शिवराज सिंह चौहान का इस तरह सप्ताह में एक बार अपने मंत्री से मिलना, उसके विभाग से संबंधित बातें करना, ये बताता है कि नए मुखिया ने पुरानी सरकार की असफलताओं से कितना पक्का सबक लिया है और अपनी सरकार की मजबूती के लिये वो लगातार न सिर्फ मंत्री और विधायकों को समय दे रहे हैं बल्कि हर दौरे में किसी दलित, गरीब, अजनबी के घर जाकर उनके बीच अपनी पैठ बढा रहे हैं. एक अच्छा नेता यही तो करेगा जो शिवराज सिंह चौहान कर रहे हैं.

मगर शिवराज सिंह चौहान जैसी सहृदयता और दिल जीतने की कला पार्टी के दूसरे जिम्मेदार नेता भी उठाते तो सरकार और संगठन का बोझ चुनावों में शिवराज सिंह चौहान को अकेले नहीं उठाना पडता. अगर शिवराज नये वर्ग में दिल जीतने की रणनीति पर चल रहे हैं तो उनकी पार्टी के ही कुछ निर्वाचित जन प्रतिनिधी सिर्फ बहुसंख्यकों की राजनीति करने का दम भरते हैं और उसे छिपाते भी नहीं है. भोपाल की एक जन प्रतिनिधि पिछले दिनों राम रहीम मार्केट का उद्घाटन करने गयीं और शुभकामनाएं देते-देते कह उठीं 'मैं आप सबके साथ हूं, अच्छे काम करिये, देशभक्ति करिये, ये भोपाल यानिकी राजा भोज की नगरी का मार्केट है, इस मार्केट का नाम बदलिये और अच्छा नाम रखिये. फिर हम भारत माता की जय बोलेंगे.' इशारा साफ था कि राम के साथ रहीम का नाम पसंद नहीं आया. भोपाल के ही एक विधायक जो अब विधानसभा में भी बड़े पद पर हैं वो भी अपना बहुसंख्यक प्रेम दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं. वक्त मिलते ही वो अल्पसंख्यकों के खिलाफ मोर्चा खोल देते हैं और बहुसंख्यकों की और गर्व से देखकर उनकी तालियों से आनंदित होते हैं. इन प्रतिष्ठित जनप्रतिनिधियों से यही सब सीखने की होड़ बीजेपी के सारे कार्यकर्ताओं में देखन को मिलने लगी है.

इन तात्कालिक घटनाओं को इतिहास के आइने में देखें तो समझ आता है कि राजनीतिक दलों में नरम दल और गरम दल हमेशा से रहे हैं. नरम दल वाले नेता कभी आगे तो कभी पीछे रहते हैं. वैसे देश दुनिया की राजनीति में इन दिनों गरम दल के नेताओं का बोलबाला बढ़ा है. मगर लंबी पारी हमेशा नरम दल वाले ही खेलते हैं. शिवराज सिंह चौहान भी नरम दल की उसी परंपरा को आगे बढ़ाते दिख रहे हैं.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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