एक्सप्लोरर

महिला सुरक्षा और सम्मान: सिलेक्टिव अप्रोच और सियासी बयानों में आम लोगों को उलझाना है ख़तरनाक प्रवृत्ति

देश के हर नागरिक के लिए लोक सभा चुनाव का ख़ास महत्व है. लोकतांत्रिक ढाँचे में संसदीय व्यवस्था के तहत सामान्य परिस्थितियों में पूरे पाँच साल में एक बार यह मौक़ा आता है. यह राजनीतिक और सरकारी तंत्र को जवाबदेह ठहराने का वक़्त होता है. ऐसे में ज़रूरी है कि लोक सभा चुनाव के दरमियान में देश के आम लोग वास्तविक और ज़रूरी मुद्दों पर टिके रहें.

जैसा कि भारत में चुनाव-दर-चुनाव होते रहा है, लोक सभा चुनाव इधर-उधर, मनगढ़ंत, फ़ुज़ूल, ऊल-जलूल और बेमानी सियासी बयानों या बातों में उलझने का समय नहीं है. सियासी बयानों में उलझने का सबसे अधिक नुक़सान देश की आम जनता को ही होता है और सबसे ज़ियादा फ़ाइदा राजनीतिक दलों और उनके नेताओं को होता है. यह समय हाथ से निकल जाने पर देश की आम जनता हमेशा ही ठगा हुआ महसूस करती है.

संवेदनशील मुद्दों पर नेताओं में सिलेक्टिव अप्रोच

चाहे दल कोई भी हो, चाहे नेता कोई भी हो, इनका किसी भी विषय या मुद्दे पर सिलेक्टिव अप्रोच या'नी चयनात्मक दृष्टिकोण होता है. गंभीर और संवेदनशील मुद्दों पर भी इस तरह का रवैया दिखता है. इसे एक उदाहरण से समझें, तो, 'महिला सुरक्षा और सम्मान' जैसे मसले पर भी हमारे देश में राजनीतिक दलों और उनके नेताओं का अप्रोच सिलेक्टिव होता है. यह भारतीय राजनीति की विडंबना है, लेकिन कड़वी सच्चाई है. यहाँ राजनीति का मक़सद ही सिर्फ़ और सिर्फ़ राजनीतिक नफ़ा'-नुक़सान ही रह गया है. यही कारण है कि महिला सुरक्षा और सम्मान जैसे विषय पर भी किसी तरह का स्टैंड या बयान-बाज़ी दलगत संबद्धता और जुड़ाव से तय होने लगा है.

महिला सुरक्षा और सम्मान के मुद्दे पर राजनीति

सियासी बयानों में आम जनता के सरोकार से जुड़े वास्तविक मुद्दे किस कदर कहीं गुम हो जाते हैं, इसका ज्वलंत उदाहरण कंगना रनौत और सुप्रिया श्रीनेत से संबंधित प्रकरण से समझा जा सकता है. महिला सुरक्षा और सम्मान राजनीति का विषय नहीं है. पूरे देश के लिए, हर नागरिक के लिए, हर महिला के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है. इतने महत्वपूर्ण मसले पर भी राजनीतिक दल और उनके नेता सिलेक्टिव अप्रोच अपनाने लगते हैं. यह हो रहा है और यह वास्तविकता है. राजनीतिक दलों और नेताओं ने इस मुद्दे को भी सत्ता के आधार पर दो खाँचों में बाँट दिया है. इस मसले को भी सत्ता पक्ष और विपक्ष में बाँट दिया गया है.

दलगत संबद्धता से तय हो रहा है संपूर्ण एजेंडा

अमुक दल की सत्ता अगर किसी राज्य में है, तो, उस दल के बड़े-बड़े नेता उस राज्य में महिला सुरक्षा और सम्मान के ख़िलाफ़ हुई किसी घटना में चुप्पी साध लेते हैं. वहीं अगर ऐसी घटना विरोधी दलों से शासित राज्य में होती है, जो वहीं नेता और दल महिला सुरक्षा और सम्मान के मुद्दे पर मुखर होकर बयान-बाज़ी करते हैं. महिला सुरक्षा और सम्मान जैसे गंभीर मसले को भी राजनीतिक तौर से "मेरा दल, तुम्हारा दल" के विमर्श में बँटवारा कर दिया गया है. सैद्धांतिक तौर से भले ही कोई दल या नेता इसे नहीं माने, लेकिन वास्तविकता यही है. इस पहलू को साबित करने के लिए तमाम उदाहरण भरे पड़े हैं.

महिला सुरक्षा और सम्मान से जुड़ा हुआ यह एक पक्ष है. इसका एक दूसरा भी पक्ष है, जो आम लोगों के लिहाज़ से और भी ज़ियादा महत्वपूर्ण है. देश की हर महिला के ख़िलाफ़ कोई भी ऐसी घटना घटती हो, जिससे उनकी सुरक्षा या सम्मान पर आँच आए, यह किसी भी देश, समाज, सरकार और राजनीतिक दल के लिए शर्म की बात होनी चाहिए.

आम महिला और मशहूर महिला के बीच फ़र्क़

भारत में अजीब-सी होड़ दिखती है. यह होड़ आम महिला और मशहूर महिला के भेदभाव से संबंधित है. अगर किसी मशहूर महिला के साथ किसी तरह की अभद्र टिप्पणी की जाती है, तो देश के राजनीतिक दल और उनके नेताओं का ख़ून खौलने लगता है, जिसके बाद उन लोगों का गुस्सा राजनीतिक बयान-बाज़ी के ज़रिये मीडिया के अलग-अलग मंचों से बाहर आता है. इसी तरह की आपत्तिजनक टिप्पणी अगर किसी आम महिला या लड़की के बारे की जाती है, तो फिर राजनीतिक बयान-बाज़ी का दाइरा सिकुड़ जाता है. दलगत संबद्धता और घटना वाले राज्य में किस दल की सरकार है और कौन सा दल विपक्ष में है, इस कसौटी के आधार पर ख़ून खौलने की क्रिया-प्रतिक्रिया तय की जाने लगती है.

महिला सुरक्षा और सम्मान का मुद्दा न किसी दल से जुड़ा है, न किसी धर्म से जुड़ा है और न किसी जाति से जुड़ा है. एक भी महिला.. चाहे वो किसी भी दल से हो, किसी भी धर्म से हो या किसी भी जाति हो..उनकी सुरक्षा और उनका सम्मान सर्वोपरि है. इस मसले में दलगत आधार पर राजनीतिक क्रिया-प्रतिक्रिया बेहद ख़तरनाक है.

राजनीतिक नफ़ा-नुक़सान से तय होती रणनीति

बीजेपी नेता कंगना रनौत को लेकर कांग्रेस नेता सुप्रिया श्रीनेत ने जो कुछ सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, चाहे जैसे भी यह पोस्ट हुआ, वो ग़लत है. उसी तरह से कंगना रनौत ने अतीत में उर्मिला मातोंडकर को लेकर जो आपत्तिजनक टिप्पणी की थी, वो भी उतना ही ग़लत है. दोनों ही टिप्पणियाँ सरासर ग़लत है. आम लोगों के नज़रिये से चिंता और भी बढ़ जाती है, जब ऐसे मामलों में राजनीतिक दल और नेताओं में सिलेक्टिव अप्रोच दिखने लगता है.

हर महिला की गरिमा और शालीनता बरक़रार रहे, यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हासिल मूल अधिकार का हिस्सा है. यह सरकार की ज़िम्मेदारी है. कंगना रनौत के मामले में भारतीय जनता पार्टी के तमाम नेता संवैधानिक अधिकारों की दुहाई देते हैं, जो कि सही भी है. हालांकि मणिपुर से लेकर उत्तर प्रदेश के बदायूं में लड़कियों और महिलाओं के साथ चीरहरण किया जाता है, तब वहाँ पर भारतीय जनता पार्टी के नेता आँखें मूँद लेते है. औसतन रोज़ाना उत्तर प्रदेश में 10 और मध्य प्रदेश में 8 से अधिक बलात्कार की घटना होती है, लेकिन बीजेपी के नेताओं की ज़बान पर ख़ुद-ब-ख़ुद ताला पड़ जाता है.

मणिपुर पर ख़ामोशी, संदेशखालि पर जमकर बवाल

मणिपुर के मामले में पूरे देश ने देखा है कि कैसे भारतीय जनता पार्टी के तमाम शीर्ष नेताओं की ओर से कई महीनों तक चुप्पी साधकर राजनीतिक संबद्धता की मोह-माया को महिला सुरक्षा और सम्मान से अधिक तरजीह दिया गया. मणिपुर में दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर सरेआम मानवता को शर्मसार करने वाली घटना घटती है, जिससे पूरी दुनिया में भारत की साख घटती है. मई, 2023 से लेकर अब तक मणिपुर में महिला उत्पीड़न और यौन शोषण की अनगिनत घटनाएं हुई होंगी, इसके बावजूद पूरे प्रकरण में बीजेपी का रवैया आँख पर पट्टी बाँधकर मौन धारण कर लेने जैसा ही रहा है. मणिपुर के प्रकरण में बीजेपी या उसके किसी नेता की ओर से कभी भी संविधान से हासिल महिला की गरिमा और शालीनता के अधिकार के स्पष्ट उल्लंघन को लेकर किसी तरह का बयान नहीं आया.

देश के हर नागरिक के लिए होते हैं प्रधानमंत्री

मणिपुर प्रकरण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय महिला और बाल विकास स्मृति ईरानी का रवैया सबसे अधिक हैरान करने वाला रहा है. पार्टी से संबद्धता होने के बावजूद जब कोई व्यक्ति प्रधानमंत्री बनता है, तो, देश की हर महिला की सुरक्षा और सम्मान की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही प्रधानमंत्री की होती है. उसी तरह से भारत सरकार में महिला और बाल विकास मंत्री के पद पर जो भी विराजमान होती हैं, उनकी जवाबदेही देश की हर महिला के प्रति होती है.

हालाँकि मणिपुर के मामले में दोनों का रवैया चौंकाने वाला ही कहा जा सकता है. महिला की सुरक्षा और सम्मान के मसले पर सिलेक्टिव अप्रोच का ज्वलंत उदाहरण मणिपुर है. मणिपुर में हिंसा 3 मई, 2023 को व्यापक रूप ले लेती है. वहाँ महिलाओं के साथ किस तरह की बद-सुलूकी हुई है, किस तरह का शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न हुआ है, यह जगज़ाहिर है. तक़रीबन 11 महीने के बाद भी प्रधानमंत्री और केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्री अब तक मणिपुर नहीं गए हैं.

सरकारी स्तर पर सिलेक्टिव अप्रोच सही नहीं

सिलेक्टिव अप्रोच का ही नतीजा है कि मणिपुर के मामले में चुप्पी साधने वाले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय महिला और बाल विकास स्मृति ईरानी पश्चिम बंगाल के संदेशखालि प्रकरण में बेहद मुखर रहे हैं, जबकि दोनों ही राज्यों में महिला सुरक्षा और सम्मान का मसला महत्वपूर्ण और संवेदनशील था.

राष्ट्रीय महिला आयोग से लेकर अलग-अलग राज्यों की महिला आयोग की ओर से भी राजनीतिक संबद्धता या जुड़ाव के आधार पर सिलेक्टिव अप्रोच अपनाया जाने लगा है. जिस आयोग का गठन ही महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान के मसले को देखने के लिए किया गया हो, अगर उस आयोग का रवैया भी राजनीतिक जुड़ाव से तय होने लगे, तो, इससे दयनीय स्थिति कुछ और नहीं हो सकती है.

बाक़ी दल भी सिलेक्टिव अप्रोच में नहीं हैं पीछे

ऐसा नहीं है कि यह प्रवृत्ति सिर्फ़ बीजेपी से जुड़ी हुई है. इसी तरह से बाक़ी दल और उनके नेताओं का भी रुख़ ऐसे ही तय होता है. भारत में सबसे अधिक बलात्कार की घटनाएं राजस्थान में होती हैं. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक़ 2019 से लेकर 2022 तक लगातार चार साल बलात्कार की सबसे घटनाओं के मामले में राजस्थान शीर्ष पर था. राजस्थान में 2022 में 5399 बलात्कार की घटना हुई थी, या'नी रोज़ाना औसतन क़रीब 15 बलात्कार की घटना. यह वो दौर था जब राजस्थान में कांग्रेस की सरकार थी. क़ानून कार्रवाई के पहलू को छोड़ दें, तो राजनीतिक बयान-बाज़ी के मोर्चे पर कांग्रेस और उसके तमाम आला नेता चुप्पी की माला जपने में ही व्यस्त थे.

यह तो सिर्फ़ बीजेपी और कांग्रेस की बात हुई. देश में तक़रीबन जितने भी राजनीतिक दल हैं, उनका रवैया कमोबेश समान ही है. महिला सुरक्षा और सम्मान के नाम पर राजनीतिक दावे और कसमे-वादे में कोई कमी नहीं दिखती है. लेकिन इस मसले वास्तविकता में सिलेक्टिव अप्रोच को अपनाते हुए हर दल के नेता देखे जा सकते हैं. पश्चिम बंगाल के संदेशखालि प्रकरण में हमने देखा था कि वहाँ की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी का रवैया कितना सुस्त और बिल्कुल अलग-थलग था. इसके विपरीत मणिपुर के प्रकरण में ममता बनर्जी महीनों से मोदी सरकार को कटघरे में खड़ा करने के लिए राजनीतिक बयान-बाज़ी कर रहीं थीं.

हर महिला की गरिमा है ज़रूरी और महत्वपूर्ण

मशहूर हस्ती के ख़िलाफ़ सोशल मीडिया मंच पर गंदी और अभद्र भाषा का इस्तेमाल होने के बाद तमाम दलों को महिला की गरिमा का ख़याल होने लगता है. लेकिन देश की आम लड़कियों और महिलाओं के साथ इस तरह की हरकत होने पर राजनीतिक उबाल कम ही देखने को मिलता है.

पिछले कुछ महीनों से सोशल मीडिया पर अभद्र भाषा का इस्तेमाल कर लोक गायिका नेहा सिंह राठौर का भी मानसिक तौर से उत्पीड़न किया जा रहा है. लेकिन इस मामले में बीजेपी के नेताओं को महिला गरिमा और संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं दिख रहा है. बीजेपी की ओर से यह सिलेक्टिव अप्रोच क्या सिर्फ़ इसलिए अपनाया जा रहा है क्योंकि लंबे वक़्त से बिहार की नेहा सिंह राठौर अपनी कविताओं से मोदी सरकार की नीतियों की ओलचना करती आ रही हैं. महिला सुरक्षा और सम्मान का मुद्दा अब इससे तय होगा कि कौन मोदी सरकार की आलोचना करने वाले गुट में हैं और कौन मोदी सरकार की तारीफ़ करने वाले पाले में है. अगर ऐसा हो रहा है, तो इससे शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता है.

यौन शोषण और उत्पीड़न की समस्या है गंभीर

देश में चार-चार साल की छोटी-छोटी लड़कियों से लेकर बूढ़ी महिलाओं के साथ रोज़ाना बलात्कार हो रहा है. रोज़ाना यौन शोषण की अनगिनत घटनाएं हो रही हैं. घर, सड़क से लेकर दफ़्तर तक महिलाओं को घरेलू हिंसा और यौन प्रताड़ना का दंश झेलना पड़ रहा है. यह देश की कड़वी हक़ीक़त है.

हमारे देश में महिला सुरक्षा और सम्मान की स्थिति कितनी दयनीय है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है. देश के हर राज्य, हर शहर और हर गाँव में महिला सुरक्षा और सम्मान के ख़िलाफ़ घटना रोज़ घटती है. जितनी पुलिस थाने में दर्ज नहीं होती, जितनी अख़बारों में छपती नहीं है, जितनी टीवी चैनलों पर बताई नहीं जाती या जितनी अब सोशल मीडिया पर जानकारी नहीं आती, उससे कई गुना अधिक घटनाएं घटती हैं. भारत में हर दिन औसतन 85 से 90 बलात्कार की घटना होती है. यौन शोषण और बलात्कार के ये सब वे मामले हैं, जिनकी प्राथमिकी पुलिस थाने में दर्ज होती है. ऐसी घटनाओं की एक बड़ी संख्या भी है, जिनका किसी न किसी कारण से ख़ुलासा नहीं हो पाता है.

मीडिया और आम लोगों में भी चयनात्मक रवैया

महिला सुरक्षा और सम्मान के मसले पर राजनीतिक दलों का जिस तरह का चयनात्मक रवैया है, मीडिया के एक बड़े तबक़े में भी कमोबेशउस तरह की प्रवृत्ति देखी जा रही है. अगर मीडिया महिला सुरक्षा और सम्मान से जुड़े मसले को और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध से जुड़ी ख़बरों को राजनीतिक संबद्धता के आधार पर महत्व देने लगे, तो, फिर सत्ता में बैठे लोगों और राजनीतिक दलों के लिए जवाबदेही और ज़िम्मेदारी से बचने का काम और भी आसान हो जाता है.

इस तथाकथित राजनीतिक और मीडिया गठजोड़ से इतने महत्वपूर्ण मसले पर राजनीतिक दलों और उनके नेताओं की ओर से देश के आम लोगों में भी कई खाँचे बनाने में आसानी हो जाती है. अब स्थिति यहाँ तक पहुँच गयी है कि हमारे देश में महिलाओं के साथ बलात्कार या यौन शोषण की कोई घटना होती है, तो, उस घटना की निंदा करने और जबावदेही तय करने के लिए दबाव बनाने के बजाए दलगत संबद्धता, धर्म और जाति के आधार पर आम लोग आपस में ही भिड़ जाते हैं. कई-कभी आमने-सामने और अधिकतर समय सोशल मीडिया पर इस तरह की भिड़ंत देखी जा सकती है. महिलाओं के ख़िलाफ़ यौन शोषण से जुड़े अपराध के मामले में इस तरह की प्रवृत्ति बेहद ख़तरनाक है.

इस मसले पर राजनीतिक सुर एक होना चाहिए

महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराध और उसमें भी यौन शोषण और उत्पीड़न से जुड़े अपराध देश के सामने मौजूद सबसे गंभीर और ज्वलंत समस्याओं में से एक है. देश नागरिकों से है. भारत में हर तरह से सिर्फ़ और सिर्फ़ नागरिक ही सर्वोपरि हैं. न संसद, न सरकार, न न्यायपालिका, न कोई संवैधानिक पद... आम नागरिक से ऊपर कोई नहीं है. एक-एक नागरिक की ज़िम्मेदारी और जवाबदेही सरकार और राजनीतिक दलों की है. महिला सुरक्षा और सम्मान के विषय पर इस नज़रिये से विचार होना चाहिए. इस मसले पर राजनीतिक विचारधारा का कोई महत्व नहीं है. यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर राजनीतिक सुर एक होना चाहिए. धर्म, जाति राज्य, दल से इतर हर मामले में हर नेता का बयान एक होना चाहिए. ऐसा होने पर ही देश के सामने मौजूद इस गंभीर समस्या से प्रभावी तरीक़े से निपटा जा सकता है.

धर्म, जाति या दल से परे सोचने की है ज़रूरत

महिला सुरक्षा और सम्मान को धर्म, जाति या राजनीतिक दल की संबद्धता से जोड़ने के हर प्रयास का विरोध होना चाहिए. महिला सुरक्षा और सम्मान का मसला सिर्फ़ सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणी करने और उसके बाद राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप तक ही नहीं जुड़ा है. इससे बाहर जाकर चिंतन-मनन करने और सरकार के साथ ही तमाम राजनीतिक दलों से सवाल पूछने की ज़रूरत है.

लोक सभा चुनाव का समय है. ऐसे में आम लोगों को मुद्दे पर टिके रहने की ज़रूरत है. देश की हर लड़की और महिला की सुरक्षा और सम्मान की गारंटी को लेकर राजनीतिक दलों से असली वाला आश्वासन लेने की ज़रूरत है. इस मसले पर तमाम राजनीतिक दलों से देश के लोगों को राजनीतिक जुमला-बाज़ी या वोट बैंक की राजनीति से परे जाकर गारंटी चाहिए. यह तभी संभव है कि जब देश के आम लोग राजनीतिक दलों और उनके नेताओं के सिलेक्टिव अप्रोच के चंगुल में किसी भी तरह से नहीं फँसे. साथ ही किसी भी तरह के सियासी बयानों में नहीं उलझें.

खाँचों में बँटवारे की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए

महिला सुरक्षा और सम्मान का मसला बेहद गंभीर और संवेदनशील है. यह धर्म, जाति या दलगत संबद्धता से जुड़ा मुद्दा नहीं है. देश की हर लड़की और महिला की सुरक्षा और उनकी गरिमा सुनिश्चित होना चाहिए. राजनीतिक संबद्धता के आधार पर इस मसले पर सिलेक्टिव अप्रोच की प्रवृत्ति बेहद ख़तरनाक है. इसके साथ ही आम महिला और मशहूर महिला के बीच फ़र्क़ की कसौटी पर राजनीतिक प्रतिक्रिया और ख़ून खौलने की होड़ भी अनुचित है. इसे वास्तविक समस्या से मुद्दे को भटकाने की राजनीतिक साज़िश के तौर पर देखा जाना चाहिए. यह इतना महत्वपूर्ण मसला है कि क़ा'इदे से इस पर राजनीतिक सुर एक होना चाहिए. इस मसले पर धर्म, जाति, अमीर-ग़रीब और दलगत जुड़ाव के आधार पर आम नागरिकों और मीडिया में भी किसी तरह के खाँचों में बँटवारे की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.] 

View More

ओपिनियन

Sponsored Links by Taboola
25°C
New Delhi
Rain: 100mm
Humidity: 97%
Wind: WNW 47km/h

टॉप हेडलाइंस

पुतिन के भारत दौरे से अमेरिका में खलबली! ट्रंप ने दिल्ली के पक्ष में ले लिया बड़ा फैसला; बताया कैसे देगा साथ
पुतिन के भारत दौरे से US में खलबली! ट्रंप ने दिल्ली के पक्ष में लिया बड़ा फैसला; बताया कैसे देगा साथ
कौन हैं शिप्रा शर्मा? कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय संग लिए सात फेरे, 3 घंटे चली विवाह की रस्म
कौन हैं शिप्रा शर्मा? कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय संग लिए सात फेरे, 3 घंटे चली विवाह की रस्म
5 दिनों में 1700 फ्लाइट्स रद्द, 12% शेयर गिरे, आखिर इंडिगो पर ही आफत क्यों, बाकी एयरलाइंस कैसे बच गईं?
5 दिनों में 1700 फ्लाइट्स रद्द, 12% शेयर गिरे, आखिर इंडिगो पर ही आफत क्यों, बाकी एयरलाइंस कैसे बच गईं?
गौतम गंभीर पर भड़के रविचंद्रन अश्विन, ये ऑलराउंडर है वजह; कहा- वो खुद की पहचान...
गौतम गंभीर पर भड़के रविचंद्रन अश्विन, ये ऑलराउंडर है वजह; कहा- वो खुद की पहचान...
ABP Premium

वीडियोज

Indigo Flight: आसमान में 'आपातकाल', यात्री बेहाल...सुलगते सवाल | Janhit | Chitra Tripathi | Delhi
Sandeep Chaudhary: IndiGo को लेकर बढ़ी हलचल....पूरा देश परेशान!| Seedha Sawal | Indigo News
Indigo Flight News Today: कैंसिल उड़ान...पब्लिक परेशान! | ABP Report | ABP News
Indigo Flight Ticket Cancellation: इंडिगो की गलती.. भुगत रहे यात्री! | Mahadangal With Chitra
Khabar Gawah Hai: रुकी इंडिगो की उड़ान, यात्री परेशान! | IndiGo Flights Cancellations | DGCA

पर्सनल कार्नर

टॉप आर्टिकल्स
टॉप रील्स
पुतिन के भारत दौरे से अमेरिका में खलबली! ट्रंप ने दिल्ली के पक्ष में ले लिया बड़ा फैसला; बताया कैसे देगा साथ
पुतिन के भारत दौरे से US में खलबली! ट्रंप ने दिल्ली के पक्ष में लिया बड़ा फैसला; बताया कैसे देगा साथ
कौन हैं शिप्रा शर्मा? कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय संग लिए सात फेरे, 3 घंटे चली विवाह की रस्म
कौन हैं शिप्रा शर्मा? कथावाचक इंद्रेश उपाध्याय संग लिए सात फेरे, 3 घंटे चली विवाह की रस्म
5 दिनों में 1700 फ्लाइट्स रद्द, 12% शेयर गिरे, आखिर इंडिगो पर ही आफत क्यों, बाकी एयरलाइंस कैसे बच गईं?
5 दिनों में 1700 फ्लाइट्स रद्द, 12% शेयर गिरे, आखिर इंडिगो पर ही आफत क्यों, बाकी एयरलाइंस कैसे बच गईं?
गौतम गंभीर पर भड़के रविचंद्रन अश्विन, ये ऑलराउंडर है वजह; कहा- वो खुद की पहचान...
गौतम गंभीर पर भड़के रविचंद्रन अश्विन, ये ऑलराउंडर है वजह; कहा- वो खुद की पहचान...
नेटफ्लिक्स ने उसे बहुत महंगे दामों में खरीद लिया है जिसकी फिल्में आप सैकड़ों बार देख चुके होंगे
नेटफ्लिक्स ने उसे बहुत महंगे दामों में खरीद लिया है जिसकी फिल्में आप सैकड़ों बार देख चुके होंगे
UP AQI: नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
नोएडा-गाजियाबाद नहीं थम रहा जहरीली हवा का कहर, घुट रहा दम, आज भी हालत 'बेहद खराब'
कहीं आपका गैस सिलेंडर एक्सपायर तो नहीं हो गया, घर पर ही ऐसे कर सकते हैं चेक
कहीं आपका गैस सिलेंडर एक्सपायर तो नहीं हो गया, घर पर ही ऐसे कर सकते हैं चेक
CBSE में 124 नॉन-टीचिंग पदों पर भर्ती, जानें किस उम्र सीमा तक के उम्मीदवार कर सकते हैं अप्लाई?
CBSE में 124 नॉन-टीचिंग पदों पर भर्ती, जानें किस उम्र सीमा तक के उम्मीदवार कर सकते हैं अप्लाई?
Embed widget