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दहशत में जी रहे कश्मीरी पंडितों के पलायन को कैसे रोकेगी सरकार?

कश्मीर घाटी में फिर से नब्बे के दशक का मंजर दोहराने की कोशिश हो रही है, लेकिन इस बार आतंकियों की लिस्ट में सिर्फ कश्मीरी पंडित ही नहीं हैं, बल्कि हर वो हिन्दू है, जो गैर कश्मीरी है. गुरुवार को कुलगाम में तैनात एक हिंदू बैंक मैनेजर की हत्या के बाद दहशत इतनी बढ़ गई है कि कश्मीरी पंडितों ने शुक्रवार को सामूहिक रुप से घाटी से पलायन करने का एलान कर दिया है. बैंक मैनेजर का नाता हनुमानगढ़, राजस्थान से था. घाटी में टारगेट किलिंग की बढ़ती हुई वारदातों के मद्देनजर शुक्रवार को ही गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली में उच्च स्तरीय बैठक  बुलाई है, जिसमें उप राज्यपाल मनोज सिन्हा और केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला समेत पुलिस और अर्ध सैनिकबलों के मुखिया शामिल होंगे, लेकिन बड़ा सवाल ये है कि वहां रह रहे कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा के लिए सरकार ऐसा क्या बड़ा फैसला लेगी कि वे पलायन के लिए मजबूर न हों?

दरअसल, पांच अगस्त 2019 को मोदी सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा ख़त्म कर देने के बाद से ही पाकिस्तान बौखलाया हुआ है. धारा 370 हटने के बाद कुछ महीने तक तो आतंकी गुट खामोश रहे, लेकिन जब उन्हें अहसास होने लगा कि अब सरकारी नौकरियों में हिन्दू भी घाटी में आकर तैनात होने लगे हैं तो उनकी बौखलाहट बढ़ गई और उन्होंने कश्मीरी पंडितों के अलावा अन्य हिंदुओं को भी निशाना बनाना शुरु कर दिया. एक मई से लेकर दो जून तक आठ हिंदुओं की आतंकियों ने गोली मारकर हत्या की है. अगर अगस्त 2019 से लेकर अब तक के आंकड़ों पर गौर करें तो करीब दो दर्जन कश्मीरी पंडित /हिन्दू मारे जा चुके हैं, जिनमें तीन पुलिसकर्मी भी शामिल हैं.

जानकार मानते हैं कि अपनी हताशा से बौखलाए पाकिस्तान ने इस बार आतंकियों के जरिये अपनी रणनीति में बदलाव किया है. अब पुलिसवालों की बजाय आम नागरिकों खासकर हिन्दू सरकारी कर्मचारियों को निशाना बनाया जा रहा है, ताकि दहशत के चलते कोई भी हिन्दू परिवार घाटी में बसने की न सोचे. इस काम में आतंकी गुटों की मदद घाटी में रहने वाले स्थानीय कट्टरपंथी कर रहे हैं. वही आतंकियों तक ये जानकारी पहुंचाते हैं कि कौन हिन्दू कर्मचारी घाटी में कहां तैनात है, जिसे आसानी से निशाना बनाया जा सकता है.

जम्मू-कश्मीर के पूर्व डीजीपी एसपी वैद के मुताबिक ऐसा लगता है कि 2016-2017 के वक्त आतंकी जिस तरह पुलिसवालों की लिस्ट बनाकर उनकी हत्या कर रहे थे, अब सिविलियंस के लिए भी ऐसी ही लिस्ट बनाई गई है. वे कहते हैं कि कश्मीर में इस बार सरकारी कर्मचारियों को निशाना बनाया जा रहा है. हमारे वक्त में पुलिसकर्मियों पर ऐसे ही टारगेट अटैक्स होते थे और आतंकियों ने उनकी लिस्ट बनाई हुई थी. इस बार सरकारी कर्मियों के लिए भी ऐसी लिस्ट बनी हो सकती है. इस लिस्ट में सरकारी कर्मचारियों के नाम, उनके पते, पोस्टिंग की जगह, उनकी पोजिशन सब मौजूद होती है. लिस्ट बनाने में कश्मीर के ही आम लोग आतंकियों की मदद करते हैं. मदद करने वाले वो लोग होते हैं, जिन्हें आतंकी संगठन कट्टरपंथी बनाकर उनका माइंड वॉश कर देते हैं.

बीजेपी नेता रविन्द्र रैना ने भी इसे सहमति जताते हुए कहते हैं कि पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर में टारगेट किलिंग का एक नया तरीका अपनाया है. पाकिस्तान कश्मीर में साजिश रचने का काम कर रहा है. कश्मीर में लोगों को नए तरीके से मारा जा रहा है. 1984-85 जैसे हालत कश्मीर में बनाए जा रहे हैं. आतंकवादी कश्मीर में इंसानियत का कत्ल कर रहे हैं.

वहीं कांग्रेस ने घाटी में रहने वाले कश्मीरी पंडितों व अन्य हिंदुओं को सुरक्षा देने में नाकाम रहने पर मोदी सरकार को निशाने पर लिया है. कांग्रेस की तरफ से कहा गया है कि, "बरसों से कश्मीर का नाम लेकर राजनीति करने वाली बीजेपी आजकल कहां गायब है, किसी को कुछ नहीं पता. आतंकियों के अंदर से डर और भय पूरी तरह से खत्म हो गया है. जिस तरह से तहसील और बैंक में घुसकर कर्मचारियों की हत्या की जा रही है, स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाया जा सकता है. प्रोपेगेंडा मूवी के जरिए मौजूदा कश्मीरी पंडितों के दर्द को छिपाने की कोशिश की गई थी, लेकिन अब सच्चाई बाहर आ रही है. कश्मीर में कश्मीरी पंडितों पर हमले बढ़ रहे हैं. देश पूछ रहा है- प्रधानमंत्री जी, कश्मीरी पंडितों को सुरक्षा कब दोगे?

उधर, कश्मीर अल्पसंख्यक फोरम ने कुलगाम में बैंक प्रबंधक की हत्या की वारदात की कड़ी निंदा करते हुए गुरुवार को हुई बैठक में तीन बड़े फैसले लिए हैं. फोरम से जुड़े नेताओं के मुताबिक घाटी में जारी सभी जगहों पर विरोध प्रदर्शनों पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी गई है. फोरम का कहना है कि घाटी में सभी अल्पसंख्यकों के सामने सरकार ने कोई विकल्प नहीं छोड़ा है. ऐसे में वे शुक्रवार सुबह घाटी से बाहर पलायन करेंगे. फोरम ने घाटी में सभी प्रदर्शनकारियों से आह्वान किया है कि वे सभी बनिहाल नवयुग टनल के पास एकत्रित हों और यहां पर आगे की कार्यनीति तय करेंगे.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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