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गाजा में आग: हमास-इजरायल युद्ध से फिलिस्तीन में विनाश का सिलसिला जारी

इजरायल का गाज़ा पट्टी पर हमला जारी है, बिजली पानी खाना और दवाई की आपूर्ति बंद है, अमेरिका और यूरोपियन राष्ट्रों की मदद से फलीस्तीनिओ का क़त्लेआम जारी है. साथ ही इजरायल ने दूसरे नकबा की शुरुआत कर दी है. पहले नकबा में हज़ारो फिलिस्तीनी मारे गए थे, उनके ज़मीनो पर क़ब्ज़ा कर उन्हें इजरायल से बहार निकाल दिआ गया था. आज पचास लाख फिलिस्तीनी विदेशों में बिखरे पड़े है, जो फिलिस्तीनी की कुल आबादी का अस्सी प्रतिशत है.

इजरायल के वित्त मंत्री का कहना है कि या तो फिलिस्तीनी गाजा पट्टी और वेस्ट बैंक को खाली कर के चले जाए या फिर यहूदियों के गुलाम बन कर रहे नहीं तो फिर मरने के लिए तैयार रहे, फिलीस्तीनियों ने तीसरा ऑप्शन चुना है,वो लड़कर मरने को तैयार है.

वहीं संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, अगले 24 घंटों के भीतर करीब 11 लाख फिलिस्तीनियों को स्थानांतरित होने के लिए मजबूर किया जा सकता है. इजरायल ने अल्टीमेटम दे दिया है और यही सेकंड नकबा है. इजरायली सेना ने कथित तौर पर 10 लाख से अधिक लोगों को गाजा पट्टी के उत्तरी हिस्से में अपने घर छोड़ने और तुरंत गाजा पट्टी  के दक्षिण में स्थानांतरित होने का आदेश दिया है.

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि अगर इसे लागू किया गया तो "विनाशकारी मानवीय परिणाम" होंगे. गाजा पर इजरायली हवाई हमलों में अब तक कम से कम 1,600 फिलिस्तीनी मारे गए हैं. इनमें 500 बच्चे और 276 महिलाएं शामिल हैं. इसके साथ ही 6,612 घायल हुए हैं. मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (यूएनओसीएचए) के आंकड़ों के अनुसार 2008 और वर्तमान युद्ध की शुरुआत के बीच, प्रमुख युद्धों और लगातार दैनिक हिंसा की एक श्रृंखला में इजरायली कब्जे के कारण 6,407 फिलिस्तीनी मारे गए थे.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, घिरी हुई गाजा पट्टी में अस्पतालों में कोई जगह नहीं है और इजरायली हवाई हमलों ने गाजा की स्वास्थ्य प्रणाली को "ध्वस्त होने के कगार पर" छोड़ दिया है. इस बीच, फ़िलिस्तीनी रेड क्रिसेंट सोसाइटी के अनुसार, जब से इज़राइल ने घिरी हुई पट्टी पर अपना नवीनतम सैन्य अभियान शुरू किया है तब से गाजा में कम से कम 10 पैरामेडिक्स मारे गए हैं.

फिलिस्तीनियों का क़त्लेआम इजरायल ने लेबनान में भी किया. 1982 में,इसाई समर्थित लेबनानी मिलिशिया के हाथों, सबरा और शतीला नरसंहार किया. 1982 में लेबनानी गृहयुद्ध के दौरान बेरूत शहर में 460 से 3,500 नागरिक मारे गये, जिसमे ज्यादातर फिलिस्तीनी और लेबनानी शिया थे. 16 सितंबर को लगभग 18:00 बजे से 18 सितंबर को 08:00 बजे तक, लेबनानी बलों ने नरसंहार को अंजाम दिया, जबकि इज़राइल रक्षा बलों (ईडीएफ) ने फिलिस्तीनी शिविर को घेर लिया था,ताकि कोई भी फिलिस्तीनी ज़िंदा बच कर जाने न पाए,मरने वालो में ज़्यादातर बच्चे, महिलाएं और बुड्ढे थे.आज दुनिया इजरायल के हाथों इन क़त्लेआम को भूल चुकी है.

अपने ताज़ा क़त्लेआम में इज़राइल सिविल आबादी के खिलाफ ऐसे हथियारों और बमों का इस्तेमाल कर रहा है, जिसे संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रतिबंधित कर रखा है. ह्यूमन राइट्स वॉच का कहना है कि इजरायल ने गाजा, लेबनान में सफेद फास्फोरस का इस्तेमाल किया है, जिससे शरीर में भीतर तक आग पकड़ लेता है. नेतन्याहू की सरकर हमले के बाद समर्थन जुटाने के लिए इजरायल ने मारे गए बच्चों की तस्वीरें जारी कीं, शनिवार से लगभग 1,200 इजरायली मारे गए.वहीँ 1,600 फिलिस्तीनी मारे गये है. फ़िलिस्तीनी स्वास्थ्य मंत्रालय का कहना है कि युद्ध विराम के बाद से गाजा में बहुत से लोग मारे गए हैं.

एक आयरिश सांसद ने कहा है कि इसराइल हत्या करके बच जाता है, उसे फ़िलिस्तीन में 75 वर्षों के अपराधों के लिए जवाब देना होगा. पूर्व इज़राइली प्रधान मंत्री शिमोन पेरेज़ ने एक किताब लिखी थी कि ओस्लो मध्य पूर्व को कैसे नया आकार देगा.  पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री कोंडोलिज़ा राइस ने "एक अलग मध्य पूर्व" की ओर इशारा किया जब उन्होंने 2006 में दक्षिणी लेबनान में हिज़्बुल्लाह पर 11 दिनों की बमबारी के बाद इजरायल से युद्धविराम के आह्वान  को अनदेखा करने का आग्रह किया था.

हमास के ताज़ा हमले ने इजरायल, अमेरिका, पश्चिमी देश और उन अरब राष्ट्रों के मंसूबो को फ़लिता लगा दिया, जिन्होंने फिलिस्तीनियों के एक स्वतंत्र राष्ट्र की मांग को खत्म कर देने की साज़िश रच रखी है, जिसके लिए लाखो फिलिस्तीनियों ने अपनी जान दी है और आज भी मारे जा रहे हैं. जानवरो से बदतर ज़िन्दगी जीने को मौजूद है, इज़राइली सेना से लेकर अवैध इजरायली घुसपैठी फिलिस्तीनी को आए दिन अपनी गोलियों का निशाना बनाते हैं. इज़राइल दुनिया का इकलौता मुल्क है, जहाँ पांच साल के फिलिस्तीनी बच्चे पर सेना की अदालत में मुक़दमा चलता है.

अगर इस ज़ुल्म के खिलाफ फिलिस्तीनी लड़ाके खड़ा होते है तो वे आतंकवादी, विरोध में सड़कों पर उतरते हैं तो उग्रवादी, आवाज़ उठाते हैं तो हिंसक और अगर कोई गैर अरब बोलता है तो उसे ज़िओनिस्ट तब्क़ा एंटी सेमेटिक कहता है.

हमास और इजरायल युद्ध ने सऊदी क्राउन प्रिंस को फिलिस्तीनी राष्ट्र के मुद्दे पर वापिस लौटने पर मजबूर कर दिया है. अभी हाल ही में सऊदी प्रिंस ने अमेरिकी न्यूज़ चैनल को दिए इंटरव्यू में ये कहा था की इजरायल और सऊदी अरब के बीच कूटनीतिक रिश्ते बहाल होने के बदले में वो ये चाहेंगे की फिलिस्तीनियों की ज़िन्दगी की मुश्किलों में कुछ असानिया पैदा हो जाए. इज़राइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने भी हाल ही में बड़े फक्र से कहा था की फिलिस्तीन का मुद्दा दूसरे देशो के लिए सिर्फ एक चेक बॉक्स है. अमेरिका और अरब देशों को भी अब ये समझना होगा की वो फिलिस्तीन को पैराशूट की तरह क्रॉस कर सीधे इजरायल नहीं जा सकते है. ये चेक बॉक्स नहीं है..चेकमेट है.

[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ़ लेखक ही ज़िम्मेदार हैं.]

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