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यूपी में निषाद पार्टी की मांग ने बीजेपी को दोराहे पर ला दिया

उत्तरप्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी के सहयोगी दल निषाद पार्टी ने जो मांग की है, उसे पूरा कर पाना पार्टी नेतृत्व के लिये एक बड़ी चुनौती बन गई है. प्रदेश की राजनीति में चल रही अंदरूनी कलह को ख़त्म करने की माथापच्ची में जुटे संघ के शीर्ष पदाधिकारियों से लेकर 'दिल्ली दरबार' के आलाकमान के लिए निषाद पार्टी के अध्यक्ष संजय निषाद की मांग को एक झटके में ठुकरा देना उतना भी आसान नहीं है.

वह इसलिए कि सूबे की कई सीटों पर निषाद समुदाय का वोट निर्णायक भूमिका में है और उसे नाराज करके यूपी के किले को दोबारा फतह कर पाना, बेहद मुश्किल नजर आता है. हाल ही में गृह मंत्री अमित शाह और बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा से मुलाक़ात करके अपनी पुरानी मांग पूरा करने का आश्वासन पाने वाले निषाद अचानक आज एक और नई मांग उठा देंगे,  इसकी उम्मीद बीजेपी आलाकमान को भी नहीं रही होगी.

निषाद ने आज लखनऊ में कहा, "बीजेपी ने हमें एक कैबिनेट पोस्ट और एक राज्यसभा सीट देने का वादा किया था. हमारी मांग है कि आगामी चुनाव में बीजेपी की तरफ से मुझे उप मुख्यमंत्री का चेहरा बनाया जाए. अगर बीजेपी ऐसा करती है इससे चुनाव में फायदा मिलेगा और हमारी सरकार बनेगी."

गठबंधन राजनीति के जरिये सरकार चलाने में क्या मुश्किलें आती हैं और छोटे दल किस तरह से अपनी जायज-नाजायज़ बातों को पूरा करवाने के लिए बड़ी पार्टी पर दबाव डालते हैं, बीजेपी को इसका पुराना व कड़वा अनुभव है. साल 1998 में केंद्र में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी एनडीए सरकार सिर्फ इसी वजह से महज 13 महीने में गिर गई थी क्योंकि तब वाजपेयी ने छोटे दलों की गैर जरुरी मांगों को मानने से इनकार कर दिया था.

उसके बाद वाजपेयी ने अपने एक भाषण में कहा था कि," बहुदलीय शासन व्यवस्था देश के विकास में एक बड़ा रोड़ा है क्योंकि छोटे क्षेत्रीय दल सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिए सरकार चलाने वाली बड़ी पार्टी को एक तरह से 'ब्लैक मेल' करते हैं. इसलिए देश के मतदाताओं को यह तय करना चाहिए कि वे चुनावों में किसी भी एक बड़े दल को ही स्पष्ट जनादेश दें, ताकि उसे सरकार चलाने के लिए छोटी पार्टियों की बैसाखी का सहारा न लेना पड़े."

निषाद पार्टी ने चुनाव से पहले ही उसी दबाव की राजनीति का रास्ता अपनाते हुए बीजेपी को मजबूरी के दोराहे पर ला खड़ा किया है. अगर निषाद समुदाय को खुश करने के लिए बीजेपी संजय निषाद को डिप्टी सीएम का चेहरा बनाती है,तो अनुसूचित जातियों के बड़े तबके को नाराज होने से वह कैसे रोक पाएगी. और, अगर नहीं बनाती है, तो उसे सवा सौ से अधिक सीटों पर हार का ख़तरा सामने नजर आ रहा है. लिहाज़ा, अब सारी कवायद बीच का रास्ता निकालने के लिए ही होगी. वैसे भी  संजय निषाद ने दावा किया है कि "यूपी की 144 से अधिक विधानसभा सीटों पर निषाद व उनकी अन्य उपजातियों का दबदबा है. यही जाति बीजेपी को विजय दिलाती हैं."

हालांकि निषाद ने चेतावनी भरे लहजे में यह संकेत भी दे दिया है कि अगर बीजेपी उन्हें खुश नहीं रखेगी, तो किसी अन्य पार्टी से गठबंधन के विकल्प को उन्होंने खोल रखा है. निषाद पार्टी ने अपनी हिस्सेदारी में बीजेपी से 160 सीटें मांगी हैं, जिसे पूरा करना नामुमकिन हो लगता है.

हालांकि बीजेपी भी यह कभी नहीं चाहेगी की पूर्वांचल के दर्जन भर जिलों में अपनी ताकत रखने वाली निषाद पार्टी उससे अलग होकर सपा या बसपा के साथ चली जाए.निषाद पार्टी का पूरा नाम निर्बल इंडिया शोषित हमारा आम दल है. गंगा के किनारे वाले पूर्वी उत्तर प्रदेश के इलाके में निषाद समुदाय की अच्छी-खासी आबादी है. साल 2016 में गठित निषाद पार्टी का खासकर निषाद, केवट, मल्लाह, बेलदार और बिंद बिरादरियों में अच्छा असर माना जाता है. पिछले लोकसभा चुनाव में गोरखपुर, देवरिया, महराजगंज, बांसगांव, जौनपुर और वाराणसी समेत करीब 16 लोकसभा सीटों पर निषाद समुदाय के वोटों से बीजेपी को खासा फायदा मिला था.

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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