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BLOG: राष्ट्रवाद की हवा में भी सबसे ज्यादा सैनिकों के गांव वाले लोकसभा में हारी बीजेपी

मनोज सिन्हा संचार मंत्री होने के साथ ही रेल राज्यमंत्री भी हैं. गाजीपुर में सिन्हा को विकास पुरुष माना जाता है. लेकिन गाजीपुर के लोगों ने ही इस विकास पुरुष को हरा दिया.

नई दिल्ली: हिंदुस्तान में जो गांव सबसे ज्यादा सैनिक देश की सेवा के लिए भेजता है उसी गांव वाले लोकसभा क्षेत्र में राष्ट्रवाद की हवा नहीं चली.  लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने भले ही प्रचंड जीत हासिल की है. लेकिन इस जीत की चर्चा के बीच कई दिनों से केंद्रीय संचार मंत्री मनोज सिन्हा की हार की ज्यादा चर्चा है. मनोज सिन्हा यूपी की गाजीपुर सीट से हारे हैं. बीएसपी के बाहुबली अफजाल अंसारी ने मनोज सिन्हा को इस सीट पर हराया है.

गाजीपुर के गहमर गांव की आबादी डेढ़ लाख के आसपास है. इस गांव के दस हजार सैनिक अब भी देश की सेवा में हैं. दस हजार से ज्यादा रिटायर हो चुके हैं. हर घर में एक सैनिक है. लेकिन सैनिकों की इस लोकसभा सीट पर राष्ट्रवाद की हवा निकल गई.

मनोज सिन्हा संचार मंत्री होने के साथ ही रेल राज्यमंत्री भी हैं. गाजीपुर में सिन्हा को विकास पुरुष माना जाता है. लेकिन गाजीपुर के लोगों ने ही इस विकास पुरुष को हरा दिया.

केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने ट्विटर पर लिखा है "बहुमत तो प्रचंड है लेकिन गाजीपुर से मनोज सिन्हा जी की हार ने मेरे अंदर एक खालीपन सा पैदा कर दिया है. ये उम्मीद से परे परिणाम ने मुझे झकझोर दिया है."

मनोज सिन्हा को चुनाव में 4 लाख 46 हजार 690 वोट मिले जबकि अफजाल अंसारी को 5 लाख 66 हजार 82 वोट हासिल हुए.

हार के बाद मनोज सिन्हा ने ट्वीट किया कि " लोकसभा चुनाव में गाजीपुर की सम्मानित जनता, पार्टी के पदाधिकारी एवं निष्ठावान साथियों ने जो सहयोग, समर्थन दिया उसके लिए सभी के प्रति हार्दिक आभार. मैं आगे भी BJP कार्यकर्ता के रूप में गाजीपुर समेत देश की सेवा के लिए तत्पर रहूंगा."

मनोज सिन्हा ने चुनाव कैंपेन में गाजीपुर के विकास को मुद्दा बनाया था. गाजीपुर-वैष्णो देवी, गाजीपुर-दिल्ली, गाजीपुर-कोलकाता, छपरा-लखनऊ वाया गाजीपुर जैसी लंबी दूरी की ट्रेनों को चलवाने का श्रेय लेने के साथ साथ आधा दर्जन लोकल ट्रेनें चलाने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है.

ताड़ीघाट-गाजीपुर पुल, एक्सप्रेसवे, हाइवे, गांवों में ऑप्टिकल फाइबर, मवेशी के चारे के लिए प्लेटफॉर्म, गांवों में पानी की टंकी. औड़िहार में डेमू-मेमू शेड, सैदपुर में इलेक्ट्रिक लोको मेंटनेंस वर्कशॉप, दुल्लहपुर में वैगन मेंटनेंस वर्कशॉप, वाराणसी-गाजीपुर ऑद्योगिक कॉरिडोर, एरिक्शन, नोकिया, बीएसएनएल के कौशल विकास केंद्र, स्पोर्टस कॉम्प्लेक्स, मेडिकल कॉलेज जैसे काम मनोज सिन्हा ने कराए और करा रहे थे.

मनोज सिन्हा का नाम 2017 के विधानसभा चुनाव नतीजों के बाद सीएम के लिए सुर्खियों में आया था. माना जा रहा था कि क्लीन छवि की वजह से बीजेपी मनोज सिन्हा को सीएम बनाएगी. बाकायदा मनोज सिन्हा वाराणसी में पूजा पाठ भी कर आये थे. लेकिन सिन्हा की जगह लॉटरी लगी योगी की.

मनोज सिन्हा को मोदी का करीबी माना जाता है. यही वजह रही है कि मोदी ने उन्हें संचार का स्वतंत्र प्रभार दिया और रेल का राज्यमंत्रालय भी. सोशल मीडिया पर बिहार और यूपी के मनोज सिन्हा समर्थक हार से दुखी है. मांग की जा रही है कि पार्टी राज्यसभा भेजकर मंत्री बनाए.

तर्क भी लोगों के अपने अपने हैं. अगर जाति की दीवार टूटी और राष्ट्रवाद के नाम पर वाकई में चुनाव हुआ तो फिर गाजीपुर में राष्ट्रवाद की लहर कैसे कुंद हो गई? गाजीपुर में तो मनोज सिन्हा का मुकाबला अफजाल अंसारी जैसे बाहुबली से था जो गैंगस्टर मुख्तार अंसारी के भाई हैं. मुख्तार दंगों के आरोपी भी हैं. अफजाल की छवि भी कोई साफ सुथरी नहीं है. फिर भी पढ़े लिखे और साफ छवि के विकास वादी सोच के नेता को उन्होंने हरा दिया. कुछ लोग इस हार में साजिश भी खोज रहे हैं. जिसकी कोई उम्मीद नहीं दिखती. शुद्ध रूप से ये जीत हार जातीय गणित का दिखता है.

बिहार के राजनीतिक एक्सपर्ट महंथ राजीव रंजन दास फेसबुक पर लिखते हैं, ''गाजीपुर की हार मनोज सिन्हा की हार नहीं है बल्कि विकास, शालीनता और ईमानदारी की हार है.इन पांच वर्षों में कुछ खास पिछड़े क्षेत्र में इतना ज्यादा काम कम ही जगह हुआ होगा जितना "गाजीपुर "ने देखा औऱ अनुभव किया. रेल, सड़क, अस्पताल, मेडिकल कॉलेज, ऐसा कोई क्षेत्र अछूता रहा? अफसोस यही प्रजातंत्र है.

इसी उत्तर प्रदेश में कभी आचार्य नरेंद्र देव भी हार गए थे तो नेहरू जी इसे प्रजातंत्रीय व्यवस्था की हार कहा था. हारे भी तो किससे? इस महाभारत में मोदी जी के सबसे बड़े योद्धा की ही बलि चढ़ी. अफसोस कि इस चुनाव में कुछ जगह के उम्मीदवारों पर "दिन दयाल जी की उक्ति और स्वच्छ, ईमानदार राजनीति के लिए लिखने वाले इनकी हार पर चुप्पी लगाए हुए हैं?

(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)

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