Shardiya Navratri 2025: मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में ये 3 गलतियां खत्म कर सकती हैं वर्षों का तप, जानें शास्त्रीय रहस्य
Shardiya Navratri 2025 2nd Day: नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी की साधना का दिन है. शास्त्र कहते हैं कि यदि साधक इस दिन क्रोध, अहंकार, असंयमित भोजन और मंत्र-जप में भूल करता है तो उसका वर्षों का तप कमजोर हो सकता है.

Shardiya Navratri 2025: शारदीय नवरात्रि का दूसरा दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा को समर्पित होता है. देवी का यह स्वरूप तपस्या, संयम और ज्ञान का प्रतीक माना गया है. शास्त्रों में उल्लेख है कि मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से साधक को असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं.
लेकिन इन्हीं शास्त्रों में एक और रहस्य छुपा है कि यदि नवरात्रि के इस दिन साधक से तीन विशेष भूलें हो जाएं, तो उसका वर्षों का तप, पूजा-पाठ और साधना भी व्यर्थ हो सकता है. आइए जानते हैं वे कौन सी बातें हैं जिनसे इस पावन दिन पर हर साधक को सावधान रहना चाहिए.
मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप और महत्व
दुर्गा सप्तशती और देवी भागवत पुराण में वर्णन मिलता है कि मां ब्रह्मचारिणी हिमालय की पुत्री और भगवान शंकर की व्रतधारिणी थीं. उन्होंने घोर तपस्या करके शिव को पति रूप में प्राप्त किया. उनके हाथ में जपमाला और कमंडलु है, जो ध्यान और साधना का प्रतीक है.
शास्त्र कहते हैं कि तपश्चर्या रता नित्यं ब्रह्मचारिणि मातरः. शांतीं ददातु मे नित्यं आरोग्यं च सुखं परम्॥ यानी हे ब्रह्मचारिणी माता! आप सदा तप में लीन रहती हैं, कृपा करके मुझे शांति, आरोग्य और परम सुख प्रदान करें.)
क्यों होता है इस दिन साधना का विशेष प्रभाव?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवरात्रि के दूसरे दिन चंद्रमा की स्थिति मन और तपस्या पर विशेष असर डालती है. इस दिन यदि साधक नियमपूर्वक पूजा करे तो उसका मन स्थिर होता है और आत्मबल बढ़ता है. यही कारण है कि योगी, साधु और गृहस्थ सभी इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की साधना को अत्यंत महत्वपूर्ण मानते हैं.
शास्त्रों का चौंकाने वाला खुलासा: तीन भूलें जो तप नष्ट कर देती हैं
1. अहंकार और क्रोध का वशीभूत होना
नवरात्रि के दूसरे दिन यदि साधक पूजा करते समय क्रोधित हो जाए या अपने अहंकार को बढ़ावा दे, तो यह साधना को नष्ट कर देता है. शास्त्रीय आधार: देवी भागवत के अनुसार अहंकारः परं दुष्टं क्रोधो वा नाशकः तपः. यानी अहंकार और क्रोध तपस्या को तुरंत नष्ट कर देते हैं.
आधुनिक दृष्टि: मनोविज्ञान भी मानता है कि पूजा के समय गुस्सा या अहंकारी प्रवृत्ति मन की शांति को भंग कर देती है. यह ध्यान की शक्ति को समाप्त कर देता है.
2. भोजन और ब्रह्मचर्य का उल्लंघन
मां ब्रह्मचारिणी का नाम ही ब्रह्मचर्य से जुड़ा है. यदि इस दिन व्रती असंयमित भोजन करता है, मांस-मद्य का सेवन करता है या ब्रह्मचर्य के नियम तोड़ता है, तो उसका व्रत निष्फल हो जाता है. शास्त्रीय आधार की मानें तो पद्म पुराण में एक स्थान पर लिखा है कि मद्यं मांसं न सेवेत व्रतानां ब्रह्मचारिणि. यानी व्रत के दौरान मद्य और मांस का सेवन व्रत को नष्ट कर देता है.
आधुनिक दृष्टि: आयुर्वेद भी कहता है कि सात्त्विक भोजन मन और शरीर को तप के योग्य बनाता है, जबकि तामसिक भोजन ऊर्जा को क्षीण करता है.
3. मंत्र-जप में अशुद्धि या भूल
इस दिन यदि साधक मंत्र-जप करते समय अशुद्ध उच्चारण करे, अधूरा जप छोड़े या अन्यमनस्क होकर जप करे, तो मां ब्रह्मचारिणी की कृपा नहीं मिलती. मार्कंडेय पुराण में बताया गया है कि मन्त्रे दोषो यदि स्यात् तु न फलो भवति ध्रुवम्. यानी यदि मंत्र में दोष हो जाए तो फल निश्चित ही नष्ट हो जाता है.)
आधुनिक दृष्टि: ध्वनि और कंपन विज्ञान कहता है कि मंत्र का उच्चारण सही स्वर और लय में होना चाहिए, तभी उसकी तरंगें मन-मस्तिष्क पर असर डालती हैं.
क्या सच में साधना व्यर्थ हो सकती है?
शास्त्र बताते हैं कि इन तीन भूलों से तपस्या का प्रभाव घट जाता है. इसका मतलब यह नहीं कि साधक का पुण्य शून्य हो जाता है, बल्कि वह उतना फल नहीं प्राप्त कर पाता जितना संभव था. यह उसी तरह है जैसे कोई छात्र साल भर मेहनत करे लेकिन परीक्षा में लापरवाही से कई अंक गवां दे.
यदि भूल से कोई त्रुटि हो जाए तो शास्त्र कुछ उपाय बताते हैं कि
- क्षमा प्रार्थना: देवी से हृदयपूर्वक क्षमा मांगें.
- अतिरिक्त जप: यदि एक माला छूट गई हो तो अतिरिक्त माला जपें.
- दान: ब्राह्मण, कन्या या गौ को दान देकर दोष का निवारण करें.
- आधुनिक दृष्टिकोण: तपस्या का मनोवैज्ञानिक रहस्य
मनोविज्ञान मानता है कि संयम, ध्यान और सात्त्विकता का पालन करने से व्यक्ति के न्यूरॉन्स सक्रिय होते हैं, स्मरण शक्ति बढ़ती है और आत्मबल मजबूत होता है. इस लिहाज से नवरात्रि केवल धार्मिक पर्व नहीं बल्कि मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की साधना भी है.
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