Garuda Purana: गरुड़ पुराण के अनुसार मां के गर्भ से ही शिशु को आने लगते हैं कई विचार, भगवान से करता है ये बातें
Garuda Purana: गरुड़ पुराण में इस बात का स्पष्ट विवरण मिलता है कि, मां के गर्भ से लेकर जन्म लेने तक शिशु क्या-क्या सोचता है, उसके मन में कैसे विचार आते हैं और वह भगवान से क्या बातें करता है.

Garuda Purana lord Vishnu niti: गरुड़ पुराण हिंदू धर्म के 18 महापुराणों में है, जिसमें भगवान विष्णु द्वारा बताई बातों का उल्लेख मिलता है. इसमें जन्म, मृत्यु, स्वर्ग और नरक के साथ ही ज्ञान, विज्ञान और नीति-नियम से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों का भी वर्णन मिलता है.
गरुड़ पुराण में ऐसी कई बातें बताई गई है, जिसका संबंध विज्ञान से है. मेडिकल साइंस की बात करें तो, गर्भवती महिला को डॉक्टर गर्भावस्था के दौरान पोष्टिक आहार लेने की सलाह देते हैं. क्योंकि मेडिकल साइंस के अनुसार, गर्भावस्था के समय मां जो कुछ भी खाती-पीती है उसी से गर्भ में शिशु का विकास होता है. इस बात वर्णन गरुड़ पुराण में भी मिलता है. गरुड़ पुराण में गर्भावस्था से लेकर जन्म लेने तक शिशु के बारे में बताया गया है. इसमें बताया गया है कि, मां के गर्भ में शिशु के मन में क्या-क्या विचार आते हैं और वह भगवान से कैसी बातें करता है. जानते हैं इस बारे में.
गर्भ से जन्म तक शिशु का चक्र
- एक रात से लेकर दस दिन के शिशु का आकार: गरुड़ पुराण के अनुसार, एक रात का जीव सूक्ष्म कण, पांच रात का जीव बुलबुले के समान और दस दिन में बेर फल की तरह होता है. इसके बाद वह एक मांस के पिंड का आकार लेकर अंडे के समान होता है.
- एक महीने से 3 महीने के शिशु का आकार: गरुड़ पुराण में बताया गया है कि, जब गर्भ में शिशु एक महीना का होता है तो मस्तक, दूसरे महीने में हाथ आदि अंगों की रचना और तीसरे महीने में रोम, हड्डी, लिंग, नाखुन से लेकर कान-नाक जैसे अंग बनने लगते हैं.
- गर्भ में चौथे महीने से छठे महीने का शिशु: गरुड़ पुराण के अनुसार, गर्भ में चौथे महीना के शिशु की त्वचा में मांस, खून, मेद आदि का निर्माण हो जाता है. पांचवे माह में शिशु को भूख प्यार भी लगने लगती है और छठे महीने में शिशु मां के गर्भ में घूमने लगता है.गर्भ में शिशु मां के द्वारा किए गए भोजन को ग्रहण करने लगता है.
- सातवें महीने से शिशु को ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है. वह गर्भ में रहकर सोच-विचार करने लगता है और सोचते-सोचते ही गर्भ में घूमता भी है.
- गरुड़ पुराण की माने तो सातवें महीना की अवस्था में शिशु दुख और वैराग्य से भगवान की स्तुति करने लगता है. शिशु गर्भ में भगवान से बातें करते हुए कहता है कि, मुझे अब इस गर्भ से अलग होने की इच्छा नहीं, क्योंकि बाहर निकलने के बाद मुझे पापकर्म करने पड़ सकते हैं और इससे मुझे नरक प्राप्त होगा.
- गर्भ में विचार करते हुए शिशु के नौ महीने पूरे हो जाते हैं और वह नीचे मुख से प्रसूति के समय वायु से तुरंत बाहर निकलता है. प्रसूति की हवा से शिशु उसी समय से ही सांस लेने लगता है. मां के गर्भ से अलग होने के बाद उसे गर्भ की बातें याद नहीं रहती और वह बिल्कुल ज्ञान रहित हो जाता है.
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