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Crop Special: कौन-कौन सी खेती हैं जो पहले ज्यादा होती हैं, और अब बहुत कम हो गई हैं

Agriculture India: भारत में पौराणिक काल से लेकर आज के आधुनिक काल तक खेती का स्वरूप काफी हद तक बदल गया है. अब किसान बाजार मांग के हिसाब से खेती करते हैं, जबकि पहले जौ, कपास, जूट और खजूर मुख्य फसलें थी.

Agriculture in India: दुनियाभर में भारत को सबसे अधिक उपजाऊ मिट्टी का देश या कृषि प्रधान देश (Agriculture in India)  कहते हैं. यहां पौराणिक काल से ही विभिन्न फसलों की खेती की जाती है. दूसरे देशों में ज्यादातर फसलों का विस्तार भारत (Crop Production in India) से ही हुआ, जब विदेशी भारत आकर यहां की ज्यादातर फसलों को अपने देशों में ले जाकर उगाने लगे. वेदों-उपनिषदों में भी भारत को खेती की प्राथमिकता वाला देश बताया गया है. भारत के प्राचीनतम ग्रंथ ऋगवेद (Rigveda) में जौ, कपास, जूट और खजूर की खेती का वर्णन मिलता है. वहीं धीरे-धीरे 18 और 19 के दशक में भारत को  गेहूं, चावल, गन्ना, चाय, कॉपी, जूट, सूत, दालें, सोयाबीन, मुगफली, रेशम, ज्वार, बाजरा आदि के बड़े उत्पादक देश के रूप में पहचाना जाने लगा. आज के समय में खेती का विकास-विस्तार अलग ढंग से हो रहा है, क्योंकि पिछले समय में ज्यादातर पारंपरिक खाद्यान्न फसलों (Traditional Crop Production) को उगाया जाता था, जिसके कारण किसानों को अन्नदाता कहते थे, लेकिन पुराने समय के मुकाबले आज के आधुनिक दौर में बागवानी फसलों की खेती (Horticulture Crop Farming) का रकबा बढ़ता जा रहा है.

जलवायु परिवर्तन के कारण कम हुई खेती
मौसम की अनिश्चिततायें तो पुराने समय से खेती-किसानी पर हावी रही है, लेकिन आज के समय में प्रदूषण, ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन और कैमिकलों के इस्तेमाल के कारण फसलों का उत्पादन और खेती कम होती जा रही है. आज के समय में जलवायु संबंधी कारकों (Climate Change in Agriculture)  के कारण ही ज्यादातर फसलें बर्बाद हो जाती है. किसी राज्य में अधिक बारिश के कारण तो कहीं कम बारिश के कारण फसलों की बुवाई ही नहीं हो पाती. इसका सबसे बुरा असर खाद्यान्न यानी अनाजी फसलों पर पड़ रहा है, क्योंकि इन्हें संरक्षित ढांचे में नहीं उगाया जा सकता, बल्कि बिना किसी जोखिम के ज्यादातर बागवानी फसलों का उत्पादन संरक्षित ढांचे में लिया जा रहा है. जलवायु परिवर्तन और व्यावसायिक खेती के कारण कई पौराणिक फसलों का उत्पादन कम हो गया है. इसमें जौ, कपास, जूट और खजूर का नाम सिरे से शामिल है.

जौ की खेती (Barley Cultivation)
रिसर्च के मुताबिक, पौराणिक काल से ही भारत को जौ के बड़े उत्पादक के रूप में जाना जाता था, लेकिन आज गेहूं, धान और दूसरी नकदी फसलों की खेती और डिमांड के कारण जौ का उत्पादन काफी कम हो गया है. बता दें कि भारत के सभ्यता-संस्कृति के मुताबिक हर शुभ काम की शुरूआत जौ के साथ की जाती रही है. जौ का इस्तेमाल धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर पोषक अनाज के रूप में किया जाता था. आयुर्वेद में भी जौ को औषधी बताया गया है, जिसका आटा बनाकर खान-पान में इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन आज जौ की उपयोगिता काफी कम हो गई है. आधुनिक दौर में यह अनाज सिर्फ ग्रामीण परिवेशों तक सिमट कर रह गया है. पिछले कई सदियों में इसका उत्पादन लगातार कम हुआ है और इसकी जगह गेहूं, चावल, बाजरा, मक्का जैसे अनाजों ने ली है.

जूट की खेती (Jute Cultivation)
भारत को पुराने समय से ही जूट का बड़ा उत्पादक देश कहा जाता रहा है. इसे पटसन के नाम से भी जानते हैं, जिसके पौधे को सडाकर रेशा तैयार किया जाता है. इस रेशे से ही टाट, खटिया, बोरे, दरी, रस्सियाँ, तम्बू, तिरपाल, कागज और कोटि के कपड़े बनाये जाते रहे हैं, लेकिन आधुनिक काल में जूट के कई दूसरे उत्पाद बाजार में आने लगे, जिसके कारण जूट का उत्पादन काफी हद तक कम हो गया है. इसकी खेती आद्र और गर्म जलवायु में की जाती है, जिसका नम हवा से विकास होता है. भारत में आज भी उड़ीसा, बंगाल, असम, बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ तराई इलाकों में जूट का उत्पादन हो रहा है, लेकिन बाकी फसलों के मुकाबले यह कुछ ही किसानों और कम जमीन तक सिमट कर रह गया है.

कपास की खेती (Cotton Cultivation)
कपास को दुनियाभर में 'सफेद सोना' (White Gold) के नाम से जाना जाता है, जिससे रुई और सूत बनाया जाता है. भारत के कपड़ा उद्योग में कपास का अहम योगदान है, लेकिन जलवायु परिवर्तन और कीट-रोगों की बढ़ती समस्या के कारण कपास का रकबा गिरता जा रहा है. किसान भी खेती में बढ़ते नुकसान हो देखते हुये कपास की जगह दूसरी बागवानी फसलों की तरफ रुख कर रहे हैं. बता दें कि कपास की कम बुवाई और घटते उत्पादन के कारण कपड़ा भी महंगा होता जा रहा है. साथ ही बाजार में सूती कपड़ों के दूसरे उपयोगी रेशे बाजार में आ गये, जिसके सामने सूती कपड़ों के सही दाम नहीं मिलते. कुछ पुराने उद्योग पर ही अब कपास का उत्पादन और सूत का प्रसंस्करण टिका हुआ है और इसी तर्ज पर अब किसानों ने कपास की खेती कम कर दी है.

खजूर की खेती (Date Palm Cultivation)
ऋगवेद और आयुर्वेद में खजूर (Date Palm in Ayurveda)  का काफी वर्णन मिलता है. पौराणिक भारत में खजूर का इस्तेमाल फल से लेकर औषधी के रूप में भी किया जाता था, लेकिन आज यह सिर्फ तटीय इलाकों तक सिमटकर रह गया है. बता दें कि खजूर का पौधा (Date Palm Plant) विपरीत परिस्थितियों  में भी पनपता और फलों का भरपूर उत्पादन देता है. इसके बावजूद ज्यादातर किसान कम अवधि वाली बागवानी फसलें (Short Term Horticulture Crops) या फिर बाजार मांग के हिसाब से फलों के बाग  (Fruit Orchards) लगाना ज्यादा पसंद करते हैं. 

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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