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Agri Start-Up: बाजार में बढ़ रही गोबर की डिमांड, इसकी प्रोसेसिंग करके लखपति बन सकते हैं किसान

Cow Dung Processing: गोबर के सभी उत्पाद एनवायरनमेंट फ्रेंडली होते हैं और बाजार में भी इनकी काफी मांग होती है. ऐसे में गोबर की प्रोसेसिंग करके दोगुना लाभ लिया जा सकता है.

Cow Dung Products: खेती के साथ-साथ पशुपालन(Animal Husbandry) करने वाले किसानों के लिये गोबर (Cow Dung)का बड़ा महत्व है. बंजर जमीन (Barren Land)  को खेती योग्य बनाने और फसलों की पैदावार (Crop Production) बढ़ाने के लिये गोबर की खाद (Organic Fertilizer) बनाई जाती है, लेकिन अब गोबर खेती-किसानी तक सीमित नहीं है. शहरों में गोबर से बने उत्पाद (Cow Dung Products) जैसे- गमले, कड़े. राखी, अगरबत्ती, मूर्ति, कागज, गोबर से बनी लकड़ी और बायोगैस प्लांट (Biogas Plant) के लिये इसकी काफी डिमांड है. सही मायने में देखा जाये तो गाय-भैंस के गोबर को बेचकर या उसकी प्रोसेसिंग (Processing) करके पशु पालक और किसान अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. 
  
गोबर के गमले
पुराने समय से ही सीमेंट और मिट्टी के गमलों में पौधे लगाने का चलन है, लेकिन ये गमले टूट जाने पर किसी काम के नहीं होते और इनके कचरे से प्रदूषण बढ़ता है. वहीं दूसरी तरफ बाजार में गोबर से बने गमलों को गार्डनिंग करने में इस्तेमाल किया जा रहा है. इससे पौधों की बढ़वार तो अच्छी होती ही है और गमला टूटने पर खाद बनाकर इसके कचरे का प्रयोग कर सकते हैं. 

गोबर के कंडे
धार्मिक अनुष्ठानों में हवन की अग्नि जलाने के लिये गोबर के कंड़ों का प्रयोग किया जाता है. गोबर से बने कंडे जलाने पर वातावरण शुद्ध होता है और 3-4 घंटे तक अग्नि जलती रहती है और इसकी राख को पौधों में भी डाल सकते हैं. आने वाले समय में दशहरा और दीवाली के मौके पर भी हवन पूजा के लिये कंडों की काफी डिमांड होती है. इसलिये किसान या पशु पालक गोबर के कंडे बनाकर बाजार में बेच सकते हैं.


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अगरबत्ती
मानसून के आते ही मच्छरों का आतंक बढ़ जाता है. बाजार में मिलने वाली कैमिकल अगरबत्ती से मच्छर तो मर जाते हैं, लेकिन ये सेहत के लिये हानिकारक होती हैं. ऐसे में गोबर से मच्छर मारने वाली जैविक अगरबत्तियां बनाने का व्यवसाय शुरु किया जा सकता है. बता दें कि बाजार में ऑर्गेनिग अगरबत्ती की मांग बढ़ गई है और अब कई कंपनियां गोबर से अगरबत्ती बनाने का बिजनेस कर रही हैं. ऐसे में इस काम से किसानों को काफी मुनाफा हो सकता है.

राखी
भारत में चीनी उत्पादों के बहिष्कार के बाद से बाजार में देसी उत्पादों की मांग काफी बढ़ गई है. खासकर बात करें राखियों की, तो बाजार में अब गोबर से बनी सुंदर और सजावटी राखियां मिलने लगी हैं, जो पूरी तरह एनवायरनमेंट फ्रेंडली होती हैं. राखियां बनाने के लिये गोबर में खुशबूदार इत्र और सजावटी धागों का प्रयोग किया जाता है. कुछ समय बाद रक्षाबंधन का त्यौहार आने वाला है, ऐसे में किसान अच्छा लाभ कमाने के लिये राखियां बनाने का काम भी शुरु कर सकते हैं.

गोबर की लकड़ी
लकड़ी की बढ़ती खपत के कारण कई सालों से जंगलों का सफाया हो रहा है, जो पर्यावरण के लिये संकट का सूचक है. ऐसे में गोबर से बनी लकड़ी पेड़ों को कटने से बचा सकती है. इसका इस्तेमाल हवन, अंतिम संस्कार और फर्नीचर बनाने में भी किया जा रहा है. गोबर की लकड़ी को बनाने के लिये मशीनों को प्रयोग किया जाता है. लकड़ी बनाने के बाद उसे सुखाकर डाई करके बाजार में बेचा जाता है, जिससे लाखों रुपये का मुनाफा हो जाता है. किसान और पशु पालक चाहें तो गोबर के बढ़ते भंडार को फेंकने के बजाय उसे बेचकर अच्छी आमदनी कमा सकते हैं. 

मूर्तियां
बाजार में देवी-देवताओं की मूर्तियों को सफेद सीमेंट या कैमिकल युक्त मिट्टी से बनाया जाता है. कई बार देखा जाता है कि ये मूर्तियां खंडित हो जाती है और इन्हें पानी में विसर्जित किया जाता है, जिससे पानी का प्रदूषण बढ़ता है और जलीय जीवों को हानि होती है. ऐसी स्थिति में गोबर की मूर्तियां बनाकर बाजार में बेची जा सकती है, जिससे पर्यावरण को नुकसान नहीं बल्कि कई फायदे होते हैं. गोबर पानी में घुलनशील होता और पानी पर इसका कोई बुरा प्रभाव नहीं होता.

खाद
हमारी सरकार किसानों को जैविक खेती (Organic Farming) और प्राकृतिक खेती (Natural farming) के जरिये फसलें उगाने के लिये प्रोत्साहित कर रही है. ऐसे में गाय का गोबर और मूत्र से जैविक खाद, जैव उर्वरक (Organic Fertilizer) और जीवामृत (Jeevamrit) बनाया जा सकता है. बता दें कि गोबर से बनी खाद और जीवामृत फसल के लिये अमृत का काम करता है. इससे बंजर जमीन में भी जान आ जाती है. इसलिये गोबर से खाद बनाकर खेती करके दूसरे किसानों को प्रेरित करना चाहिये.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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